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महावीर चक्र विजेता अनुसूया प्रसाद ने 18 वर्ष की उम्र में दे दिया सर्वोच्च बलिदान

20/05/20
in उत्तराखंड, चमोली
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अमर शहीद महावीर चक्र विजेता अनुसूया प्रसाद के 67वे जन्म दिवस पर:-
फोटो-गैरसैंण। चमोली जनपद के घाट ब्लोक के नौना गांव के पं. जयानंद गौड के घर 19 मई 1953 को जन्मे महावीर चक्र विजेता अनुसूया प्रसाद गौड 67 वें जन्म दिवस पर उन्हें शत -शत नमन के साथ श्रृद्धांजलि करते हुए विख्यात लेखक भुवन नौटियाल का उनकी स्मृति में कुछ क्षणों को स्मरण करते हुए कहना है कि 1971 के भारत -पाक युद्ध के दौरान 18 वर्ष की आयु में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले महर रेजीमेंट के नं 9212865 के सिपाही अमर शहीद स्व0 अनुसूया प्रसाद गौड 30 नवंबर 1971 को शहीद हए।
वाकया उस वक्त का है जब 1987 में वह भारत की पसिद्ध धार्मिक पैदल सबसे लंबी नंदा देवी राज जात की सफलता के लिए कमेटी के साथी अध्यक्ष कुॅवर बलवंत सिंह जी की अध्यक्षता में वरिष्ठ समाज सेवी और तत्कालीन पीटीआई के संवादाता, अमर उजाला के संवादाता स्व0 विशंबर दत्त खंडूडी, जिला पंचायत चमोली की पूर्व अध्यक्ष्र स्व0 रामचंद्र उनियाल, मनसा राम गौड, मुंशी चंद्र गौड और कै0 रूपचंद्र सिंह रावत तैयारी में जुटे थे। कि इसी बीच 13 जुलाई 1987 को हमारे साथी अग्रज सुदर्शन कठैत जी के पिता जी का निधन हो गया जिस कारण उनकी दिवंगत आत्मा की के लिए शांति और संवेदना और श्रृद्धा सुमन अर्पित करने साथी पौडी निवासी पत्रकार उमेश डोभाल व अन्य साथियों के साथ उनके गांव कांडई जाना पडा । रास्ते में रास्ते में अमर शहीद महावीर चक्र विजेता अनुसूया प्रसाद जी के गांव नौना में उनके पिता स्व पं जयानंद गौड से मुलाकात हुई अमर शहीद की वीर गाथा उनकी मुंह जुबानी सुनने के उपरांत उन्होंने बताया कि उनके लाडले की सादी की तिथि तय हो चुकी थी लेकिन बंगला देश की आजादी की लडाई के दौरान छुटि न मिलने पर उनकी सादी निश्चित तिथि को ही पारंपरिक ढंग से कुम्भ को साक्षी मान कर कुम्भ विवाह सम्पन्न किया गया। पति -पत्नी को एक दूसरे का मूॅह देखने का अवसर तक नहीं मिल पाया कि देश का जवान अमर शहीद हो गया । कुछ समय वाद सरकार और परिजनों की सहमति पर उनकी विधवा वीरांगना का विवाह उनके देवर के साथ कर दी गई ।
उस दौरान पंडित जयानंद जी ने शिकायत की थी कि सेना के शहीदों के माता पिता के भरण पोषण की भी सरकार को व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वह अपने जीवन के शेष दिन महसूस करें कि मातृ भूमि के लिए वलिदान देने वाले के माता पिता के प्रति भी मातृभूमि व सरकारों का कुछ दायित्व है। लेकिन यह शिकायत उनके साथ ही परलोक चली गई । आज उनकी आत्मा को भी संतोष होगा कि भारत सरकार उनकी इस शिकायत को भी दूर किया है। उस दौरान पंडित जयानंद के साक्षात्कार पी टी आई , अमर उजाला और नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुए हैं।
भारत के ऐसे सपूत को सरकार व समाज ने याद करने की तथा उनकी स्मृति व शौर्यको चिर स्थायी बनाने के लिए अभी तक कोई जमीनी कार्यवाही नहीं की है यह हम सबके लिए सोचनीय है।
श्री नौटियाल ने कहा कि संयोग से ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च सैनिक सम्मान भारत में पहली बार नायक दरवानसिंह नेगी को विक्टोरिया क्रास प्रथम विश्व युद्ध में सन् 1914 में मिला। वी सी साहब की स्मृति में बिगत वर्ष उनके पैतृक आवास काफरतीर गांव में 23 से 25 नवम्बर तक पहली वार वार मैमोरियल शौर्य दिवस का आयोजन किया गया। इसमें वार मैमोरियल फाउंडेशन ने अमर शहीद सैनानियों के सम्मान और स्मृति में 22 नवंबर को कर्णप्रयाग और नंद प्रयाग से दो रथ यात्राएं शूरू की 22 नवंबर को चिरखुन में रात्रि विश्राम के बाद 23 नवंबर को दोनो रथों का खतौलीखाल उत्तराखंड के मुख्य मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा भव्य स्वागत किया गया । इस प्रकार पहली बार 48 सालों बाद अमर शहीदों की स्मृति में एतिहासिक आयोजन किया गया।

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