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Uttarakhand Samachar

आवाज का जादू नाव तराशने के साथ-साथ अपनी आवाज भी तराश रहे हैं 

09/12/24
in उत्तराखंड, नैनीताल, संस्कृति
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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
आदमी को उसके शौक भी कहां से कहां लेकर आ जाते हैं,बस इन शौक को पूरा करने के लिए उनके मन में दृढ़ इच्छा होनी चाहिए और फिर मंजिल भी आसानी से मिल ही जाती है। नैनीताल के खड़क सिंह चौहान में नैनीताल में नाव बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले खड़क सिंह चौहान की आवाज आज उनकी पहचान बनती जा रही है। वह नाव तराशने के साथ-साथ अपनी आवाज को भी तराश रहे हैं। मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के भनौली तहसील के तहत राजा गांव निवासी स्वर्गीय धन सिंह चौहान के पुत्र खडक़ सिंह चौहान की प्रारंभिक शिक्षा जीआईसी भेटा बडोली से हुई। बचपन से ही वह गांव में पढ़ाई के साथ ही लकड़ी से संबंधित कार्य भी किया करते थे, उसके बाद रोजी-रोटी की तलाश में वह हरियाणा के होटल में चले गए। इस दौरान करीब 20 वर्षो तक होटल में कार्य करने के साथ ही उन्होंने गर्मियों के सीजन में नैनीताल आकर नाव बनाने का कार्य जारी रखा, जो आज भी अनवरत जारी है। खडक़ सिंह को गाना लिखने तथा गाने का शौक बचपन से ही था, लेकिन कुछ मजबूरियों के चलते उनका यह शौक सिर्फ शौक तक ही रहा। समय बीतता गया और सोशल मीडिया के दौर में उन्हें भी अपने शौक को बाहर लाने का मौका मिला। अभी हाल ही में उन्होंने एक पहाड़ी गाना ‘‘उड़ कबूतर जा, जा मेर चिट्टी ली जा दे, आली तो उ बुला लाए, न आली मेरी चिट्टी दी आये’’ लिखा। फिर उसको निर्माता भुवन कुमार की मदद से हल्द्वानी के नंदा स्टूडियों में गाया। जिसे लोगों ने खूब सराहा और कुमाऊंनी भाषा को आगे लाने के लिए अच्छी पहल बताया। खडक़ सिंह का मानना है कि उनका कुमाऊंनी में गाना गाने तथा लिखने के पीछे मकसद यह भी है कि गाने के साथ ही हमारी कुमाऊंनी भाषा को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सके। फिलहाल खड़क सिंह की गाने की हर तरफ प्रशंसा हो रही है। खड़क सिंह चौहान मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के ग्राम राजा तहसील भनौली के रहने वाले हैं. वह नैनीताल में रहकर नाव चलाने और नाव बनाने का काम करते हैं. उन्हें काम के साथ ही संगीत का भी शौक है. खड़क सिंह ने कहा कि एक दिन वह बोट स्टैंड पर काम के साथ खुद का लिखा गाना गुनगुना रहे थे, जिसे सुनकर उनके साथ काम करने वाले साथियों ने उन्हें इस गाने को रिकॉर्ड कर यूट्यूब पर अपलोड करने को कहा. जिसके बाद उन्होंने हल्द्वानी जाकर अपने कुमाऊंनी गाने को स्टूडियो में रिकॉर्ड किया और यूट्यूब पर अपलोड कर दिया. उनके साथियों की तरह और लोगों को भी गाना काफी पसंद आया. उनका गाना यूट्यूब पर ‘फ्रेश कुमाऊं एंटरटेनमेंट’ चैनल पर उपलब्ध है. उनके गाने के बोल हैं, ‘उड़ कबूतर जा जा मेर चिट्टी ली जा दे,आली तो उ बुला लाए, न आली मेरी चिट्टी दी आए.’ खड़क सिंह बताते हैं कि वह अभी नाव के काम से ही अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. उनके परिवार में उनके दो भाई, एक बहन और मां हैं. साल 1994 में वह काम की तलाश में हरियाणा निकल गए थे, जहां उन्होंने 20 साल होटल में नौकरी की. उस दौरान कभी-कभी वह नैनीताल आकर नाव चलाते थे, तो उन्होंने तब यहां नाव का काम सीखा और इसे ही अपनी आजीविका का जरिया बना लिया. उन्होंने बताया कि जल्द उनका दूसरा गाना आएगा, जिसके लिए उनकी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. कहते हैं हर इंसान के अंदर कोई ना कोई हुनर छिपा होता है। बस जरूरत होती है तो उसे पहचानने की और दुनिया के सामने लाने की। यूं तो आज के सोशल मीडिया के दौर में अपने हुनर को दुनिया के सामने लाने के कई तरीके हैं, बस जरूरत होती है तो दृढ़ इच्छा शक्ति की। कुछ ऐसी ही दृढ़ इच्छा शक्ति देखने को मिलती है उसको निर्माता भुवन कुमार की मदद से हल्द्वानी के नंदा स्टूडियों में गाया। खडक़ का मानना है कि उनका कुमाऊँनी में गाना गाने तथा लिखने के पीछे मकसद यह भी है कि गाने के साथ ही हमारी कुमाऊंनी भाषा को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वृहद स्तर पर पहचान मिल सके। बता दें खडक़ सिंह की पत्नी ग्रहणी हैं जिनकी उम्र लगभग 34 वर्ष उनकी दो बेटियां पिंकी चौहान 13 वर्ष व पूजा चौहान 17 वर्ष की है। कुमाऊँनी भाषा के प्रचार प्रसार के साथ ही शौक भी हो रहा है ।।लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

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