महिपाल सिंह गुसाईं, गोपेश्वर।
पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की राजधानी पहाड़ के बीच ही स्थापित किए जाने के प्रसिद्ध पैरोकारों में सुमार पूर्व विधायक डॉ अनुसूया प्रसाद मैखुरी के आकस्मिक निधन पर गैरसैंण राज्य की स्थाई राजधानी बनने के संघर्ष को एक बढ़े झटके के रूप में देखा जा रहा हैं।
दरअसल उत्तराखंड राज्य आंदोलन की लड़ाई में अग्रणीय भूमिका में रहे, स्व डॉ अनुसूया प्रसाद मैखुरी ने 2000 में अलग राज्य उत्तराखंड बनाने के बाद प्रदेश की स्थाई राजधानी नही बनानें एवं देहरादून को राज्य की अस्थाई राजधानी घोषित किए जाने के बाद इस पहाड़ी राज्य में राज्य की स्थाई राजधानी के लिए एक और आंदोलन होने लगा जोकि अब भी जारी है। क्यूंकि स्थाई राजधानी का मुद्दा आज भी अनसुझा हुआ ही हैं। राज्य बनने के बाद स्थाई राजधानी को गैरसैंण में स्थापित किए जाने की मांग को लेकर अन्य आंदोलनकारियों की तरह हीए पूर्व विधायकए पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष एवं पूर्व बदरी.केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अनुसूया प्रसाद मैखुरी भी गैरसैंण के लिए लगातार संघर्षरत रहे। पहली बार 2002 के आम विधानसभा के चुनावों में विधायक बनने के बाद से ही जब.तब अपनी ही सरकार के विरुद्ध बोलते हुए राजधानी के मसले पर अपनी सरकार को पशोपेश में डालते रहे। इसके बाद फिर से 2012 में कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के ही टिकट से विधानसभा पहुंचने एवं उस समय उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाये जाने के बाद डॉ मैखुरी गैरसैंण राजधानी के मसले पर पिछली विधायकी के कार्यकाल से अधिक आक्रामक नजर आए थे ।
इस दौर में उन्होंने यहां पर कैबिनेट की बैठक से लेकर तंबूवो में ही सही विधानसभा सत्र संचालित करने के साथ ही विधान भवन से लेकर तमाम अन्य राजधानी स्तर की सुविधाओं को विकसित करने की जो नींव रखी थी उसे भुलाए नही भुलाया जा सकता हैं। डॉ मैखुरी के करीबी माने जाने वाले थराली के पूर्व विधायक डॉ जीत राम का कहना हैं कि जब भी वें स्व०डॉ मैखुरी के साथ बातचीत करते थे तो वे गैरसैंण राजधानी बनाने के मुद्दे पर जरूर चर्चा करते रहते थे। वास्तव में अब जबकि डॉ मैखुरी हमारे बीच नही है तो उनके द्वारा राजधानी गैरसैंण के लिए किए गए संघर्ष को किसी भी हाल में नही भुलाया जा सकता हैं