रिपोर्ट-सत्यपाल नेगी/रुद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड समाचार ने सबसे पहले इन ग्रामीणों की इस खबर का संज्ञान लेकर दिखाया था, साथ ही केदारनाथ विधायक, डीएफओ और जिलाधिकारी से फोन पर जानकारी जानी थी, केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत ने मंत्री से मुलाक़ात करने की बात कहीँ थी। जिसका असर दिखने लगा है। केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत ने इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य के वन मंत्री से मुलाक़ात कर समाधान का माँग पत्र सौंपा। वहीं वन मंत्री सुबोध उनियाल द्वारा डीएफओ रुद्रप्रयाग को जल्द आख्या प्रस्तुत करने के निर्देश दिये गये हैं।
जहाँ एक ओर सरकारें पहाड़ों से हो रहे पलायन को लेकर चिंता दिखाने का नकली ड्रामा कर रही हैं, साथ ही करोड़ों रूपये पशुपालन, बकरी.भेड़, पालन, जैसी स्वरोजगारपरक योजनाओं पर खर्च भी कर रही हो, मगर वहीं जमीनी तस्वीरों से हकीकत कुछ और ही बया करती दिख रही है।
जी हाँ हम बात कर रहे हैं, जनपद रुद्रप्रयाग के तहसील बसुकेदार, विकास खण्ड अगस्त्यमुनि के दूरस्थ गॉँव बड़ेथ .भटवाड़ी.डूगर सहित क्षेत्र के 14 गाँवों के जल, जंगल और मवेशियों के चारागाह को वन विभाग द्वारा छीनने के अधिकार की।
पहले एक स्थानीय युवक रघुनाथ द्वारा गीत के माध्यम से अपनी पीड़ा पर चार लाइने सुने’ ……..
रुद्रप्रयाग जिले के बड़ेथ, भटवाड़ी, डुगर सहित 3 ग्राम पंचायतों के बीच एवं 14 गाँवों की सदियों पुरानी वन छानियों यानि की बरसाती सीजन मे गॉव से दूर जंगल में घरियाणा नामक तोक में गाय.बैलों, भैस.बकरियों को उचित पौस्टिक हरी घास, चारापत्ती चुगान हेतु बनी अस्थाई गोशाला से हटाने के लिए वन विभाग द्वारा इन्हें यहाँ से हटाने का घमकी भरा नोटिस दिया गया है, जबकि ग्रामीणों का कहना है कि सैकड़ों वर्षो से हमारे पूर्वज इस घरेणा तोक की 20 नाली आबंटित जमीन पर तीन महीनों के लिए अपने पशुओं के साथ रहते आ रहे हैं, मगर पहली बार वन विभाग ने ऐसी हरकत की है कि हमारी पुस्तैनी परंपरा को समाप्त करने का दुसाहस किया है, जिससे ग्रामीण परेशान हैं।
देश के लगभग सभी पर्वतीय राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों मे अधिकतर ऐसी ही व्यवस्थायें चली आ रही हैं, मगर रुद्रप्रयाग जनपद मे इन पौराणिक पशुपालको के साथ ऐसा अन्याय क्यों?
इस संबंध मे ग्रामीणों द्वारा जिलाधिकारीएडीएफओएऔर स्थानीय विधायक को भी पत्र के माध्यम से न्याय दिलाने की माँग की गईं है, मगर अभी तक किसी भी स्तर से उचित आश्वासन इन पशु पॉलकों को नहीं दिया गया है।
अब सवाल यहाँ उठना भी लाजमी है कि आखिर सरकार पलायन रोकने के बड़े बड़े दावे केवल दिखाने मात्र के लिए कर रही है, जबकि करोड़ों रुपया स्वरोजगार के नाम पर, दिया जा रहा है, जिसमें पशुपालन, बकरी पालन भी शामिल है, आपको बता दें कि पहाड़ों में पशुपालन करना है, तो उनके लिए घास, खुली हवा, शुद्ध जल, सब जंगलों से ही मिलता है, जबकि ग्रामीणों की इस घरेणा तोक में सैकड़ों सालों से अस्थाई सीजनी गौशालायें/छानियां बनी हैं।
वहीं ग्राम प्रधानों एंव पशुपालको का कहना है कि अगर सरकार एंव वन विभाग का इसी प्रकार का रवैया रहा तो, वो दिन दूर नहीं, जब लोग पशुपालन करना भी छोड़ देंगे? साथ ही सरकार के बड़े बड़े दावे.वादे भी धरे के धरे रह जायेगे, और पहाड़ी गाँवों का अस्तित्व भी खत्म हो जायेगा।
अब देखना होगा कि जिला प्रशासन, वन विभाग और क्षेत्रीय विधायक के साथ साथ स्थानीय जनप्रतिनिधि कितनी जल्दी इस गंभीर समस्या का समाधान कराने में आगे आते हैं।