प्रदेश में आशा कार्यकत्रियां राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत गांवों में सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकत्री के रूप में सेवाएं दे रही हैं। उन्हें कार्य के बदले प्रोत्साहन राशि के पर तैनाती दी गई है। उन्हें वेतन नहीं दिया जाता, न ही वह सरकारी कर्मचारी हैं। इकसे बावजूद आशाओं पर एक के बाद एक कार्यों का बोझ लादा जा रहा है, लेकिन काम के अनुपात में उनकी सुविधाओं तथा मानदेय में कोई बढ़़ौतरी नहीं की जा रही है। यह गांव-गांव में जमीनी हकीकत के साथ काम कर रही आशाओं का शोषण है। यह माननीय न्यायालय के उस निर्णय का भी मजाक है, जिसमें समान काम के लिए समान वेतन का निर्णय दिया गया है। आशाओं के विभिन्न संगठनों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई है और सरकार से उन पर लादे जा रहे बोझ के साथ सुविधाओं में बढ़ौतरी का सवाल रखा है।
गाँवों में एनएचएम के इन प्रेरको को स्वास्थ्य विभाग ने तीमारदार, नौकरानी एक साथ बना दिया है। पंचायतों से चयनित इन महिलाओं के पास नियुक्ति पत्र तक नहीं। यह बिल्कुल निजी संस्थाओं की तरह सरकार द्वारा किया जा रहा शोषण है। कक्षा 8 शैक्षिक योग्यता की इन आशाओं को प्रशिक्षण दिया गया था। अब इन पर अति संवेदनशील कोरोना संक्रमण से लड़ने का बोझ डाला जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी ए एन एम के मातहत इनसे काम लिया जा रहा है। यह एक तरह से इन पर इंस्पेक्टर राज करने जैसा है।
सन 2005 में एन आर एच एम में लगभग एक हजार की जनसख्या पर गाँवों में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर घटाने के लिए प्रेरक के रूप मे प्रोत्साहन राशि पर आशा को तैनात किया गया परन्तु स्वास्थ्य विभाग ने मदर एनजीओ के साथ मिलकर इन्हें इतना प्रशिक्षण दिया कि यह प्रशिक्षित डाक्टर से कोर्स के बराबर था। प्रसव पूर्व जाँच, अस्पतालों में प्रसव कराने के लिए प्रेरित करने के बजाय इन्हें 108 बाहनों, अस्पतालों में 2-3 दिनों तक डेरा डालने के लिए मजबूर किया जाता है। रैफर में भी साथ जा कर गर्भवती की तीमारदार की भूमिका में इन्हें रखा जाता है। यह काम ये अपना घरबार छोड़कर करती हैं, जिसके लिए इन्हें बहुत मामूली भुगतान किया जाता है।
पहले इनके कार्यो पर स्वा0 के0 प्रभारी, एएन एम निगरानी रखती थी, अब एक और आशा सुविधादाता का पद बढाकर इन्स्पैक्टरी राज बना दिया। इनको बेतन, मानदेय नहीं बल्कि धरातल पर काम करने वाली आशा को नाममात्र की प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
अब एनएचएम में इनका कार्य इतना बढा दिया कि ये स्वास्थ्य कार्यकर्ता बन गये, परन्तु सुविधाएं नहीं बढ़ाई गईं। जब गाँव का सब कार्य इनको ही करना है फिर एएनएम आशा सुविधादाता के वेतन, मानदेय के नाम पर धन की बर्बादी क्यो? इन्हें सर्वे के बोझ तले भी इतना दबा दिया गया कि कम पढी लिखी होने के कारण सर्वे कर नही पा रही है तो इनके पति, लडके.लड़कियाँ आशा का कार्य कर रहे हैं।
कोरोना में भी इन्हें बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के लगाया गया है। रूद्रप्रयाग जनपद के वि0ख0 जखोली, ऊखीमठ की आशाओं ने जब स्वयं और परिवार की सुरक्षा के मध्यनजर कोरोना में काम नहीं करने के निर्णय से ब्लाक प्रभारी को लिखित में अवगत कराया तो ऊखीमठ प्रभारी ने आशाओं को खूब बरगलाया, जखोली की डा0 याशमिन, आशा सुविधादाता सन्तोषी, बिमला देवी द्वारा आशाओं पर फोन काँनफ्रेन्स से बात करके दबाव बनाया जा रहा है, जिससे कई आशा मानसिक तनाव में हैं।
समाज सेविका आशा के हितैषी मजदूर संगठन सीटू, ऐक्टू, बीएमएस अलग-अलग जनपदों में अलग-अलग माँग लेकर इनको पीस रहे है। दो आशा उधमसिंह नगर तथा दो टिहरी से कोरोना संक्रमण से मर चुकी है, परन्तु कोई भी संगठन इन चारों का नाम न लेकर सिर्फ अपने से जुडे़ का ही नाम ले रहे है। इन कोरोना योद्धाओं को मुआवज दिलाना तो दूर की बात है। राज्य सरकार ने अब जाकर इन्हें हजार रुपये का मानदेय एक बार देने की निर्णय लिया है, जो उंट के मुंह में जीरा है।
कोरोना में शिक्षा विभाग जैसे सरकारी विभागों के लोग घर बैठे है और आशा जोखिम उठा रही है पन्द्रह साल बीतने पर भी सरकारी कर्मचारी नहीं बनी, कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है। परन्तु ये संगठन इन जायज माँगों के लिए एक होने को तैयार नही दिखाई देते। अब आशा संगठन जखोली एवं उखीमठ ब्लाक की आशाओं ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की है।