न मैं कोई साहित्यकार हूं और न मेरी इतनी परिधि है कि मैं किसी पर कोई टिप्पणी करू या कुछ लिखूं, अपने छात्रों मे मौलिकता, रचनात्मकता और नैतिकता के विकास के लिए जहाँ से जो सकारात्मक मिलता गया उसे अंगीकार करता रहता हूँ। समाज हमे बहुत कुछ देता है तो सभ्य समाज के नागरिक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य हैं कि बदले में हम भी इसे कुछ न कुछ सकारात्मक दें, जहाँ साहित्यकारों, रचनाकारों लेखकों कवियों के पास ढेरों अवसर होते हैं, अपने विचारों को समाज से अवगत कराने के और रूढ़िवादिता को बदलने के, वही एक अध्यापक के पास उसकी शाला के छात्र ही हैं, जिन्हें वह भविष्य के लिये तैयार करता है ताकि बदलाव की गति में सक्रिय योगदान दिया जा सके। पर प्रश्न है कि इस हेतु अध्यापक को क्या प्रयास करने चाहिए की बच्चों मे सक्रिय नैतिकता का समावेश हो पाये और वे आपके शिक्षण से लगातार उद्दीपन पाते रहें ताकि वे कल अपने स्वतंत्र विचारों का निर्माण कर पाएं और राष्ट्र निर्माण मे अपना सक्रिय योगदान दे पाए ।
मैं अकसर प्रयास करता हूं की वो सारी रचनात्मकताएं, कलाये जो व्यस्क करतें है, उनका प्रयास इन छोटे बच्चों को प्रारंभ से ही करवाया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि इन छोटे बच्चों को प्रारंभ से ही लेखकों, बुद्धिजीवियों, देशभक्तों का परिचय कराया जाए। इसी क्रम में हम बच्चों को उत्तराखंड के जन कवि श्री गिरीश चंद तिवारी गिर्दा की कविताएं सुनाते और पढ़ाते रहते हैं। आप लोगों को अवगत ही हैं कि उत्तराखंड के जनकवि श्री गिरीश चंद तिवारी गिर्दा एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी युवावस्था से ही उत्तराखंड की पीड़ा को अपनी कविताओं में दर्शाना प्रारंभ कर दिया था। वन बचाओ आंदोलन, नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन, उत्तराखंड राज्य प्राप्ति आंदोलन सभी में गिर्दा ने अपनी कविताओं के माध्यम से जन जागरण का कार्य किया है, जन गीतों के माध्यम से इन आंदोलनों को बल मिला और समाज में एक नई क्रांति का हुआ लोग अपने अधिकारों के प्रति सजग हो पाए। उत्तराखंड के जनकवि, नाट्यकार, गायक, संगीतकार और आंदोलनकारी गिर्दा को कोटि कोटि प्रणाम ।।
भास्कर जोशी
सहायक अध्यापक
राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला
विकासखंड धौलादेवी अल्मोड़ा उत्तराखंड