रिपोर्ट-हरेंद्र बिष्ट, थराली।
उत्तराखंड में मां नंदा भगवती की लाटू देवता के बगैर अधूरी मानी जाती हैं। प्रति वर्ष आयोजित होने वाली लोकजात यात्रा एवं 12 वर्षों के समयांतराल में आयोजित होने वाली श्री नंदा देवी राजजात यात्रा तों बिना लाटू के संभव नही हैं। पूरे देश में लाटू का सबसे बड़ा एवं प्रसिद्ध मंदिर देवाल ब्लाक के वांण गांव जो कि लोकजात एवं श्री नंदा राजजात यात्रा का आवादी वाला अंतिम गांव भी हैं, में स्थित है।
वांण स्थित लाटू धाम जिसके कपाट बीते दिवस शुक्रवार को विधि-विधान के साथ 6 माह के लिए आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए हैं। के संबंध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार लाटू देवता नंदा देवी का चचेरा भाई माना जाता है, जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार लाटू को करनौज का एक ब्राह्मण एवं मां भगवती का बड़ा उपासक माना जाता हैं।लाटू का शाब्दिक अर्थ लाटा अथवा गूंगा होता हैं। मान्यता के अनुसार लाटू बचपन से ही गूंगे नही थे। वें दुर्घटनावश गूंगे हुए थे, इस संबंध प्रचलित झोड़ो (देवीस्तुती-लोकगीत) के अनुसार जब देवी भगवती दैत्यों का बध करते हुए कैलाश की ओर बढ़ रही थी तो देवी के मुख्य रक्षक लाटू भी उनके साथ ही आगे बढ़ते हुए देवी को रास्ता दिखा रहे थें। चलते, चलते भगवती व लाटू जब वांण गांव पहुंचे तो तब तक रात हो गई तों दोनों ही वांण में ही रूक गएं लाटू उस रात एक अकेली वृद्ध महिला के घर ठहर गएं रात को लाटू देवता को पानी प्यास लगी तो उन्होंने वृद्ध से पानी की मांग की जिस पर उन्होंने उठने पर असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि दूसरे कमरे में दो घड़े रखें हैं। उनमें से एक में पानी एवं एक में जाम अर्थात शराब हैं। तुम पानी वाले घड़े से पानी निकाल कर पी लो अंधेरा होने के कारण लाटू ने गलती से जाम के घड़े से जाम निकाल कर पी लिया। जिससे उन्हें नशा चढ़ गया। जिससे जब वें उठें तों नशे में गिर पड़े और उनकी जिहृवा (जीभ) कट गई और वें गूंगे हो गए।जब सुबह लाटू मोटू दिखता द्वारा शराब का सेवन की जाने की नंदा देवी को जानकारी मिली तो उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि अब वे (लाटू) उनके साथ शारीरिक रूप में कैलाश की ओर नहीं आ सकते हैं। किंतु आगे की अगवानी लाटू का निशान अगवाई करेगा। नंदा ने वचन दिया कि जब भी उनकी यात्रा कैलाश के लिए जाएंगे तो बिना वांण में उनके इस स्थान में रूके आगे नही बढ़ेगी। उसके बाद लाटू यही पर रह गए और नंदा कैलाश को रवाना हो गई।
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वांण में जिस स्थान पर लाटू मंदिर स्थित है काफी अधिक रमणीक स्थल है। यहां पर सदियों पूर्व बना एक मंदिर हैं। इस मंदिर के गर्भगृह के कपाट बैसाख पूर्णमासी के दिन के अलावा लोक जाता एवं राजजात के दौरान ही कुछ देर के लिए खुलते हैं।इस दौरान गर्भगृह में पूजा करने के लिए जाने वाला पूजारी आंखों में मुंह पर पट्टी बांध कर अंदर जा कर पूजा अर्चना कर उसका कपाट बंद कर बहार आ जाते हैं। जबकि मंदिर का बहारी कपाट 6 माह के लिए श्रद्धालुओं की पूजा अर्चना के लिए खुला रहता है।
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वांण स्थित लाटू धाम के ऐतिहासिक मंदिर के अंदुरूनी गर्भगृह में क्या हैं यह रहस्य बना हुआ हैं। बताया जाता है कि गर्भगृह के अंदर एक पाथा (पहाड़ी क्षेत्रों में अनाज को तोलने वाला लकड़ी की वस्तु) उलटा रखा गया है। उसके अंदर और क्या हैं इसकी किसी को कोई जानकारी नही है।और ना ही अनहोनी के डर से कोई जानने का प्रयास करता है।
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लाटू देवता के पश्वाह जब भी पूजाओं के दौरान नाचते हैं तो वे बोलते नही है।ब्लकी उन्हें जो भी अपने भक्तों से बोलना होता हैं वे इसारों में ही बोलते हैं।