• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

कुमाऊँ के रामगढ़ में महादेवी वर्मा की मीरा कुटीर

11/09/20
in उत्तराखंड, नैनीताल
Reading Time: 1min read
383
SHARES
479
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड है ही ऐसी जगह जहां की हर बात निराली है, जहां का हर गांव निराला है, वहां की कहानियां भी निराली है। नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर-रामगढ़ इलाके में अनेक स्थानों से हिमालय की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। तकरीबन 180 डिग्री के विस्तार में सामने फ़ैली हिमाच्छादित पर्वत श्रेणियां दिन भर में अपने हज़ार रूप बदलती हैं। यह इलाका बहुत लम्बे समय से लिखने.पढ़ने वालों का प्रिय रहा है। बताया जाता है ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर लम्बे समय तक यहाँ रहे और उन्होंने अनेक रचनाएं यहाँ कीं। बताया तो यह भी जाता है कि वे शान्तिनिकेतन का निर्माण भी इसी इलाके में करना चाहते थे। प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है।
होली के दिन 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश क्र फर्रूखाबाद में जन्मी महादेवी वर्मा को आधुनिक काल की मीराबाई कहा जाता है। वह कवयित्री होने के साथ एक विशिष्ट गद्यकार भी थीं। उनके काव्य संग्रहों में नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, दीपशिखा, यामा और सप्तपर्णा शामिल हैं। गद्य में अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी और मेरा परिवार उल्लेखनीय है। उनके विविध संकलनों में स्मारिका, स्मृति चित्र, संभाषण, संचयन, दृष्टिबोध और निबंध में श्रृंखला की कड़ियां, विवेचनात्मक गद्य, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध शामिल हैं। उनके पुनर्मुद्रित संकलन में यामा, दीपगीत, नीलाम्बरा और आत्मिका शामिल हैं। गिल्लू उनका कहानी संग्रह है।
उन्होंने बाल कविताएं भी लिखीं। उनकी बाल कविताओं के दो संकलन भी प्रकाशित हुए, जिनमें ठाकुर जी भोले हैं और आज खरीदेंगे हम ज्वाला शामिल हैं। गौरतलब है कि महादेवी वर्मा ने सात साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था। उनके काव्य का मूल स्वर दुख और पीड़ा है, क्योंकि उन्हें सुख के मुकाबले दुख ज्यादा प्रिय रहा। खास बात यह है कि उनकी रचनाओं में विषाद का वह भाव नहीं है, जो व्यक्ति को कुंठित कर देता है, बल्कि संयम और त्याग की प्रबल भावना है। उन्होंने खुद लिखा है, मां से पूजा और आरती के समय सुने सुर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे।
मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पड़ोस की एक विधवा वधु के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र लिखे थे, जो उस समय की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। व्यक्तिगत दुख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है। उन्होंने 1955 में इलाहाबाद में साहित्यकार संसद की स्थापना की। उन्होंने पंडित इला चंद्र जोशी की मदद से संस्था के मुखपत्र साहित्यकार के संपादक का पद संभाला। देश की आजादी क बाद 1952 में वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य चुनी गईं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया। 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय ने उन्हें डी लिट की उपाधि दी। इससे पहले उन्हें नीरजा के 1934 में सक्सेरिया पुरस्कार और 1942 में स्मृति की रेखाओं के लिए द्विवेदी पदक प्रदान किया गया। 1943 में उन्हें मंगला प्रसाद पुरस्कार और उत्तर प्रदेश के भारत भारती पुरस्कार से भी नवाजा गया।
यामा नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप भी प्रदान की गई। उन्होंने एक आम विवाहिता का जीवन नहीं जिया। 1916 में उनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज कस्बे के निवासी वरुण नारायण वर्मा से हुआ। महादेवी वर्मा को विवाहित जीवन से विरक्ति थी, इसलिए पति से उनका कोई वैमनस्य नहीं था। वह एक संन्यासिनी का जीवन गुजारती थीं। उन्होंने पूरी जिंदगी सफेद कपड़े पहने। वह तख्त सोईं। कभी श्रृंगार नहीं किया। 1966 में पति की मौत के बाद वह स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं। 22 सितंबर, 1987 को प्रयाग में उनका निधन हुआ। बीसवीं सदी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार रहीं महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में धुव्र तारे की तरह प्रकाशमान हैं। 11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा की मृत्यु हो गयी। उनके जाने के बाद लम्बे समय तक यह भवन उपेक्षा का शिकार बना रहा लेकिन महादेवी जी के सलाहकार रामजी पाण्डेय, उपन्यासकार लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही और कवि.सम्पादक वीरेन डंगवाल के प्रयासों से सरकार ने इस इमारत में दिलचस्पी ली और इसे नैनीताल स्थित कुमाऊँ विश्वविद्यालय की देखरेख में एक साहित्य.संग्रहालय का रूप दे दिया गया।
आज इस भवन में महादेवी वर्मा सृजन पीठ नामक महत्वपूर्ण साहित्यिक केंद्र संचालित होता है जो वर्ष भर होने वाले विविध कार्यक्रमों में देश के युवा.वरिष्ठ लेखल.रचनाकारों की उपस्थिति सुनिश्चित करता है। कवयित्री महादेवी वर्मा ने वर्ष 1938 में उमागढ़ मल्ला रामगढ़ में अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए मीरा कुटीर का निर्माण करवाया। वे निरंतर यहां आकर साहित्य सृजन और समाज सेवा का कार्य करती थीं। रामगढ़ तथा आस.पास के क्षेत्र की अनेक निर्धन बालिकाओं को वे अपने साथ इलाहाबाद ले गईं और पढ़ा.लिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। ष्मीरा कुटीर का महत्व इस कारण भी है कि यहीं उन्होंने अपने कविता संग्रह दीपशिखा की कविताएं लिखीं । अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएं के कुछ शब्दचित्र भी इसी घर में रच गए। हिंदी के कई सुविख्यात साहित्यकार यहां महादेवी वर्मा से मिलने आते थे। इला चंद्र जोशी ने वर्ष 1960 में इसी घर में रहकर अपना उपन्यास ऋतुचक्र लिखा। इसके अलावा सुमित्रानंदन पंत की अनेक प्रकृति संबंधी कविताएं, डाण् धर्मवीर भारती के यात्रा.संस्मरण, डाण् धीरेंद्र वर्मा, गंगा प्रसाद पांडे आदि ने अपनी अनेक रचनाएं इसी भवन में लिखीं। ऐसे में संस्कृति.प्रेमियों के लिए यह स्थान किसी साहित्यिक तीर्थ से कम नहीं है। अगर इस संस्था को बचाना है तो उसे विश्वविद्यालय और सरकार के कब्जे से निकाल कर पूरी तरह स्वायत्त किया जाना चाहिए। जरूरी है कि देश का पूरा लेखक समुदाय एकजुट होकर इसकी मांग करे। यह इसलिए भी जरूरी है कि इससे देश में साहित्यिक संस्थाओं को राजनीतिकों और नौकरशाहों के कब्जे से छुड़ा कर स्वायत्तता की राह पर बढ़ाया जा सकेगा।

Share153SendTweet96
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

चमोली जिले में छह की रिपोर्ट कोरोना पाजिटिव

Next Post

बढ़ती बेरोजगारी के खिलाफ तहसील मुख्यालय में कांग्रेसियों का धरना

Related Posts

उत्तराखंड

बहरीन में चल रहे यूथ एशियन गेम्स में कबड्डी में उत्तराखण्ड के खिलाड़ियों ने किया देश और प्रदेश का नाम रोशन

October 26, 2025
19
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को भगवान बद्रीविशाल के दर्शन पूजन कर प्रदेश की खुशहाली की कामना की

October 26, 2025
11
उत्तराखंड

“देवभूमि सांस्कृतिक महोत्सव 2025” में स्थानीय समुदायों, पर्यटकों और गणमान्य अतिथियों की उत्साहपूर्ण सहभागिता देखने को मिली

October 26, 2025
4
उत्तराखंड

माणा गाँव में देवभूमि सांस्कृतिक महोत्सव का भव्य समापन — सीमांत क्षेत्रों में पर्यटन और आर्थिकी को नई उड़ान

October 26, 2025
8
उत्तराखंड

इंटर कॉलेज मोटाढाक में हुआ ब्लॉक स्तरीय विज्ञान महोत्सव संपन्न

October 26, 2025
40
उत्तराखंड

उत्तराखंड ग्रामीण बैंक ने आपदा प्रभावितों की सहायता एवं पुनर्निर्माण कार्यों के लिए ₹ 35,49,371 की धनराशि मुख्यमंत्री राहत कोष में प्रदान की

October 25, 2025
10

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67470 shares
    Share 26988 Tweet 16868
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45755 shares
    Share 18302 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38026 shares
    Share 15210 Tweet 9507
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37422 shares
    Share 14969 Tweet 9356
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37293 shares
    Share 14917 Tweet 9323

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

बहरीन में चल रहे यूथ एशियन गेम्स में कबड्डी में उत्तराखण्ड के खिलाड़ियों ने किया देश और प्रदेश का नाम रोशन

October 26, 2025

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को भगवान बद्रीविशाल के दर्शन पूजन कर प्रदेश की खुशहाली की कामना की

October 26, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.