डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली ढेरों वनस्पतियों में से ज्यादातर औषधीय गुणों से युक्त हैं। बीते समय में इनमें से कई का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए या उनसे बचने के लिए भी होता है। पुरातन काल से ही ऋषि मुनियों एवं पूर्वजों द्वारा पौष्टिक तथा रोगों के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के जंगली पौधों का उपयोग किया जाता रहा है। अकरकरा एक आयुर्वेदिक औषधि का नाम है, जिसे पायरेथ्रम भी कहा जाता है। यह ऐसा पौधा है जो भारतीय आयुर्वेद के साथ.साथ यूनानी और हर्बल दवाओं में पुरुषों की बीमारियों, सामान्य ठंड, दांतों और पायरिया के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। अकरकरा का उपयोग अकरकरा पाउडर, अकरकरा चूर्ण, अकरकरा की जड़ के रूप में किया जाता है।
अंग्रेज़ी से अनुवाद किया गया कॉन्टेंट.एनासाइक्लस पाइरेथ्रम एक बारहमासी जड़ी बूटी है जो निवास स्थान और दिखने में कैमोमाइल की तरह है। नामक झाड़ीदार पौधा आजकल आपको यूँ ही लगा हुआ दिख जाएगा। कंपोसीटी कुल यानि भृंगराज कुल का यह झाड़ीदार पौधा पूरे भारत वर्ष में पाया जाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में खासकर मध्यकालीन ग्रंथों में इसे आकारकरभ नाम से वर्णित किया गया है, जिसे हिंदी में अकरकरा भी कहा जाता है। अंग्रेजी में इसी वनस्पति का नाम पेलिटोरी है। इस वनस्पति का प्रयोग पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा दांतों एवं मसूड़े से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने हेतु सदियों से किया जाता रहा है। संभवतः इन्ही कारणों से इसे टूथ.एक ट्री भी कहा जाता है। इस पौधे के सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग इसके फूल एवं जडें हैं। जब इसके फूलों एवं पत्तियों को चबाया जाता है तो यह एक प्रकार से दाँतों एवं मसूड़ों में उत्पन्न करता है।
इसके फूल इसके सबसे महत्वपूर्ण भाग हैं। यूँ तो इसे मूल रूप से ब्राजील एवं अफ्रीका से आयी वनस्पति माना जाता है, लेकिन यह हर प्रकार के वातावरण चाहे वो उष्णता हो या शीतकालीन में उगने वाली वनस्पति है। इस पौधे की विशेषता इसके फूलों का विशिष्ट आकार है जो कोन यानि शंकु के आकार के होते हैं। पत्तियों का प्रयोग त्वचा रोग में भी किया जाता है। इस वनस्पति में पाया जानेवाला स्पाइलेंथनॉल अपने एनाल्जेसिक एवं एनेस्थेटिक प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए जाना जाता है। यह लालास्राव भी उत्पन्न करता है। यह मुखगुहा से ट्रांस्डर्मली अवशोषित होकर एक विशेष प्रकार के ट्रांजेएन्ट रिसेप्टर को स्टिम्युलेट करता है जिस कारण केटेकोलामीन पाथवे प्रभावित होता है।
इस वनस्पति के अन्य लाभकारी प्रभाव भी है जैसे रक्तगत पैरासाइटस को समाप्त करना साथ ही लेयुकोसाटस को बढ़ाना एवं फेगोसायटिक एक्टीविटी को बढ़ाना।इसे इम्युनोमाडुलेटर एवं एंटीमलेरीयल के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।आयुर्वेद अनुसार यह कफवातजनित व्याधियों में प्रयुक्त होनेवाली प्रमुख औषधि है। पक्षाघात एवं नाडीदौर्बल्य में इसके मूल से तेल सिद्धित कर अभ्यंग का विधान है। इसके मूल के क्वाथ का गण्डूष दंतकृमिएदंतशूल आदि में बेहद लाभकारी होता है।विद्रधि पर इसके मूल या पत्तियों का लेप करने भर मात्र से लाभ मिलता है।
कहा गया है परन्तु अब भारत में भी पहाड़ी क्षेत्रों जैसे कश्मीर, आसाम बंगाल एवं गुजरात और महारष्ट्र के क्षेत्रों में इसके क्षुप प्रयाप्त मात्रा में देखने को मिलते है। अकरकरा की खेती मुख्य रूप से औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। इसके पौधे की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों को बनाने में किये जाता है। अकरकरा के इस्तेमाल से कई तरह की बिमारियों से छुटकारा मिलता है। अकरकरा की खेती कम मेहनत और अधिक लाभ देने वाली पैदावार हैं अकरकरा की प्रति एकड़ फसल से एक बार में डेढ़ से दो क्विंटल तक बीज और 8 से 10 क्विंटल तक जड़ें प्राप्त होती है। इसकी जड़ों का बाज़ार भाव 20 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है और इसके बीज का बाज़ार भाव 10 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है।
उत्तराखंड की वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी वसंतोत्सव 2019 का यहां राजभवन के उद्यान में शनिवार को आगाज हुआ था। राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने आधिकारिक तौर पर उत्सव का उद्घाटन किया और प्रदर्शनी के लिए विशेष डाक टिकट भी जारी किया। जिसमें उत्तराखंड के स्थानीय अकरकरा फूल को प्रदर्शित किया गया है। माना जाता है कि इस फूल में औषधीय गुण होते हैं। उत्तराखंड के राज्यपाल मौर्य ने आधिकारिक तौर पर उत्सव का उद्घाटन किया और प्रदर्शनी के लिए विशेष डाक टिकट भी जारी किया था। जिसमें उत्तराखंड के स्थानीय अकरकरा फूल को प्रदर्शित किया जिसमें उत्तराखंड के स्थानीय अकरकरा फूल को प्रदर्शित किया गया है। माना जाता है कि इस फूल में औषधीय गुण होते हैं। प्रदर्शनी में फूलों की 150 प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया है। इसके अलावा इसमें ग्रामोद्योग उत्पादों और हथकरघा से बने सामानों के स्टॉल भी लगाए गए हैं। इसके बाद राज्यपाल ने उन दिव्यांग बच्चों को प्रतीक चिन्ह प्रदान किए जिन्होंने प्रदर्शनी के दौरान आयोजित चित्रकला प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था।
उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थानए उत्तर प्रदेश में अब तो हजारों किसानों का तेजी से औषधीय खेती.बाड़ी में लगातार रुझान बढ़ता जा रहा है। वे व्यापक स्तर पर औषधीय पौधों और सुगंधित पौधों की खेती कर रहे हैं। अकेले मध्य प्रदेश में ही लगभग 25 तरह के औषधीय पौधों तथा सुगंधित पौधों की खेती हज़ारों एकड़ क्षेत्रफल में हो रही है। यहां तक दावा किया जा रहा है कि पूरे देश में मध्यप्रदेश में ही सबसे ज़्यादा औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती हो रही है। इससे तमाम दवा निर्माता कंपनियों का रुख गांवों की ओर हो चला है। कोलियस, सफ़ेद मुसली, लेमनग्रास, श्यामा तुलसी, जामारोजा, आम्बा हल्दी, लाल चंदन, मुलेठी, सर्वगंधा, नीम, जामुन गुठली, सोठ, ब्राम्ही और शंख पुष्पी ऐसी ही औषधीय वनस्पतियां हैं, जिनकी कंपनियों को भारी डिमांड है। एक ऐसे ही सफल किसान हैं यमुनानगर ;हरियाणाद्ध के धर्मवीर कंबोज। पहले दिल्ली में ऑटो चलाते थे। आजकल जड़ी.बूटियों की खेती से मालामाल हो रहे हैं। इसकी प्रेरणा उनको अपनी मां से मिली। वह भी जड़ी.बूटियां उगाती थीं। धर्मवीर ने पहले अकरकरा नाम की जड़ी.बूटी उगाई।
एक साल से एमपी तिराहा पर पुलिस की ओर से तैयार किए जा रहे हर्बल औषधीय पादप एवं बीज केंद्र का एसपी तृप्ति भट्ट ने शुभारंभ किया। इसके बाद हर्बल गार्डन में तैयार की गई जड़ी.बूटी की पौध और बीजों को पुलिस प्रशासन ने बाजार में उपलब्ध कराया।
पुलिस अधीक्षक तृप्ति भट्ट ने कहा कि केंद्र में अश्वगंधा, तुलसी, सतावर, अजवाइन पत्ता, पुदीना, इसबगोल, रोजमेरी, श्यामा तुलसी, रामा तुलसी, कासनी, अकरकरा, सूरजमुखी, गेंदा, बालसम, लेमनग्रास, केसर सहित सभी औषधीय पादपों की पौधे व बीज उपलब्ध हैं। पुलिस की ओर से जड़ी.बूटी का उत्पादन कर लोगों को जड़ी.बूटी के कृषिकरण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। केंद्र से होनी वाली आमदनी को विभागीय कर्मचारियों और विभागीय कार्यों में खर्च किया जाएगा अकरकरा का इस्तेमाल राजसी दावतों की दालए कढ़ी मसाला बाटियोंए गट्टा और पुलाव में किया जाता हैं। यह खाने में कडवा होता हैं लेकिन इसका सेवन करने से मुंह की बदबूए खून बढ़ाने तुतलाहचए दांत संबंधी समस्या में किया जाता हैं।
उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं ही नहींए यहां के खान.पान में भी विविधता का समावेश है।ण्अपनी खास आबो हवा और भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उत्तराखंड फूलों की खेती के लिए मुफीद जगह हैण् राज्य सरकार की कोशिशों से ये फूलों की खेती से अब राज्य के कई हिस्से गुलजार होने लगे हैंए जिससे किसानों को सीधे तौर पर रोजगार का एक नया विकल्प भी मिला हैण् लेकिन वर्तमान में अज्ञानतावश यह प्रजातियां या तो पशु चारे अथवा ईंधन के रूप में उपयोग की जाती है। ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती हैण् उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में प्रदेश में उच्च गुणवत्तायुक्त के फसल उत्पादन कर देश.दुनिया में स्थान बनाने के साथ राज्य की आर्थिकी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पलायान को रोकने का अच्छा विकल्प बनाया जा सकता है। अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है प्रदेश विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद को भी पेटेंट करवाया की जरूरत है। उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं ही नहींए यहां के खान.पान में भी विविधता का समावेश है।