कुमाउंनी में एक लेख
द्वि हजार बीस ले न्है ग्यो पैं, बेचैनी, डर, महामारी को बरस बिति ग्यो। नयं साल, कैं दी ग्यो बिमारी, बेरोजगारी, ठप कारोबार, बेचैनी, कुंठा और अवसाद। हम, सब्बै यो उमीद करनू कि नयं साल में कोरोना महामारी दूर होलि, ईस्कूल कालेज, कारखाना, बजार दुकान, होटल रेस्टोरेंट खुलाला, हालात नार्मल है जाला्, नयं नयं रोजगार का मौका पढ़ी लेखि लौंड मौंडन मिलाला, खुशहाली आलि, बेचैनी.कुंठा, अवसाद दूर होलो।
द्वि हजार बीस में कोरोना महामारी ले पुरी दुनिया में तबाही मचै छ, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, सब किसम का कारोबार चौपट करि दियान। महामारी, को मुकाबला हमार देश में ले भली कै भ्योछ, मगर दिवाली और मैंगसिर का लगनो में जो भिड़च्येप भैछ वीका बाद हालात बिगड़न लाग्यान। ज्यादातर, लोगन ले भौत अनुशासन और संभलि बेर हालात को मुकाबला करी। अघिलकै, और ज्यादा अनुशासन, धैर्ज और होशियारी कि जर्वत छ। कुछ, जागन् ईस्कूलो में प्री.बोर्ड परीक्षा शुरू है गै छन, कुछ इंग्लिश मीडियम ईस्कूलो ले नान् नान्तिनो कि क्लास ले शुरू करि दियान। एक जानकारी का मुताबिक बिति साल साढ़े पांच सौ डाक्टरो कि कोरोना महामारी का वीले असमय मौत भै छ। अपनि, ड्यूटी करते हुए भौत नर्स, स्वास्थ्य कर्मी, स्वच्छता कर्मी, पुलिस वाला् और शिक्षक ले शहीद भयीं। उन, सबन विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित छ।
एक ठुलो सवाल आब् यो छ कि आंखिर कोरोना महामारी जसि बिमारी किलैए कसिकै और कैकि लापरवाही ले उपजन.फैलन लागि रै छन। तथाकथित, विकास का वीले धर्ति को जो विनाश और दोहन इंसान करन लागि रौ छ वीको अंजाम के होलो और अंधाधुंध खनन, जंगलों को विनाश, जैवविविधता को नष्ट हुनो, कब तलक चलोल, कां हमन ल्है जालो और कैका भला खिन, कैका लिजी यो सब हुन लागि रौ यो सोचन विचारन को टैम आब् आइ ग्योछ। आंखिर, हम यो कब समझंल कि उद्योग व्यापार, कल.कारखाना, तमाम उपकरण औजार हम इंसानों ले अपनि सुविधा, सुख का लिजी बनाई, ईजाद करीं। आब्, यो तमाम औद्योगिकीकरण, संचार, मनोरंजन, परिवहन का साधन, उपभोग का तामझाम हम इंसानों पर बोझ तो नै है ग्या कि और इनन जमक्यून, इस्तेमाल उपभोग करन में हम इंसानियत है भ्यार त नै न्है जान् लागि रयां कि यो धरती यो पृथ्वी और ये का सब्बै संसाधन तो सब इंसानों और जीव जंतुओं कि साझि भै, थ्वाड़ भौत लोग.चाहे उन चालाक नेता शासक होउन या पूंजीपति उनन ये धरति और वीका संसाधनों कि बर्बादी को हक कैले दी राखौ।
जब आज दुनिया कि भौत ठुलि आवादी बेरोजगारी, संसाधन हीनता, भुखमरी का कगार में छ तो इन बातों पर तमाम लोगों ले गंभीरता ले विचार करन होलो।
नयं साल में हम सब.कम है कम पढ़नेर, लेखनेर, साहित्यकार, कवि, पत्रकार, शिक्षक लोग इन बातों पर मनन करला और मानवता कि भलाई बेहतरी खिन काम करला।
दिनेश भट्ट सोर पिथौरागढ़ भटि…