डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
नौनिहाल शिक्षकों की राह देखते देखते थक चुके हैं कोदो-झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे नारा 1990 के दशक में उत्तराखंड की स्थापना के लिए आंदोलन के दौरान प्रचलित था, राज्य आंदोलनकारियों के इस नारे और आंदोलन की बदौलत उत्तराखंड अलग पहाड़ी राज्य बना, लेकिन समय बीतने के साथ ही पहाड़ के युवाओं का पहाड़ के जिलों में नौकरी से लगाव कम होता जा रहा है।हरिद्वार, नैनीताल, देहरादून आदि सुविधाजनक जिलों के लिए पर्वतीय जिलों में शिक्षक के पद पर कार्यभार ग्रहण करने के बाद नौकरी छोड़ रहे हैं। प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में सहायक अध्यापक के 2,906 पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। शिक्षा निदेशालय के मुताबिक, चार चरणों में हुई काउंसलिंग के बाद 2,296 शिक्षकों का चयन किया जा चुका है। इसमें से अधिकतर को नियुक्तिपत्र दिए जा चुके हैं, जबकि अन्य पदों के लिए पांचवें चरण की काउंसलिंग होनी है, लेकिन पहाड़ के जिन जिलों में अभ्यर्थियों ने शिक्षक भर्ती के लिए आवेदन किया था। उन जिलों में आवेदन करने के बावजूद अभ्यर्थी नौकरी करने को तैयार नहीं, जो सुविधाजनक जिलों में आने के लिए पहाड़ के जिलों की नौकरी छोड़ रहे हैं। इससे विभाग में इन जिलों में शिक्षकों के पदों को भरने की चुनौती बनी है। अपर शिक्षा निदेशक आरएल आर्य के मुताबिक, शिक्षक भर्ती के लिए शिक्षा निदेशालय ने शिक्षक के पद पर कार्यभार ग्रहण करने के बाद नौकरी छोड़ने वाले शिक्षकों के बारे में सभी जिलों से सूचना मांगी है। सुविधाजनक जिलों में आने के लिए ये शिक्षक दूरस्थ पर्वतीय जिलों से नौकरी छोड़ रहे हैं।शिक्षा निदेशालय से सूचना मांगने के बाद अब तक तीन जिलों ने शिक्षा निदेशालय को जो जानकारी भेजी है, उसके मुताबिक रुद्रप्रयाग जिले में छह और पौड़ी जिले के आठ नवनियुक्त शिक्षक नौकरी छोड़ चुके हैं। हालांकि, उत्तरकाशी जिले में इस तरह के शिक्षकों की संख्या शून्य है, जबकि अन्य जिलों से अभी इसकी सूचना आनी है।शिक्षक भर्ती के कुछ शिक्षक पदभार ग्रहण करने के बाद पद से इस्तीफा दे रहे हैं। सुविधाजनक जिलों में आने के लिए वे यह सब कर रहे हैं। बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने के ढोल पीटे गए पर अटल उत्कृष्ट विद्यालय ही प्रवक्ताओं, शिक्षकों व स्थाई प्रधानाचार्य की तैनाती को तरस गए हैं। समीपवर्ती अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटर कॉलेज भुजान में प्रधानाचार्य की कुर्सी स्थाई प्रधानाचार्य का इंतजार कर रही है तो वहीं हिंदी, वाणिज्य, कृर्षि, संस्कृत जैसे महत्वपूर्ण विषयों के पद रिक्त था । विज्ञान, व्यायाम, वाणिज्य विषय के सहायक अध्यापक तथा कार्यालय भी कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। इसकी वजह दूरदराज में स्थापित इन विद्यालयों की ओर शिक्षक रुख नहीं कर रहे हैं। मौजूदा व्यवस्था में इन विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति राजकीय शिक्षकों से ही प्रतिनियुक्ति या सामान्य तैनाती के रूप में हो रही है। विद्यालयों में की जिम्मेदारी से बंधने और प्रतिनियुक्ति के एवज में अतिरिक्त भत्ता या वेतन नहीं मिलने के कारण शिक्षक इन विद्यालयों की ओर रुख नहीं कर रहे राज्य अपने स्थापना के 25वें वर्ष में है, लेकिन पर्वतीय जिलों के सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित जैसे महत्वपूर्ण विषयों में प्रवक्ताओं के पद खाली पड़े हैं, जबकि सरकार समय-समय पर भर्ती के निर्देश जारी करती रही है। 2017 में शिक्षकों के तबादलों में पारदर्शिता के लिए एक एक्ट बनाया गया था, जिससे उम्मीद की जा रही थी कि दुर्गम और अति दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों की तैनाती सुनिश्चित होगी। हालांकि, इस एक्ट के बावजूद पर्वतीय जिलों में शिक्षकों की कमी की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है। कई सिफारिशी शिक्षक एक बार सुविधाजनक स्कूल में तैनाती के बाद फिर कभी पहाड़ की ओर नहीं गए। लेकिन शिक्षक हम नहीं सुधरेंगे, चाहे तुम कितना जतन कर लो की तर्ज पर चल रहे हैं। जिले में अगर शिक्षा विभाग सारी व्यवस्था में सुधार करने के लिए डाल- डाल चल रहा है तो दूसरी ओर शिक्षक पात- पात चलने लगे हैं उत्तराखंड के कई स्कूल शिक्षक विहीन हैं. जहां शिक्षक तैनाती के बाद जाना ही नहीं चाहते. ऐसे में स्कूल एकल टीचर के सहारे चल रहे हैं और कई स्कूलों में ताले लटक गए हैं. विभाग ने कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को शिफ्ट कर दिए हैं. जिससे स्थानीय लोगों को बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के लिए पलायन करना पड़ रहा है. उत्तराखंड में बुनियादी सुविधाओं के अभाव में पलायन लगातार बढ़ रहा है. वहीं स्कूलों में अध्यापक ना होने से लोग बच्चों को बढ़ाने के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं.. पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित विद्यालय शिक्षकों की कमी से कराह रहे हैं। हालात यह है कि प्रधानाचार्य तक के पद रिक्त पड़े हैं। बामुश्किल प्रभारी प्रधानाचार्यो के भरोसे विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं। नौनिहाल शिक्षकों की राह देखते देखते थक चुके हैं,उम्मीद है लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।