शंकर सिंह भाटिया
देहरादून। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि यदि आगामी चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई तो गैरसैंण को पूर्णकालिक राजधानी बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने वाली भाजपा ने वहां ग्रीष्मकालीन राजधानी का बोर्ड तक नहीं लगाया है। उन्होंने भाजपा से पूछा कि राजधानी कहां हैं? ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के बाद एक दिन भी राजधानी की तरह वहां काम क्यों नहीं किया गया?
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उत्तराखंड समाचार के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर ‘‘उत्तराखंड के सुलगते सवालों’’ पर एक खास मुलाकात में चर्चा कर रहे थे। लंबी बातचीत में उन्होंने कहा कि भराड़ीसैंण की टाउनशिवप नोटिफाई कर दी थी। वहां क्रमबद्ध तरीके से डेवलेप करने की जरूरत है। सचिवालय बनाएं, टाउनशिप बनाएं। भराड़ीसैंण एक बेहतर हिल स्टेशन बनाया जा सकता है। यह कह कुछ नहीं रहे हैं, ग्रीष्मकालीन शब्द जुमला बनकर रह गया है। उन्होंने कहा कि यदि हम सत्ता में आए तो गैरसैंण को पूर्णकालिक राजधानी बनाएंगे। हमने विधानसभा तथा विधानसभा के बाहर भी इस बात को कहा है, यह हमारा आधिकारिक बयान है। भारतीय जनता पार्टी ने ग्रीष्मकालीन राजधानी तो बना दी, लेकिन आगे कुछ नहीं किया। एक दिन भी सरकार वहां नहीं गई, अब तो ग्रीष्मकाल भी चला गया है, ठंड आ गई है, वहां ग्रीष्मकालीन राजधानी का बोर्ड तक नहीं लगाया गया है। उन्होंने कहा कि गैरसैंण में ढांचा हमारी सरकार ने बनाया है। उनके सरकार की योजना तो भराड़ीसैंण में एक नियोजित टाउनशिप बनाने की थी। उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि उन्होंने गैरसैंण में सचिवालय स्थापना के लिए 57 करोड़ की धनराराशि जारी की थी, वर्तमान सरकार उसका उपयोग वहां करने के बजाय उस राशि को देहरादून में खर्च कर रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उत्तराखंड समाचार के संपादक शंकर सिंह भाटिया से बात करते हुए कहा कि यह सच है कि उत्तराखंड की बहुत सारी परिसंपत्तियां आज बीस साल बाद भी उत्तर प्रदेश के कब्जे में हैं। इसके लिए नौकरशाही ने भेदभावपूर्ण प्रस्ताव बनाया। उन्होंने कहा कि आज भाजपा की डबल इंजिन की ही नहीं तीन इंजिन की सरकार है। उत्तराखंड की परिसंपत्तियों के मामले को इसे सुलझाना चाहिए था, लेकिन दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि इससे बेहतर काम तो जब यूपी में सपा तथा उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी, तब हुआ था। उन्होंने कहा कि परिसंपत्तियों के मामले को आज कोई नहीं उठा रहा है, मीडिया भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए है। उत्तराखंड समाचार द्वारा इस मामले को प्रमुखता से उठाने पर उन्होंने धन्यवाद दिया। संपत्ति के बंटवारे के वक्त हमने सवाल उठाए थे, उत्तर प्रदेश की ब्यूरोके्रसी हावी रही, एकतरफा बिल डाफ्ट किया गया। बिल में पूरी जानकारियां नहीं रखी गई, इसकी वजह से दिक्कतें आई हैं। कुछ कोशिश की गई। सिंचाई तथा रोडवेज की परिसंपित्तयां ठीक करने का प्रयास हमने किया, लेकिन यूपी की उदासीनता के कारण मामला सुलझ नहीं पा रहे हैं। जब दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार बनी तब लग रहा था कि यह मामला सुलझा लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राज्य सरकार ठीक तरह से मामले को आगे नहीं बढ़ा पा रही है, ठीक से फोकस नहीं कर पा रही है। आप बधाई के पात्र हैं, आपने इस प्रश्न को उठाया। यहां तक कोई इस सवाल पर बात भी करने को तैयार नहीं है। जब इन सवालों को हमने उठाने का प्रयास किया तो लोग कहते थे कि नहीं इससे तालुकात बिगड़ जाएंगे। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट हमारे पक्ष में निर्णय देगा।
उन्होंने कहा कि बिजली उत्पादन के लिए पानी के बदले राज्य ने रायल्टी लेने की योजना बनाई थी। इसके लिए पूरी योजना बना ली गई थी। इसी बीच चुनाव आए और हम हार गए। नई सरकार ने मामले को आगे नहीं उठाया। मामले को वहीं रोक दिया गया।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में सरकार मोबाइल वैन लगाकर शरब बेच रही है। गांव-गांव तक बैंडरों द्वारा शराब बेची जा रही है। 2017 में राजस्व वृद्धि दर 19 प्रतिशत के आसपास थी। अब यह 6 प्रतिशत के करीब है। समझ नहीं आता कि सरकार शराब बिकवा रही है, खनन कर रहे हैं, फिर भी इतना पीछे क्यों हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह दावा करते हैं कि जितना केंद्र से हम पैसा लेकर आए, ये उतना भी नहीं ला पाए।
उन्होंने दावा किया कि चार धाम मार्ग का प्रोजेक्ट उनका बनाया हुआ है। यह बात अलग है कि इस सरकार ने अन्य योजनाओं की तरह इसे बंद नहीं किया। उन्होंने कहा कि हमने साथ बने दो राज्यों से अधिक प्रगति की है। आज राज्य की प्रति व्यक्ति इनकम दो लाख रुपये से अधिक है। बिहार राज्य में प्रति व्यक्ति इनकम 82 हजार रुपये है। हमने प्रगति की है। हमारे पास दो अंतर्राष्टीय स्टेडियम हैं, इंजीनियरिंग कालेज, मेडिकल कालेजों का समूह है। यदि शिक्षा को प्रतियोगितात्मक बना सकें तो राज्य को खुशहाल बना सकते हैं। हमने बेरोजगारी कम करने के पूरे प्रयास किए। कोविड के बाद दुनिया के सबसे अधिक जाब मेडिकल के क्षेत्र में निकलेंगे। देखना पड़ेगा कि सबसे अधिक रोजगार के अवसर कहां हैं, वहां कदम बढ़ाने पड़ेंगे। राज्य के अंदर अवसर पैदा करने वाली चीजों पर बारीक नजर रखनी पड़ेगी।
उन्होंने कहा कि पहाड़ों में भी विकास के काम हुए हैं। बड़ी इच्छा थी कि एक क्रिकेट स्टेडियम चंपावत लेकर जाऊं। उसके लिए सात करोड़ मंजूर किए थे, लेकिन इन्होंने उस पर काम बंद कर दिया है। इस बात को मानता हूं कि विकास संतुलित होना चाहिए।
हरीश रावत ने कहा कि जब राज्य बना बुनियादी चीजों पर ध्यान नहीं दिया गया। हमने जमीनी चीजों को उठाया। 60 साल से अधिक के प्रत्येक व्यक्ति को पेंशन दिलाई। पहाड़ से पलायन में सभी सक्षम लोग निकल आए। लोगों को गांव में मिलीजुली खेती करने को प्रोत्साहित किया। पहाड़ों में मंडियां खोलने के प्रयास किए। मुझे उसे आगे ले जाने का वक्त ही नहीं मिला। पहाड़ में संभावनाएं पैदा करनी होगी, उसी से संतुलित विकास हो सकता है।
श्री रावत ने आरोप लगाया कि पहाड़ में जमीनों के संरक्षण को लेकर विधानसभा में इतनी साइलेंटली कानून बना दिया गया। जिस उत्तराखंड की विधानसभा ने जल जंगल जमीन की बात की थी, लेकिन अब वही विधानसभा ऐसा कानून बना रही है, जहां जमीनें सबके बिकने के लिए खोल दी गई। उन्होंने कहा कि मेरे गांव में नई बनी सड़क में बड़े-बड़े रिजोर्ट बना दिए गए हैं। पता किया गया तो मालूम हुआ कि सारी जमीनें बिक चुकी हैं। किसी स्थानीय व्यक्ति ने एक भी होम स्टे नहीं बनाया। हमने जमीनें लीज पर दी, आज सबको जमीन लेने की छूट दे दी गई। इन हालात में संभावनाओं वाली उत्तराखंड की जमीनें यहां के लोगों के हाथों से निकल जाएंगी। आने वाला समय हिमालय का है। आज हिमाचल माडल के रूप में खड़ा है। उन्होंने आने वाले समय को देखा, हमने आसमान की ओर देखा। जमीनें लुट गई। इतने सुनसान तरीके से कानून बन गया, लेकिन किसी ने आह तक नहीं भरी।
उन्होंने कहा कि आंदोलनकारी उस समय सुविधाओं के लिए धमकाते थे, पेड़ में भी चढ़ जाते थे। आज कोई नहीं कर रहा है तो सब चुप हैं। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि मैं कर रहा था। उनके लिए उस देवर की तरह था, जिसके कान उमेठे जा सकते सकते थे। लेकिन न देने वाले जेठ हैं। ये लोग उसने शरमा जाते हैं। उनसे मांगने भी नहीं जाते। आज भी यदि हमारी सरकारी आएगी तो उसके फिर से दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का कानून पारित किया जाएगा।