डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
पहले आयुर्वेद दिवस के आयोजन के साथ ही सरकार ने योग की तरह आयुर्वेद को भी वैश्विक पहचान दिलाने की ठोस पहल शुरू कर दी है। अब हर साल 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया पहले आयुर्वेद दिवस का आयोजन गोवा में अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में किया जा रहा है।इस अवसर पर आयुर्वेद में हो रहे नए अनुसंधान के साथ ही जटिल बीमारियों के इलाज में उनके प्रभावों को भी प्रदर्शित किया जाएगा। आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार मोदी सरकार आने के बाद 2016 से कार्तिक कृष्णपक्ष त्र्योदशी पर धन्वंतरि के जन्मदिन पर आयुर्वेद से जुड़े आयोजन शुरू किये गए। धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। लेकिन ग्रैगेरियन कैलेंडर में हर साल अलग-अलग तिथि पड़ने के कारण इसकी पहचान नहीं बन पाई। 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस के रूप में इसी लिए चुना गया कि इस दिन पूरी दुनिया में रात और दिन बराबर होता है। आयुर्वेद के पीछे भी मूल सिद्धांत शरीर में सभी तत्वों के संतुलन पर है।आयुष मंत्रालय के अनुसार आयुर्वेद दिवस पर उपचार के साथ-साथ परंपरागत चिकित्सा ज्ञान के आधुनिक विज्ञान के साथ एकीकरण पर भी जोर दिया जा रहा है ताकि प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के प्रयोग से ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके। इससे लोगों में आयुर्वेद की स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जब परंपरागत ज्ञान पर आधारित आयुर्वेद की दवाएं मधुमेह जैसी लाइलाज बीमारियों पर नियंत्रण में असरदार रही। यह दवा आज मधुमेह नियंत्रण और डाइबिटीज रिवर्सल में अचूक साबित हो रही है। वैसे भी जीवनशैली से जुड़ी बिमारियों के निदान में जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल पर पूरी दुनिया में फोकस बढा है। इसके साथ ही गोवा में कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में आयुर्वेद की भूमिका को रेखांकित करते हुए दुनिया के सामने रखा जाएगा। पिछले साल यानी 2024 में हुए 9वें आयुर्वेद दिवस पर प्रधानमंत्री ने अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के दूसरे चरण का उद्घाटन किया था। इसके साथ ही चार उत्कृष्टता केंद्र, 12,850 करोड़ रुपये की लागत वाले स्वास्थ्य प्रोजेक्ट और देश का प्रकृति परीक्षण अभियान भी शुरू किया गया।आयुर्वेद दिवस 2025 को सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि जीवनशैली की बीमारियों, जलवायु जनित रोगों और तनाव जैसी समकालीन चुनौतियों का समाधान बनाने की दिशा में एक नई शुरुआत माना जा रहा है।इस अवसर पर जागरूकता अभियान, स्वास्थ्य परामर्श, युवा जुड़ाव कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसे आयोजन होंगे। खास बात यह है कि पिछले साल करीब 150 देशों में आयुर्वेद दिवस पर गतिविधियां आयोजित हुईं, जो इसकी बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता को दर्शाती हैं। उत्तराखंड को भारत की आध्यात्मिक और योग परंपरा की भूमि माना जाता है, जो सदियों से ऋषियों, मुनियों और साधकों की तपस्थली भी रही है. जिसके चलते उत्तराखंड के ऋषिकेश को विश्व योग की राजधानी माना जाता है. ऐसे में अब प्रदेश सरकार देवभूमि उत्तराखंड को योग और वैलनेस की वैश्विक राजधानी बनाने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है. आयुर्वेदिक चिकित्सा दुनिया की सबसे पुरानी समग्र उपचार प्रणालियों में से एक है. इसे भारत में 3000 साल से भी पहले विकसित किया गया था. यह इस विश्वास पर आधारित है कि स्वास्थ्य और मन, शरीर और आत्मा के बीच एक संतुलन पर निर्भर करता है. इसका मुख्य लक्ष्य अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है न कि बीमारी से लड़ना, लेकिन इससे विशिष्ट स्वास्थ्य समस्याओं का उपचार किया जा सकता है. आयुर्वेद भारत की प्राचीन परंपरा और संपदा है. आयुर्वेद को अब तक 30 से ज्यादा देशों में मान्यता मिल चुकी है. क्षेत्र में, विभिन्न प्रकार के लाभदायक औषधीय पौधों की खेती के साथ , उच्च लाभ और सतत विकास की अपार संभावनाएँ हैं। पर्यावरण की रक्षा और स्थानीय समुदायों का समर्थन करने में ज़िम्मेदारी से जुड़ना महत्वपूर्ण है। चाहे आप किसान हों, निवेशक हों या यात्री, खेती, व्यवसाय या इको-टूरिज्म के माध्यम से उत्तराखंड की औषधीय पौधों की संभावनाओं को तलाशने का यह सही समय है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*