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अब भूरी नहीं सफेद होगी मंडुवे की रोटी

19/12/20
in अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में उगाया जाने वाला मंडुवा पौष्टिकता का खजाना है। यहां की परंपरागत फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य की कुल कृषि योग्य भूमि का 85 फीसद भाग असिंचित होने के बावजूद यहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। मंडुवा हृदय व मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए लाभदायक होता है। इसमें पर्याप्त पोषक तत्व होने की वजह से यह कुपोषण से बचाने में भी मददगार होता है। बाजार में मंडुवे का आटा 40 से 50 रुपये प्रति किलो के हिस्साह से उपलब्ध है। मंडुवा का उत्तराखंड के पहाड़ की परंपरागत फसलों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। राज्य करीब 135 हजार हेक्टेयर भूमि पर मंडुवा का उत्पादन होता है।
रंग के कारण बाजार में अभी मंडुवा की मांग कम है, लेकिन विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने वीएल मंडुवा.382 नामक प्रजाति को तैयार कर दिया है। तीन वर्षों तक उत्तराखंड में संस्थान के अलग.अलग परीक्षण केंद्रों में सफेद मंडुवा का उत्पादन किया गया। मंडुवा की यह प्रजाति सफेद अनाज की एक विशेष किस्म है। अल्मोड़ा ने मंडुवा की वीएल मंडुवा. 382 नई प्रजाति तैयार की है। यह मंडुआ भूरे रंग के बजाय सफेद रंग का है। इस प्रजाति का बीज काश्तकारों को वर्ष 2021 से उपलब्ध होने की उम्मीद है। अपने उच्च पौष्टिक मूल्य और सफेद रंग के दाने के चलते यह भूरे रंग के बीज वाली किस्मों की तुलना में बहुत अधिक पसंद की जाने वाली प्रजाति होगी।
मंडुवे की माँग सात समंदर पार तक है। बशर्ते इस ओर हम लोग ध्यान देंगे तो आने वाले समय में मंडुआ लोगों की आजीविका का साधन बन जाएगा। पहले पहल लोग मंडुआ को कइयों स्तर पर उपयोग में लाते थे। मंडुवे की रोटी तो आम बात थी, चूँकि यदि किसी दूधमुहे बच्चे को जुकाम, खाँसी इत्यादि की समस्या होती थी तो लोग एक बाउल में पानी उबालकर उसमें मंडुवे का आटा डालकर उसकी भाप सुँघाना ही ऐसी बीमारी का यह तरीका रामबाण इलाज था। मंडुवे के आटे से स्थानीय स्तर पर कई प्रकार की डिश भी तैयार होती थी जो ना तो तैलीय होती थी और ना ही स्पाइसी, बजाय लोग इसे अतिपौष्टिक कहते थे। उम्मीद है कि यह बीज काश्तकारों को 2021 से कृषि विभाग व अन्य माध्यमों से मिलना शुरू हो जाएगा। इस बीज की मांग अभी से बढ़ने लगी है।
सफेद कोदे के पौष्टिक गुणों के बारे में बताते हैं। भूरे रंग के वीएल मंडुवा.324 के प्रति 100 ग्राम में कैल्शियम 294 मिलीग्राम और प्रोटीन 6.6 फीसदी होता है। जबकि सफेद मंडुवे के प्रति 100 ग्राम में कैल्शियम 340 ग्राम होता है। इसमें 8.8 फीसदी प्रोटीन होता है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर और सफेद रंग के दाने के चलते इसे भूरे रंग के बीज वाली किस्मों की तुलना में ज्यादा पसंद किया जाएगा। यह किसानों को भूरे रंग के मंडुवे की किस्मों के लिए एक नया विकल्प प्रदान करेगा। इसकी बहुपयोगी फसल अन्न के साथ.साथ पशुओं को चारा भी प्रदान करती है। मंडुवे से बिस्कुट, रोटी, हलुवा, नमकीन, केक जैसे उत्पाद तैयार किए जाते हैं। पहाड़ में इसकी खेती जैविक खाद से होने के कारण अत्यधिक मांग है।
जानकारों के मुताबिक मंडुवा कोदा में जहां आयोडीन व फाइबर प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। मंडुवा पहाड़ के खान.पान का अहम हिस्सा है। कभी सिर्फ पहाड़ी इलाकों में इस्तेमाल होने वाला कोदा अब शहरों में भी पसंद किया जा रहा है। इसकी डिमांड बढ़ रही है, कोदे से नए.नए व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं। आमतौर पर मंडुवा भूरे रंग का होता है, लेकिन जल्द ही पहाड़ में सफेद रंग के कोदे की खेती होने लगेगी। आमतौर पर मंडुवा भूरे रंग का होता है, लेकिन जल्द ही पहाड़ में सफेद रंग के कोदे की खेती होने लगेगी। तीन वर्षों तक उत्तराखंड में संस्थान के अलग.अलग परीक्षण केंद्रों में सफेद मंडुवा का उत्पादन किया गया। मंडुवा की यह प्रजाति सफेद अजान की एक विशेष किस्म है। मंडुवे में बहुत ज्यादा फाइबर होता है, इसलिए इसकी रोटी स्वादिष्ट होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होती है। अनाजों में राजा माना जाने वाला मंडुवा आज से ही नहीं ऋषि मुनियों के काल से ही अपने महत्वपूर्ण गुणों के लिए जाना जाता है।
भारत वर्ष में मंडुवे का इतिहास 3000 ईसा पूर्व से है। पाश्चात्य की भेंट चढ़ने वाले इस अनाज को सिर्फ अनाज ही नहीं अनाज औषधि भी कहा जा सकता है। इन्ही अनाज औषधीय गुणों के कारण वापस आधुनिक युग में इसे पुनः राष्ट्रीय एंव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थान मिलने लगा है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मैग्जीन्स इसे आज पावर हाउस नाम से भी वैज्ञानिक तथा शोध जगत में स्थान दे रहे है। इसका वैज्ञानिक नाम इल्यूसीन कोराकाना जो कि पोएसी कुल का पौधा है। इसे देश दुनिया में विभिन्न नामों से जाना जाता है। सरकार नैनीताल जिले के हल्द्वानी में देश की पहली जैविक कृषि उत्पाद मंडी खोले जाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए सरकार ने जमीन भी देख ली हैं।
उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड जैविक कृषि उत्पाद मंडी खोलने के लिए पूरी तैयारी से जुटा हुआ है। अगर यह मंडी खुलती है और जैविक फसलों को सही मार्केटिंग मिलती है तो प्रदेश में जैविक खेती को काफी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा सरकार के इस कदम से पहाड़ो से हो रहे पलायन को रोकने में भी मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ यात्रा के दौरान उत्तराखंड को जैविक राज्य बनाने का सपना देखा था। केन्द्र और राज्यए दोनों सरकारें मिलकर इस सपने को साकार करने में जुट गयी हैं। उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड के माध्यम से प्रदेश में 23 फल.सब्जी मंडी स्थापित हैं। सरकार ने जैविक उत्पादों की मार्केटिंग के लिए मंडी बोर्ड की ओर से जैविक कृषि उत्पाद मंडी खोलने को मंजूरी दी है। इसके लिए हल्द्वानी मंडी समिति के समीप ही बोर्ड ने भूमि का चयन कर लिया है। जल्द ही यह भूमि मंडी समिति के नाम स्थानांतरित कर दी जाएगी। जबकि सफेद मंडुवा की वीएल मंडुवा.382 के प्रति 100 ग्राम में कैल्शियम 340 ग्राम और प्रोटीन सामग्री 8ण्8 फीसद है। उन्होंने कहा कि एक सफेद अनाज जीनोटाइप होने के नातेए वीएल मंडुवा.382 किसानों को भूरे रंग के मंडुवे की किस्मों के लिए एक नया विकल्प प्रदान करेगा। अपने उच्च पौष्टिक मूल्य और सफेद रंग के दाने के चलते यह भूरे रंग के बीज वाली किस्मों की तुलना में बहुत अधिक पसंद की जाने वाली प्रजाति होगी उत्तराखंड में उत्तराखंड मंडुवा की कृषि उत्पादन विपणन पर दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए है। वहां पर उत्पादकों के लिए यह मंडुवा आय का बेहतर स्त्रोत है। उत्तराखंड में दिशा में अभी तक कदम उठाने है।

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