फोटो–भेड-बकरियों का झुंड सीमावर्ती बुग्यालों में पंहुचे।
प्रकाश कपरूवाण
जोशीमठ। भारत-चीन सीमा पर अतिरिक्त चैकसी के कारण इस बार चरवाहों को बाडाहोती क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं मिल सकी। हाॅलाकि नीती घाटी के अन्य उच्च हिमालयी बुग्यालों में भेड-बकरी चुगान के लिए प्रशासन स्तर से संस्तुति मिल चुकी हैं। और चरवाहे इन स्थानों में पंहुच भी गए है। भेड पालक संगठन ने चरवाहों को बिना किसी देरी के बडाहोती छोडकर अन्य स्थानों की परमीशन देने पर स्थानीय प्रशासन का अभार जताया है।
लदाख की गलवान की घटना के बाद इस बार चरवाहों को फिलहाल बाडाहोती की परमीशन नही मिल सकी है। चमोली जनपद से लगी भारत-चीन सीमाओं पर बडाहोती पर ही चीन की कुदृष्टि हमेशा से रही है ंऔर कई बार चीनी सैनिको ने बडाहोती क्षेत्र मे घुसपैठ का भी असफल प्रयास किया है। यहाॅ तक वायुसीमा का उल्लंघटन भी चीन द्वारा इसी क्षेत्र मे किया जा चुका है। गलवान की घटना के बाद स्वाभाविक रूप से इस सीमा पर चैकसी बढा दी गई है। जिसके चलते फिलहाल चरवाहों को बडाहोती क्षेत्र मे जाने की अनुमति नही मिल सकी है। लेकिन इस पर भेड पालक संघ को किसी प्रकार का एतराज भी नही है क्योंिक स्थानीय प्रशासन ने विना किसी देरी के नीती घाटी के अन्य उच्च हिमालयी बुग्यालों मे चरवाहो को जाने की अनुमति दे दी है। और अब तक दस से 15टोली भेड-वकरियाॅ अनुमति मिले स्थानों मे पंहुच चुकी है। और हर टोली मे एक हजार से 15सौ तक भेड-वकरियाॅ होती है।
भारत-चीन सीमा पर बाडाहोती भेड पालको का सबसे पंसदीदा क्षेत्र है। और हर वर्ष यहाॅ करीब दो दर्जन से अधिक भेड-बकरियों की टोली जून से सितबंर तक यहाॅ रहती है। इसी क्षेत्र मे पूर्व वर्षो मे चीन द्वारा कई बार घुसपैठ कर पालसियों के टैण्ट व राशन को भी नष्ट करने की घटना को अंजाम दिया गया था। इसके वावजूद चरवाहे भेड-वकरियों को इसी क्षेत्र मे ले जाना पंसद करते है। और भेड बकरियों के चुगान के साथ ही ये चरवाहे मजबूत सूचना तंत्र का भी काम करते है। भेड पालक कल्याण समिति चमोली के सचिव रमेश सिंह फरस्वांण के अनुसार उन्है उम्मीद है कि भारत-चीन के बीच वर्तमान परिस्थिति सामान्य होने के बाद चरवाहों को बाडाहोती जाने की अनुमति भी मिल सकेगी।
भेड पालन कल्याण समिति चमोली के सचिव एंव उत्तराखंड शीप एंव ऊल डेवलेपमेंट बार्ड के सदस्य रमेश फरस्वांण कहते है कि चमोली जनपद की नीती-माणा घाटियो मे भेड पालको को आवागमन की कोई समस्या नही होती लेकिन शीतकाल मे जब भेड-बकरियों के साथ तराई व भाबर क्षेत्र मे पंहुचते है तो वहाॅ स्थानीय समुदाय के साथ ही वन विभाग भी बेहद परेशान करता है। भेड पालकों को तराई क्षेत्रों मे अपना पडाव अथवा शिविर बनाने के लिए कई बार भूमि दिए जाने की मांग पर वर्ष 2014 मे उत्तराख्ंाड सरकार ने भेड पालकों का आवास स्थल/पशुशाला प्रयोग हेतु 180वर्ग गज फीट भूमि का आवंटन किए जाने हेतु ऊधम सिंह नगर व हरिद्वार जनपदो को छोडकर शेष सभी जिलाधिकारियों को निर्देश जारी किए गए थे। लेकिन इस पर भी 6वर्ष बीतने के बाद भी कोई कार्यवाही नही कर सकी ।
श्री फरस्वांण ने कहा कि भेड पालको के साथ तराई क्षेत्र मे हो रही घटनाओं से क्षुब्ध होकर कई भेडपालक अब भेड पालन के ब्यवसाय से पीछे हटने लगे है। जबकि सरकारे पलायन रोकने व सीमावर्ती क्षेत्र मे मजबूत सूचना तंत्र का काम करने मे अग्रणी भेड पालन ब्यवसाय को चुनने के लिए प्रेरित करती रही है।












