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Home उत्तराखंड

औषधीय गुणों से भरपूर किलमोड़ा

January 25, 2021
in उत्तराखंड, हेल्थ
Reading Time: 1min read
218
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल.फूलों में भी। खासकर जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार है। यह फल कभी मुसाफिरों और चरवाहों की क्षुधा शांत किया करते थे, बेरवेरीज एरिस्टाटा को पहाड़ में किलमोड़ा के नाम से जाना जाता है। इसकी करीब 450 प्रजातियां दुनियाभर में पाई जाती हैं। भारत, नेपाल, भूटान और दक्षिण.पश्चिम चीन सहित अमेरिका में भी इसकी प्रजातियां हैं। किलमोड़ा का पूरा पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी जड़, तना, पत्ती, फूल और फलों से विभिन्न बीमारियों में उपयोग आने वाली दवाएं बनाई जाती हैं। भारत, नेपाल और भूटान में किलमोड़ा की अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। किलमोड़ा का पूरा पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है।

किल्मोड़ा उत्तराखंड के 1400 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाला एक औषधीय प्रजाति है। इसका बॉटनिकल नाम बरबरिस अरिस्टाटा है। यह प्रजाति दारुहल्दी या दारु हरिद्रा के नाम से भी जानी जाती है। इसका पौधा दो से तीन मीटर ऊंचा होता है। मार्च.अप्रैल के समय इसमें फूल खिलने शुरू होते हैं। इसके फलों का स्वाद खट्टा.मीठा होता है। किल्मोड़ा की जड़, तना, पत्ती से लेकर फल तक का इस्तेमाल होता है। मधुमेह में किल्मोड़ा की जड़ बेहद कारगर होती है। इसके अलावा बुखार, पीलिया, शुगर, नेत्र आदि रोगों के इलाज में भी ये फायदेमंद है। होम्योपैथी में बरबरिस नाम से दवा बनाई जाती है। दारू हल्दी की जड़ से अल्कोहल ड्रिंक बनता है।किल्मोड़ा के पौधे में एन्टी डायबिटिक, एन्टी इंफ्लेमेटरी, एन्टी ट्यूमर, एन्टी वायरल और एन्टी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। डायबिटीज के इलाज में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा खास बात ये है कि किल्मोड़ा के फल और पत्तियां एन्टीऑक्सिडेंट कही जाती हैं। एन्टीऑक्सीडेंट यानी कैंसर की मारक दवा। किल्मोड़ा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है। पोषक एवं खनिज तत्वों की बात करें तो इसमें प्रोटीन 3.3 प्रतिशत, फाइबर 3.12 प्रतिशत, कॉर्बोहाइडे्रट्स 17.39 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, विटामिन.सी 6.9 मिग्रा प्रति सौ ग्राम व मैग्नीशयम 8.4 मिग्रा प्रति सौ ग्राम पाया जाता है। किल्मोड़ा से एक प्राकृतिक रंग भी तैयार किया जाता था, जिसका इस्तेमाल कपड़ों के रंगने में होता था। इसकी जड़, तना, पत्ती, फूल और फलों से विभिन्न बीमारियों में उपयोग आने वाली दवाएं बनाई जाती हैं।

मुख्य रूप से इस पौधे में एंटी डायबिटिक, एंटी ट्यूमर, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी बैक्टीरियल, एंटी वायरल तत्व पाए जाते हैं। मधुमेह के इलाज में इसका सबसे अधिक उपयोग होता है। मुख्य रूप से इस पौधे में एंटी डायबिटिक, एंटी ट्यूमर, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी बैक्टीरियल, एंटी वायरल तत्व पाए जाते हैं। मधुमेह के इलाज में इसका सबसे अधिक उपयोग होता है। डेढ़ दशक से हिमालयी जड़ी.बूटियों के संरक्षण में जुटे हैं। भागीचंद्र टाकुली ने हाल ही में किलमोड़ा की खेती कर पौधे से तेल तैयार किया है। उन्होंने बताया कि करीब सात किलो किलमोड़ा की लकड़ियों से दो सौ ग्राम तेल तैयार हुआ।जड़ी.बूटी के उत्पादन व संरक्षण में जुटे बागेश्वर के एक ग्रामीण ने किलमोड़ा की झाड़ियों से तेल तैयार किया है। खास बात यह है कि शुद्धता के कारण यह तेल लखनऊ की दवा बनाने वाली एक कंपनी को बेहद पसंद आया है। दवाओं के लिए तैयार होने वाला इसका कच्चा तेल सबसे ज्यादा हिमाचल से भेजा जाता है। सदियों से उपेक्षा का शिकार हो रहा ये पौधा बड़े कमाल का है। किलमोड़े के फल में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व शरीर को कई बींमारियों से लड़ने में मदद देते हैं। दाद, खाज, फोड़े, फुंसी का इलाज तो इसकी पत्तियों में ही है। डॉक्टर्स कहते हैं कि अगर आप दिनभर में करीब 5 से 10 किलमोड़े के फल खाते रहें, तो शुगर के लेवल को बहुत ही जल्दी कंट्रोल किया जा सकता है। इसके अलावा खास बात ये है कि किलमोड़ा के फल और पत्तियां एंटी ऑक्सिडेंट कही जाती हैं। एंटी ऑक्सीडेंट यानी कैंसर की मारक दवा। छोटा सा फल बड़े काम का है। वैसे आपको जानकर हैरानी कि अब किलमोड़ा से विदोशों में कैंसर जैसी बीमारी के लिए दवा तैयार की जा रही है किलमोडा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों और पर्यवरण प्रेमियों ने इसके खत्म होते अस्तित्व को लेकर चिंता जताई है। इसके साथ किलमोड़े के तेल से जो दवाएं तैयार हो रही हैं, उनका इस्तेमाल शुगर, बीपी, वजन कम करने, अवसाद, दिल की बीमारियों की रोक.थाम करने में किया जा रहा है।

इसके पौधे कंटीली झाड़ियों वाले होते हैं और एक खास मौसम में इस पर बैंगनी फल आते हैं। पहाड़ के क्षेत्रों में बच्चे इसे बड़े चाव से खाते हैं।शोध के अनुसार प्रति 10 ग्राम किलमोड़ा रस में प्रोटीन 6.2 प्रतिशतए कार्बोहाइड्रेट 32.91 प्रतिशत, पॉलीफेनोल 30.47 मिलीग्राम, संघनित टैनिन 7.93 मिलीग्रामए एस्कॉर्बिक एसिड 31.96 मिलीग्रामए बीटा.कैरोटीन 4.53 माइक्रोग्राम तथा लाइकोपीन 10.62 माइक्रोग्राम जैसे तत्व पाये जाते हैं। यह सभी तत्व हमारे शरीर को स्वस्थ्य रखने तथा कयी प्रकार के घातक रोगों शरीर की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए लोगों को इसकी उत्पादकता को बढ़ाए रखने पर विचार करना चाहिए। यह जूस इतना लोकप्रिय हो रहा है कि इसकी माँग बाहरी राज्यों से भी आ रही है।

स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षित सदुपयोग, आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से कृषि आधारित व्यवसायिक व ओद्योगिक समृद्धिकरण के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि पर्वतीय क्षेत्र से ग्रामीण युवाओं के पलायन को रोका जा सके और पर्वतीय जनों की जीवन शैली में आवश्यक बदलाव लाया जा सके पहाड़ का काश्तकार किलमोड़ा की झाडिय़ों को नष्ट करता है। जबकि इसके इस्तेमाल से दो फायदे होंगे। खेत के चारों तरफ बाउंड्री वॉल के तौर पर लगाकर जंगली जानवरों के नुकसान से बचा जा सकता है। साथ ही फल बेचकर पैसे मिलेंगे। सदियों से उपेक्षा का शिकार हो रहा ये पौधा बड़े कमाल का है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षित सदुपयोग, आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से कृषि आधारित व्यवसायिक व ओद्योगिक समृद्धिकरण के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि पर्वतीय क्षेत्र से ग्रामीण युवाओं के पलायन को रोका जा सके और पर्वतीय जनों की जीवन शैली में आवश्यक बदलाव लाया जा सकेण् इसलिए लोगों को इसकी उत्पादकता को बढ़ाए रखने पर विचार करना चाहिए।

पहाड़ी क्षेत्र के किसान जो जंगली जानकरों तथा आवारा पशुओं से खेती में हो रहे नुकसान से त्रस्त हैं, वह अपने खेतों में बाढ़ के रूप में किलमोड़ा के कटीले पेड़ लगाकर अपनी फसल को बचा सकते हैं। किसान अपने खेतों की बाढ़ में लगायें गये किलमोड़ा से प्राप्त होने वाली जड़ों को बेचकर भी अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं, बसर्तें इसके लिए सरकार से अनुमति ली होनी चाहिए। उत्तराखण्ड में लोग किल्मोड़ा के जड़ों और तनों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में प्राचीनकाल से करते आये हैं। किल्मोड़ा के औषधीय गुणों को देखते हुए कुमाऊं विश्वविद्यालय के बॉयोटेक्नोलॉजी विभाग ने इस पर शोध किये और उन्होंने एक मधुमेह निवारक ;एन्टीडायबिटिकद्ध दवा तैयार की। सफल परीक्षण के बाद अमेरिका के इंटरनेशनल पेटेंट सेण्टर से पेटेंट भी हासिल किया। कुमाऊं विश्वविद्यालय का ये पहला इंटरनेशनल पेटेंट है।कुछ समय पहले तक उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में काफी मात्रा में उपलब्ध होता था। लोग इसे सिर्फ एक कंटीली झड़ी के रूप में पहचानते थे। घर पर सामान्य इलाजए जलाने और जंगली जानवरों के बाढ़ हेतु इसका उपयोग होता था। अत्यधिक दोहन और संरक्षण के अभाव में आज किल्मोड़ा की प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। स्थानीय प्रयास और सरकार के सहयोग से लोगों को किल्मोड़ा के संरक्षण और संवर्द्धन काम करना चाहिए। इसके औषधीय गुण रोजगार का जरिया बन सकते हैं।

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