देहरादून, 1 जुलाई, 2025. । उत्तराखण्ड इप्टा की ओर से धर्मानन्द लखेड़ा द्वारा संकलित जनगीतों की पुस्तक “मिल के चलो” का लोकार्पण आज दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में किया गया।
लोकार्पण से पूर्व निकोलस हॉफलैंड ने इप्टा से जुड़ी महान शख्शियतों और इप्टा के इतिहास की जानकारी फ़िल्म और चित्रों के माध्यम से दी । उन्होंने कहा कि जनगीतों में बहुत ताकत होती हैं ।जन गीतों से मेहनतकश लोग और और आम जनता विश्वास रखती है. इस मौके पर धर्मानन्द लखेड़ा ने कहा कि ये किताब साथी सतीश कुमार और संजीव चानिया को समर्पित है। इसमें विस्मिल, शंकर शैलेन्द्र, साहिर लुधियानवी, प्रेम धवन, कैफ़ी आज़मी, अली सरदार जाफरी,गोरख पांडेय, अदम गोंडवी,सफ़दर हाशमी व प्रदीप सहित उत्तराखण्ड के जनकवियों में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’, नरेंद्र सिंह नेगी, डॉ अतुल शर्मा, बल्लीसिंह चीमा,जहूर आलम आदि रचनाकारों के प्रतिनिधि जनगीतों/ कविताओं को भी स्थान दिया गया है।
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.इन्द्रजीत सिंह ने कहा कि इप्टा और लखेड़ा जी का यह प्रयास स्वागतयोग्य और सराहनीय क़दम है। गीतकार शैलेंद्र के जीवन और रचनाओं पर चार पुस्तकों का संपादन कर चुके डॉ इन्द्रजीत ने कहा कि इस किताब में शैलेन्द्र के गीत भी हैं जो सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हैं, वो सच्चे अर्थों में जनकवि थे। उन्होंने कहा कि मिल के चलो किताब में संकलित सभी गीतों में संवेदना और सृजन का राग,प्रतिरोध और प्रतिबद्धता की आग और समानता,स्वतंत्रता और इंसानियत से परिपूर्ण समाज का हँसी ख़्वाब है ।
वरिष्ठ कवि राजेश सकलानी ने कहा कि गीत संगीत का मूल स्थान मेहनत के कार्य स्थल हैं। जनगीतों की आत्मा में धरती और मनुष्य के बीच समता और सामंजस्य की स्थापना के साथ
दुनियाभर के दबे हुए समाजों में उत्साह का संचार करते हैं।’ हम होगें कामयाब ‘ हम भारतीय जनों के साथ विश्व का प्रतिरोध गीत है। प्रस्तुत पुस्तक ” मिल के चलो “आज के दौर की सामाजिक राजनीतिक जरूरत है। ये रचनाएं अमन पसन्द और सताए जा रहे नागरिकों के संघर्ष में सहायक होंगीं।
इप्टा के प्रदेश अध्य्क्ष डॉ.वी के डोभाल ने कहा कि इस जन गीतों के संग्रह मिल के चलो में सभी क्रांतिकारी कवियों की रचनाओ की शामिल करने का प्रयास किया गया है, जिन्हें हम अक्सर गुनगुनाते हैं, अवसरों पर गाते हैं। उन्होंने कहा कि इसमें शामिल गीत, बेचैनी संघर्ष और गति प्रदान करते हैं । इप्टा के नाटकों, गीतों में हमेशा से ही सामाजिक बदलाव का आह्वाहन और समकालीन यथार्थ का चित्रण मिलता है। फ़िल्मी गीतों में भी इप्टा की अलग ही पहचान रही है, वो सुबह कभी तो आएगी/साथी हाथ बढाना साथी रे/जलते भी गये कहते भी गये आज़ादी के परवाने/मेरा रंग दे बसंती चोला/कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों ,आदि बहुत से ऐसे गीत हैं जो इप्टा से जुड़े लोगों ने लिखे हैं।
जनकविअतुल शर्मा ने कहा कि मिल के चलो,महत्वपूर्ण संकलन है जो इप्टा की ओर से सौगात है।संपादक धर्मानन्द लखेड़ा का सराहनीय कार्य कहा जा सकता है।संघर्ष मे आवाज़ बने जन गीतों को बहुत गम्भीर तरह से प्रस्तुत किया गया है । यह एक ऐतिहासिक कार्य है ।संकलन मे वे जन गीत शामिल किये गये है जो संघर्ष मे गाये गये है।जन गीत संकलन उत्तराखण्ड से लेकर पूरे उत्तर भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर का प्रयास है।
सतीश धौलखंडी ने इप्टा देहरादून के साथ मिल कर किताब के कुछ जनगीत जब गाये तो सभागार में बैठे दर्शक भी तालियों के साथ साथ गुनगुनाने लगे, पूरा सभागार संगीत और गीतमय हो गया। कार्यक्रम का सफल संचालन सामजिक कार्यकर्त्ता हरिओम पाली ने किया।
कार्यक्रम में देवेंद्र कांडपाल, गजेंद्र नौटियाल,डॉ. जितेंद्र भारती, राकेश पन्त, प्रमोद पसबोला , ममता कुमार,विक्रम पुंडीर, शोभा शर्मा, चंद्रशेखर तिवारी, समदर्शी बड़थ्वाल,संजय कोठियाल, एस. एस. रजवार, जितेंद्र भारती, दर्द गढ़वाली,, संजीव घिल्डियाल, कुलभूषण नैथानी, देवेंद्र कांडपाल, मदन मोहन कंडवाल, अरुण कुमार असफल, राकेश जुगरान, डॉ. लालता प्रसाद सहित पाठक, साहित्यकार, लेखक व कई रंगकर्मी आदि उपस्थित रहे.