डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड राज्य जो कि हिमालय की गोद में बसा है जिसकी वजह से यह एक खास भौगोलिक परिस्थिति रखता है, जिसमें ना जाने कितने बहुमूल्य उत्पाद पैदा होते होंगे। त्रिफला आज भी भारत में सबसे अधिक खरीदी जाने वाली आयुर्वेदिक औषधियों में गिना जाता है। अनुभवजन्य ज्ञान यह भी बताता है कि जाति, धर्म, निवास स्थान, जलवायु एवं भौगोलिक परिस्थितियों से ऊपर उठ कर प्रत्येक घर में त्रिफला की कुछ न कुछ मात्रा अवश्य पाई जाती है। आयुर्वेद का ऐसा कोई ग्रन्थ नहीं जिसमे त्रिफला को एक उच्चकोटि का रसायन न माना गया हो। भारत के चार लाख आयुर्वेदाचार्यों में ऐसा कोई वैद्य नहीं जिसने त्रिफला को अपनी चिकित्सा में प्रशस्त न किया हो।
चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांग हृदय सहित अन्य ग्रन्थों के निचोड़ स्वरूप यह कहा जाता है कि त्रिफला न केवल सभी तरह की बीमारियों की औषधि है, बल्कि यह सभी प्रकार की बीमारियों को रोकने के लिये एक विशिष्ट और प्रभावी रसायन भी है। निष्कर्षों को अब तक प्रकाशित या संदर्भित 1400 से अधिक शोधपत्रों के प्रकाश में देखने पर प्रमाणित होता है कि ऐसे लोगों का प्रतिशत सांख्यिकीय रूप से नगण्य ही है, जो स्वस्थ होने के बावजूद कुछ वर्षों से त्रिफला का सेवन करते रहे हों और फिर भी गैर संचारी रोग जैसे हृदय रोग, मधुमेह, कैन्सर, मानसिक रोग आदि से पीडि़त हो गये हों। त्रिफला के शास्त्र.वर्णित एवं शोध.समर्थित गुणों का तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि त्रिफला विविध प्रकार के रोगों से बचाव कर सकता है। बशर्ते खान.पान एवं जीवन.शैली संयमित व संतुलित हो और त्रिफला की गुणवत्ता से समझौता न किया गया हो।
आँवला के समिश्रितस्वरूप को आयुर्वेदशास्त्रा में त्रिफला के नाम से जाना जाता है जो सर्व रोगनाशक, रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। यह एक उच्च कोटि का रसायन भी है। इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। गरीब अमीर दोनों ही श्रेणी के व्यक्ति इसका सेवन आसानी से कर सकते है। यह एक इतनी सरल, सुलभ तथा चिकित्सा जगत में व्यापक रूप से प्रचलित औषधि है कि आयुर्वेदाचार्य इसका प्रयोग तत्काल करने लगते है। यह त्रिदोषनाशक है और इसमें दवाओं के भरपूर गुण पाये जाते है। स्वास्थ्य रक्षक, रोग निवारक तथा दीर्घायु प्रदान करने वाली अद्भुत सम्पदा है। इसमें शरीर से विजातीय तत्वों को निष्कासित करने की शक्ति है। रोगों से लडने की सामर्थ्य रखता है।
त्रिफला का निरंतर सेवन करने से कई तरह के रोगों से बचा जा सकता है। सिर के रोग, नेत्रा रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण की भाँति कामकरता है। कब्ज को दूर करने में तो इसके मुकाबले कोई भी दवा कामयाब नहीं हो सकती।यह दुर्बलता को मिटाता और स्मृति को बढाता है। कई ग्रंथों में तो इसे कुष्ठनाशक भी सिद्ध किया है। त्रिफला का चूर्ण ओरल हेल्थ से संबंधित हर तरह की समस्या के लिए प्रयोग किया जा सकता है। यहां तक कि वैज्ञानिक भी इस पर अध्ययन कर चुके हैं। साथ ही इस बात की पुष्टि भी की जा चुकी है कि इसका सेवन करने से ओरल हेल्थ में सुधार हो सकता है। बता दें कि इस चूर्ण में एंटीकैरीज एक्टिविटी मौजूद होती है, जिसके जरिए दांतों को खराब होने से बचाया जा सकता है। इतना ही नहीं ब्रश करने के दौरान अगर मसूड़ों से खून निकलता है तो त्रिफला के चूर्ण का इस्तेमाल करने से इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।आंखों के स्वास्थ्य के लिए भी त्रिफला चूर्ण का सेवन करना बेहद फायदेमंद साबित होता है। बता दें कि इसमें पौष्टिक तत्व मिनरल्स पाया जाता है। ऐसे में अगर आप रोजाना पानी के साथ इस चूर्ण का सेवन करेंगे तो ये टॉनिक के तौर पर आंखों में एक तरह का एंटीऑक्सीडेंट बढ़ाता है, जिसकी मदद से आंखों की रोशनी सही होने के साथ ही अन्य नेत्र रोगों से भी बचाव किया जा सकता है। त्रिफला का ये चूर्ण काफी लाभदायक साबित हो सकता है, क्योंकि इसका नियमित सेवन करने पर रक्त में मौजूद ब्लड ग्लूकोज का स्तर बेहद कम हो जाता है। जिसके चलते ये डायबिटीज जैसी खतरनाक बीमारी से आपको बचाता है।
आधुनिक विज्ञान में त्रिफला पर हुये शोध का निष्कर्ष भी यही है कि यह अनेक गैर.संचारी रोगों जैसे हृदय रोग, कैन्सर, मधुमेह, मनोरोग, श्वसन.तंत्र के रोगों आदि की रोकथाम में रसायन और औषधि के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। त्रिफला शरीर के ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करते हुये फ्री.रेडीकल स्केवेंजिंग तथा पीड़ा या प्रदाह कम करते हुये हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करता है। वैज्ञानिक शोध के बाद लिखे गये कम से कम 250 शोधपत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि त्रिफला में अभी तक 174 बायोएक्टिव द्रव्य पाये गये हैं, हालांकि कुलद्रव्यों की संख्या 3500 से अधिक हो सकती है। डॉण् भूषन पटवर्धन और उनके साथी वैज्ञानिकों द्वारा त्रिफला नेटवर्क फार्माकोलॉजी का अध्ययन बताता है कि 31 प्रोटीन.लक्ष्यों के मॉडुलेशन के माध्यम से त्रिफला कम से कम 15 रोग प्रकारों और 74 रुग्णता.संकेतकों के विरुद्ध प्रभावी है। इनमे मुख्य रूप से एडॉप्टोजेनिक, इम्यूनोमोड्यूलेटर, एंटी ऑक्सिडेंट, ज्वरनाशक, एनाल्जेसिक, जीवाणुरोधी, अनेक प्रकार के कैंसर रोकने वाला, ट्यूमर.विकास.रोधी, एंटीम्यूटाजेनिक, घाव भरने, दन्तक्षयरोधी, तनावरोधी, अनुकूलक, हाइपोग्लिसीमिक, डायबिटीज रोधी, कीमोप्रोटेक्टिव, रेडियोप्रोटेक्टिव, कीमोप्रिवेंटिव, रेचक, भूखवर्धक, गैस्ट्रिक एसिडिटीरोधी जैसे कार्य.प्रभाव शामिल हैं।
त्रिफला का रसायन के रूप में प्रभाव डालने की प्रक्रिया मुख्य रूप से फ्री.रेडीकल स्केवेंजिंग तो है ही, साथ ही एंटी.ऑक्सीडेंट एंजाजाइम्स को बढ़ावा देना, लिपिडपेरोक्सीडेशन को रोकना, पीड़ाशामक, स्नायु.तंत्र का कायाकल्प आदि भी होते हैं। त्रिफला में हाल के आंकड़े बताते हैं कि त्रिफला और इसकी घटक प्रजातियों को आज तक प्रकाशित जिन 12,256 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 6030 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है। यही हाल त्रिकटु का है। त्रिकटु और इसकी घटक प्रजातियों और द्रव्यों को आज तक प्रकाशित जिन 15,594 शोधपत्रों में संदर्भित किया गया है, उनमें से 11,104 शोधपत्र ऐसे हैं जिनमें कोई भारतवासी शोधकर्ता नहीं है। परंतु इस सबके बावजूद यह भी एक सत्य है कि छक्के छूट जाते हैं आतुर को भरोसा दिलाने में कि त्रिफला कब्ज की दवा का चूरन नहीं, एक श्रेष्ठतम रसायन है।
जीवन भर स्वस्थ रहना चाहतेहैं तो प्रमाण.आधारित बात यह है कि ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और इनफ्लेमेशन के निरापद प्रबंध के लिये आयुर्वेद की रसायन चिकित्सा से बेहतर कोई और चिकित्सा पद्धति विश्व में ज्ञात नहीं है। आज के समय में आयुर्वेदाचार्यो की सेवा बाज़ार में गौण हो जाती है। स्वाइन फ्लूए चिकनगुनियाए डेंगू आदि रोगों से बाज़ार और एलोपैथिक प्रतिष्ठानों ने चांदी कूट ली। जबकि वास्तव में काढ़े में उलझे आयुर्वेदाचार्यों की मेहनत ने बहुतों को इस बीमारी से मुक्त किया। कुल मिलाकर जनमानस में त्रिफला के बारे में जो धारणा बनी हुई है कि यह केवल पाचन.तंत्र के रोगों को ठीक करता हैए सही नहीं है। वस्तुतः आयुर्वेद में औषधि या रसायन सर्वप्रथम अग्नि को सम करता है जिसे हम सब प्रायः शीघ्रता से अनुभव कर लेते हैं। त्रिफला की उपयोगिता आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययनों में भी प्रमाणित हो जाने के बावज़ूद आयुर्वेदाचार्य त्रिफला के प्रयोग में प्रायः नेत्र, खालित्य, पालित्य व कब्ज से आगे नहीं बढ़ते। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आयुर्वेद की संहिताओं एवं आधुनिक विज्ञान के इन.वाइवो, इन.वाइट्रो एवं कई क्लीनिकल ट्रायल्स में त्रिफला को अनेक रोगों से बचाव एवं उपचार में लाभकारी पाया गया है। हालांकि त्रिफला पर आगे अध्ययन की आवश्यकता तो है, किंतु 250 से अधिक उच्चकोटि के वैज्ञानिक शोधपत्रों का निष्कर्ष यही सिद्ध करता है कि त्रिफला भोजन, रसायन एवं औषधि तीनों ही रूपों में महत्वपूर्ण द्रव्य है भारत में एक लोकप्रिय कहावत है, माँ नहीं है। यदि आपके पास त्रिफला है, तो आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं हैष् इसका सार यह है कि जिस तरह माँ अपने बच्चों की देखभाल करती हैए उसी तरह त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है। त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियाँ आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं, जमाव और अधिकता की स्थिति को कम करती हैं तथा पाचन एवं पोषक तत्वों के सम्मिलन को बेहतर बनाती हैं। उत्तराखंड में आंवला बहेड़ा त्रिफला हरड़ त्रिफला काफी में मिलते हैं पर दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए हैं।