डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत में हर महीने अनेकता में एकता का संदेश देने वाले कोई ना कोई पर्व.त्योहार मनाए जाते रहते हैं। भगवान के विविध रूपों की पूजा.अर्चना कर लोग आत्मिक शांति पाते हैं। इसी कड़ी में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इसके लिए शहर से लेकर गांव तक में विभिन्न रंगों के अनंत की बिक्री जोर.शोर से हो रही है। अनंत के दामों में करीब दोगुनी वृद्धि हुई है, बावजूद इसके लोग खरीद रहे हैं।
आज पूरे देश भर में अनंत चतुर्दशी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें श्रद्धालु दो आराध्यों की पूजा.अर्चना करते हैं। यह दो आराध्य कौन से हैं। पहले भगवान विष्णु की भक्त उपासना करते हैं। दूसरे गणेश की विदाई यानी विसर्जन का दिन भी अनंत चतुर्दशी को किया जाता है। पहले बात करेंगे गणपति बप्पा की । सही मायने में भगवान गणेश का विसर्जन भक्तों के लिए सबसे बड़ी कठोर विदाई का समय रहता है । इसका कारण है कि भगवान बप्पा को भक्त 10 दिन तक अपने घरों में विराजमान करते हैं उसके बाद विदाई दी जाती है । यहां आपको बता दें कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से चतुर्दशी तिथि तक गणेश की उपासना के लिए गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है । इसे नौ दिन गणेश नवरात्रि भी कहा जाता है । ऐसी मान्यताएं हैं कि प्रतिमा का विसर्जन करने से भगवान फिर से कैलाश पर्वत पहुंच जाते हैं। गणेश चतुर्थ पर स्थापना से ज्यादा विसर्जन की महिमा होती है। इस दिन अनंत शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं । कुछ विशेष उपाय करके इस दिन जीवन कि मुश्किल से मुश्किल समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है ।
आज महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों में भगवान गणेश की विदाई करने के लिए श्रद्धालुओं को भावुक देखा जा सकता है । अनंत चतुर्दशी के दिन पूरे देश भर में श्रद्धालु भगवान विष्णु की पूजा.अर्चना करते हैं । इस दिन महिलाएं सौभाग्य की रक्षा एवं सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है । इसके लिए अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा जाता है । बंधन का प्रतीक सूत्र हाथ में बांधा जाता है और व्रत के पारायण के समय इसको खोल दिया जाता है । इस दिन गजेंद्र मोक्ष का पाठ करने से जीवन की तमाम विपत्तियों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को सुबह व्रत के लिए संकल्प लेना चाहिए व भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। विष्णु के सामने 14 ग्रंथियुक्त अनंत सूत्र को रखकर भगवान विष्णु के साथ ही उसकी भी पूजा करनी चाहिए। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का संबंध महाभारत काल से है।
कथा अनुसार, कौरवों से जुआ हारने के बाद पांडव वन.वन भटक रहे थे तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा हे धर्मराज जुआ खेलने के कारण देवी लक्ष्मी आप से रुष्ट हो गई हैं, उन्हें प्रसन्न करने के लिए आपको अपने भाइयों के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत रखना चाहिए। हिंदू शास्त्रों में अनंत चतुर्दशी देशभर में पूरे श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। अनंत चतुर्दशी पर देशभर में अनंत सूत्र बांधने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बता दें कि अनंत सूत्र को लेकर ये मान्यता है कि इस सूत्र में भगवान विष्णु का वास होता है। अनंत चतुर्दशी पर अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद इसे बांह में बांधा जाता है।
अनंत सूत्र को पहने से पहले ये जान लेना चाहिए कि अनंत सूत्र में 14 गांठें होनी चाहिए। क्योंकि 14 गांठों को 14 लोकों से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि भौतिक जगत में 14 लोक बनाए जिनमें भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितलए सतलए रसातलए तलातलए महातल और पाताल लोक शामिल हैए अनंत सूत्र में लगने वाली प्रत्येक गांठ एक लोक का प्रतिनिधित्व करती है । आज के दिन अनंत कथा सुनने अनंत धारण करने के साथ मीठा पकवान भगवान विष्णु को अर्पित कर प्रसाद स्वरूप परिजनों सहित ग्रहण करना पूर्ण फलदाई माना जाता है । मान्यता है कि इस दिन व्रती अगर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें तो उसकी सभी मनोकामना पूरी हो जाती है।
मान.सम्मान, धन.धान्य, सुख.संपदा और संतान इत्यादि सुख की प्राप्ति होती है। शास्त्र कहते हैं कि पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रःय अर्थात. जो नरक से त्राण ; रक्षा द्ध करता है वही पुत्र है। श्राद्ध कर्म के द्वारा ही पुत्र जीवन में पितृ ऋण से मुक्त हो सकता है इसीलिए शास्त्रों में श्राद्ध करने की अनिवार्यता कही गई है। जीव मोहवश इस जीवन में पाप.पुण्य दोनों कृत्य करता है। पुण्य का फल स्वर्ग है और पाप का नर्क।
नर्क में पापी को घोर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं और स्वर्ग में जीव सानंद रहता है। जन्म.जन्मांतर में अपने किये हुए शुभाशुभ कर्मफल के अनुसार स्वर्ग.नरक का सुख भोगने के बाद जीवात्मा पुनः चौरासी लाख योनियों की यात्रा पर निकल पडती है अतः पुत्र.पौत्रादि का यह कर्तव्य होता है कि वे अपने माता.पिता तथा पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके। शास्त्रों में मृत्यु बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्मविपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है। श्रद्धा पूर्वक करने से पितरों को तृप्त कर देगा और आपके पितृ आशीर्वाद देने के लिए विवश हो जायेंगे जिससे आपके कार्य व्यापारए शिक्षा अथवा वंश बृद्धि में आ रही रुकावटें भीदूर हो जायेंगी। नेचुरोपैथी और आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है। इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता हैए रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है। इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं तो उस पर भी इसका असर होता है। रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। यह पेट को ठंडक पहुंचाती है। श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है। इस दिन नवान्न ;नए पके हुए अनाज कीद्ध रसोई बनाई जाती है । श्रीलक्ष्मी तथा ऐरावत पर आरुढ़ इंद्र की पूजारात्रि के समय की जाती है । पूजा के उपरांत पोहे तथा नारियल पानी देव तथा पितरों कोसमर्पित करने के पश्चात् नैवेद्य के रूप में घर के सभी उपस्थित सदस्य ग्रहण करते हैं । शरद ऋतु की पूर्णिमा पर चांद की रोशनी में गाढ़ा दूध बनाकर चंद्र को उसी का नैवेद्य दिखाया जाता है । उसके पश्चात् नैवेद्य के रूप में वही दूध ग्रहण किया जाता है। इस दूध में स्थूल तथा सूक्ष्म रूप से चंद्र का रूप तथा तत्त्व आकर्षित होता है। चंद्र के प्रकाश में एक प्रकार की आयुर्वेदिक शक्ति रहती है। अतः यह दूध आरोग्य दायी होता है