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कैंसर समेत कई बीमारियों की एक दवा है सदा सुहागन

05/01/21
in उत्तराखंड, हेल्थ
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
सदाबहार फूलों की प्रजाति का एक पौधा है जो देशभर में पाया जाता है। इसका फूल सालों भर खिलता रहता है। सदाबहार का पौधा जीवट किस्म का होता है जो बिना देखभाल के ही बढ़ता और खिलता रहता है। सदाबहार फूल गोलाकार होते हैं। इसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। खासकर डायबिटीज़ के मरीजों के लिए सदाबहार फूल रामबाण दवा है। इसके साथ ही सर्दी.खांसी, गले की ख़राश और फेफड़ों से संबंधित सभी तरह की बीमारियों में सदाबहार फूल लाभदायक है।सदाफूली या सदाबहार या सदा सुहागन बारहों महीने खिलने वाले फूलों का एक पौधा है। इसकी आठ जातियां हैं। इनमें से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है। भारत में पाई जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है। सदाफूली में सबसे चमत्कृत करने वाली बात है कि यह बारूद जैसे पदार्थ को भी निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है। मेडागास्कर मूल की यह फूलदार झाड़ी भारत में कितनी लोकप्रिय है इसका पता इसी बात से चल जाता है कि लगभग हर भारतीय भाषा में इसको अलग नाम दिया गया हैविकसित देशों में रक्तचाप शमन की खोज से पता चला कि सदाबहार झाड़ी में यह क्षार अच्छी मात्रा में होता है। इसलिए अब यूरोप भारत चीन और अमेरिका के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है।
अनेक देशों में इसे खांसी, गले की खराश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है। सबसे रोचक बात यह है कि इसे मधुमेह के उपचार में भी उपयोगी पाया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सदाबहार में दर्जनों क्षार ऐसे हैं जो रक्त में शकर की मात्रा को नियंत्रित रखते है। जब शोध हुआ तो सदाबहार के अनेक गुणों का पता चला सदाबहार पौधा बारूद जैसे विस्फोटक पदार्थ को पचाकर उन्हें निर्मल कर देता है। यह कोरी वैज्ञानिक जिज्ञासा भर शांत नहीं करता, बल्कि व्यवहार में विस्फोटक.भंडारों वाली लाखों एकड़ जमीन को सुरक्षित एवं उपयोगी बना रहाहै। सदाबहार की पत्तियों में विनिकरस्टीन नामक क्षारीय पदार्थ भी होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर ल्यूकीमिया में बहुत उपयोगी होता है। आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम कर रहा है। बगीचों की बात करें तो 1980 तक यह फूलोंवाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन चुका था, लेकिन इसके रंगों की संख्या एक ही थी. गुलाबी। 1998 में इसके दो नए रंग ग्रेप कूलर बैंगनी आभा वाला गुलाबी जिसके बीच की आंख गहरी गुलाबी थी और पिपरमिंट कूलर ;सफेद पंखुरियां, लाल आंख विकसित किए गए। वर्ष 1991 में रॉन पार्कर की कुछ नई प्रजातियां बाज़ार में आईं। इनमें से प्रिटी इन व्हाइट और पैरासॉल को आल अमेरिका सेलेक्शन पुरस्कार मिला। इन्हें पैन अमेरिका सीड कंपनी द्वारा उगाया और बेचा गया।
इसी वर्ष कैलिफोर्निया में वॉलर जेनेटिक्स ने पार्कर ब्रीडिंग प्रोग्राम की ट्रॉपिकाना श्रृंखला को बाज़ार में उतारा। इन सदाबहार प्रजातियों के फूलों में नए रंग तो थे ही, आकार भी बड़ा था और पंखुरियं एक दूसरे पर चढ़ी हुई थीं। 1993 में पार्कर र्जमप्लाज्म ने पैसिफका नाम से कुछ नए रंग प्रस्तुत किए। जिसमें पहली बार सदाबहार को लाल रंग दिया गया। इसके बाद तो सदाबहार के रंगों की झड़ी लग गई और आज बाजार में लगभग हर रंग के सदाबहार पौधों की भरमार है। यह फूल सुंदर तो है ही आसानी से हर मौसम में उगता है, हर रंग में खिलता है और इसके गुणों का भी कोई जवाब नहीं, शायद यही सब देखकर नेशनल गार्डेन ब्यूरो ने सन 2002 को इयर आफ़ विंका के लिए चुना।
विंका या विंकारोजा, सदाबहार का अंग्रेजी नाम है। इस फूल की एक खासियत यह है कि फूल तोड़कर रख देने पर भी पूरा दिन ताजा रहता है। अगर इस पर किये गए शोधों की बात करें तो पता चला है कि यह बारूद जैसे पदार्थ को भी निष्क्रिय करने की अद्भुत क्षमता रखता है। और तो और इसी के चलते आज विस्फोटक क्षेत्रों और भंडारण वाली हजारों एकड़ भूमि को यह निरापद बना रहा है। खोजों से यह भी पता चला है कि इसमें पाया जाने वाला क्षार रक्त कैंसर के उपचार में बहुत उपयोगी है। इसके साथ ही यह रक्तचाप को कम करने और मधुमेह जैसी बीमारी को काबू में करने में बहुत सहायक है। कहा जाता है कि इस पर हुए अनेक शोधों के कारण जैसे.जैसे इसकी खूबियों का लोगों को पता चलता जाता है वैसे.वैसे इस की मांग भी देश.विदेश में दिन.प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसीलिए अब इसकी खेती भी की जाने लगी है। फलस्वरूप यह अनोखा पौधा अब संजीवनी बूटी बन गया है।

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