थराली से हरेंद्र बिष्ट।
13 दिनों की लंबी यात्रा के बाद आज वेदनी बुग्याल से मां नंदा भगवती को खाजा, कलेवों, भेंट पवाड़ा, भेटोली के साथ कैलाश को अश्रुपूरित विदाई दे दी गई। इसी के साथ श्री नंदा लोकजात यात्रा 2022 का विधिवत समापन हो गया।
नंदा सिद्धपीठ कुरूड़ से 22 अगस्त को शुरू हुई श्री नंदा लोकजात यात्रा शुक्रवार को अपने अंतिम पड़ाव गैरोली पातल पहुंच गई थी। शनिवार तड़के यात्रा गैरोली से वेदनी बुग्याल पहुंची। जहां पर नंदा भक्तों ने वेदनी कुंड में स्नान कर अपनी पितरों के तारण के लिए कुंड में तर्पण किया। उसके बाद कुंड के पास स्थित गौरी शंकर के मंदिर में नंदा भगवती को अकेले कैलाश विदाई के लिए जात नंदा की विशेष पूजा का आयोजन शुरू हुआ। जात के दौरान कई लोगों पर नंदा, लाटू सहित अन्य देवी.देवता अवतारित हुए और उन्होंने देव नृत्य कर मौजूद भक्तों को जौ, चावल के साथ ही ब्रहम कमल के फूलों की प्रसादी दी। इसके बाद अपनी लाडली को भक्तों ने कैलाश के लिए इस कामना के साथ कि अगले बरस और अधिक खाजा.कलेव, भेट.पवाडा एवं भेटोली के साथ वेदनी आ कर जात करेंगे देवी को अश्रुपूरित विदाई दी। उसके बाद नंदा की उत्सव डोली दोपहर के समय वापस लौट गई।
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मान्यता है कि वेदनी कुंड में मां नंदा देवी की मौजूदगी में किए गए तर्पण का सीधा लाभ तर्पण करने वाले व्यक्ति के पूर्वजों को मिलता हैं।यह कारण है कि साल में मात्र एक दिन के लिए कुछ घंटों के लिए नंदा की डोली के यहां पहुंचने पर तर्पण करने लिए लोग इंतजार करते हैं। डोली के पहुंचते ही कड़ाके की ठंड बावजूद लोग वेदनी कुंड में डुबकी लगाने के बाद तर्पण करते हैं।
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माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने वेदनी बुग्याल में बैठ कर मामा महादेव एवं पार्वती के आशीर्वाद से विश्व प्रसिद्ध वेदों की रचना की।इसी लिए इस स्थान का नाम वेदनी रखा गया।
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पहली बार सैकड़ों श्रद्धालुओं को बेदनीए आलीए सहित आस पास के बुग्यालों पर खिले ब्रहम कमल सहित एक से बढ़कर एक रंग.बिरंगे फूलों से दिदार होने का मौक़ा मिला। इस दौरान लोगों ने देवी नंदा को इन फूलों को चढ़ा कर पूजा.अर्चना भी की।