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वज्रदंती का उत्तराखंड में सबसे अधिक उत्पादनः डब्ल्यूएचओ

18/02/20
in उत्तराखंड, हेल्थ
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https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की देवभूमि‌ जहां एक ओर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात है वही दूसरी ओर यहां के जंगलों में पैदा होने वाली जड़ी बूटियां अपने औषधीय गुणों से लोगों को विस्मित कर देती हैं। उत्तराखंड के जंगल एक से बड़कर एक दुर्लभ जड़ी बूटियों का भंडार है। ये जड़ी बूटियां असाध्य से असाध्य रोगों को दूर भगाने में भी मदद करती हैं। ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड के जंगलों में विद्यमान है। वज्रदंती को बर्लेरिया प्रोनिसिटिस के नाम से जाना जाता है। हैरानी की बात ये है कि उत्तराखंड में इस बहुमूल्य औषधि के होने के बाद भी कभी इस तरफ लोगों का ध्यान नहीं जाता। यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि वज्रदंती उत्तराखंड में सबसे ज्यादा पाया जाता है। खास तौर पर मदमहेश्वर घाटी में आप जाएंगे तो आपको यहां वज्रदंती हर जगह दिखेगा। इसके बाद भी आज तक इसके विकास और खेती के बारे में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
इसके बारे में भी जानिए। विश्व पर्यावरण संगठन कहता है कि उत्तराखंड में अनेक रोगों की एक दवा है, जिसका विस्तार करना बेहद जरूरी है और ये खत्म हुआ तो, दुनिया से एक अमूल्य औषधि खत्म हो जाएगी। अक्सर कई बार हमारे दातों की सही रुप से देखभाल नही करने से हमारे दातों सबंधी कई तरह की समस्या पैदा हो जाती है। जिसके लिए हम एक ऐसे वज्रदंती पौधे का इस्तेमाल कर सकते है जो हमारे दातों के लिए काफी उपयोगी हो सकता है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन डीआरडीओ के डिफेंस इंस्टीटय़ूट ऑफ बायो एनर्जी रिसर्च डीआईबीईआर के कासनी सिकोरियम इंटीबस के औषधीय गुण सिद्ध करने और उसके डायबिटीज, अस्थमा, ब्लड प्रेशर, लीवर व किडनी की बीमारियों में फायदेमंद बताने के बाद उत्तराखंड सरकार ने कासनी का पेटेंट कराने का फैसला लिया है। डीआईबीईआर ने उत्तराखंड के वन विभाग के अनुसंधान वृत्त के साथ कासनी व अन्य वनस्पतियों पर अनुसंधान के लिए इस साल जून में समझौता किया था। डीआईबीईआर ने शोध के दौरान पाया गया कि कासनी एक ओर जहां कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैए वहीं उसमें मधुमेह रोग में बी गुणकारी है और वह अच्छा एंटी.ऑक्सिडेंट है।
कासनी का पहले से ही विभिन्न आयुर्वेदिक व यूनानी दवाओं में इस्तेमाल होता रहा है। पिछले एक साल में ही वन अनुसंधान वृत्त ने देश की विभिन्न कंपनियों को एक लाख से अधिक कासनी के पौधे बेचे हैं। अब वैज्ञानिक अनुसंधान में कासनी के औषधीय गुण सिद्ध हो गए हैं इसलिए अब कासनी को पेटेंट कराने के लिए आवेदन करेंगे। वज्रदंती पोटेंशिला फल्गंस पर भी अनुसंधान चल रहा है। इन औषधीय वनस्पति प्रजातियों के पेटेंट मिलने के बाद इन हर कोई इन पौधो से उत्पाद नहीं बना सकेगा। इसकी खूबियों से अंजान लोग इसे खर पतवार जैसा समझते हैं। लेकिन वज्रदंती हमारे दांतों और मुंह की बेहतरीन देखभाल करता है। दांतों के लिए कई टूथपेस्ट व मंजन बनाने वाली कंपनियां इसका इस्तेमाल करती हैं। इसके अलावा यह बुखार, खांसी, जोड़ों के दर्द, गठिया, घाव व फोड़ों में भी लाभकारी है। टिहरी जिले का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नागटिब्बा पर्यटन के लिहाज से ही नहीं, दुर्लभ प्रजाति की जड़ी.बूटियों के लिए भी मशहूर है। यहां पाई जाने वाली वज्रदंती तो दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यही वजह है कि पर्यटकों के अलावा जड़ी.बूटी विशेषज्ञ भी समय.समय पर यहां आते रहते हैं।
हालांकि, जरूरी सुविधाओं के अभाव में कोई यहां ठहरना पसंद नहीं करता। जिला मुख्यालय नई टिहरी से 130 किमी दूर जौनपुर ब्लॉक का यह प्रसिद्ध पर्यटक स्थल समुद्रतल से दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मुख्य मार्ग से इसकी पैदल दूरी छह किमी है। घने जंगल के बीच फैले इस हरे.भरे मैदान से हिमाच्छादित चोटियां साफ दिखाई पड़ती हैं। सर्दियों में अधिकांश समय यहां बर्फ जमी रहती है। प्रकृति की इसी सुंदरता को आत्मसात करने हर साल छह हजार से अधिक पर्यटक और ट्रैकर यहां पहुंचते हैं। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर गंगोत्री राजमार्ग पर स्थित धराली गांव से दो किमी की दूरी पर बसा है मां गंगा का शीतकालीन निवास स्थल मुखबा गांव। गंगोत्री धाम के तीर्थपुरोहितों के इस गांव में 450 परिवार रहते हैं। अनुपम सौंदर्य से लकदक इस गांव में मौसम में कलाकारी दिखाते हैं। सर्दियों में जहां बर्फ की चादर गांव को अपने आगोश में ले लेती है, वहीं गर्मियों में कुदरत के रंग और निखर जाते हैं। गांव में चारों ओर अतीस, कुटकी, वज्रदंती और जटामासी जैसी जड़ी बूटियों की कोंपलें फूटने लगती हैं। सेबए आडू और खुमानी समेत अन्य पेड़ फलों से लकदक रहते हैं।
मान्यताओं के अनुसार, वानप्रस्थ के दौरान विचरण करते हुए पांडव मुखबा गांव पहुंचे थे और यहां प्रवास किया था। मार्कंडेय ऋषि ने तप कर इसी गांव में अमरत्व का वरदान हासिल किया था। गांव के बीचों.बीच स्थित है गंगा का मंदिर, जिसमें गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो जाने के बाद शीतकाल के दौरान मां गंगा की भोगमूर्ति छह माह के लिए स्थापित रहती है। शीतकाल में इसी मंदिर में गंगा के दर्शन किए जाते हैं। जबकि कपाट खुलने पर पूरा गांव भव्य कार्यक्रम के साथ गंगा की भोगमूर्ति को लेकर गंगोत्री पहुंचते हैं। एक माह तक गांव में इसकी तैयारी चलती रहती है।
हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली बेशकीमती जड़ी.बूटियां अब खेतों में भी उगने लगी हैं। तमाम बीमारियों में काम आने वाली संजीवनी सरीखी इन जड़ी.बूटियों की खेती से अच्छा मुनाफा मिलने के कारण परंपरागत खेती करने के बजाय किसान इस ओर आकर्षित हो रहे हैं। राज्य के हिमालयी क्षेत्र से सटे गांवों में छह हजार से अधिक परिवार जड़ी.बूटी की खेती कर रहे हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली और विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी जड़ी.बूटी को बचाने की कवायद अब शुरू हो गई है। जड़ी.बूटी शोध संस्थान ऐसी औषधि को बचाने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों में नर्सरी बना रहा है। शुरुआती चरण में 70 किस्म के औषधीय पौधे रोपे जा रहे हैं। कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में नर्सरी बनाई जा रही है। 65 प्रतिशत जंगल वाला प्रदेश जैव विविधता से भरपूर है। यहां के उच्च हिमालय क्षेत्रों में बेशकीमती औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं।पूरे पौधेए पत्तियों और जड़ों का उपयोग पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में विभिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है।पत्तियों का उपयोग घावों की चिकित्सा को बढ़ावा देने और जोड़ों के दर्द और दांत दर्द को दूर करने के लिए किया जाता है।इसके एंटीसेप्टिक गुणों के कारण इस पौधे को हर्बल सौंदर्य प्रसाधन और बाल उत्पादों में शामिल किया जाता है ऐसा कोई अक्षर नहीं जिससे मन्त्र न बने और संसार में ऐसी कोई वनस्पति नहींए जिसमे कोई औषधीय गुण न हो।
सृष्टि की प्रत्येक वनस्पति में औषधीय गुण विद्यमान होते हैए जो किसी न किसी रोग मेंए किसी न किसी रूप में और किसी न किसी स्थिति में प्रयुक्त होती है। बस जरुरत है इन्हें पहचानने और इनके सरंक्षण .सवर्धन हेतु उचित उपाय करने की । हमारे देश में जलवायु, मौसम और भूमि के अनुसार अलग.अलग प्रदेशों में विभिन्न प्रकार की जड़ी.बूटियाँ पाई जाती है। वर्मान में हमारे देश में 500 से अधिक पादप प्रजातियों का औषध रूप में प्रयोग किया जा रहा है। इनमे से बहुत सी बहुपयोगी वनस्पतियाँ बिना बोये फसल के साथ स्वमेव उग आती है, उन्हें हम खरपतवार समझ कर या तो उखाड़ फेंकते है या फिर शाकनाशी दवाओं का छिडकाव कर नष्ट कर देते है। जनसँख्या दबावएसघन खेती, वनों के अंधाधुंध कटान, जलवायु परिवर्तन और रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से आज बहुत सी उपयोगी वनस्पतीयां विलुप्त होने की कगार पर है।
आज आवश्यकता है की हम औषधीय उपयोग की जैव सम्पदा का सरंक्षण और प्रवर्धन करने किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागृति पैदा करें ताकि हम अपनी परम्परागत घरेलू चिकित्सा आयुर्वेदिक पद्धति में प्रयोग की जाने वाली वनस्पतियों को विलुप्त होने से बचा सकें। यहाँ हम कुछ उपयोगी खरपतवारों के नाम और उनके प्रयोग से संभावित रोग निवारण की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत कर रहे है ताकि उन्हें पहचान कर सरंक्षित किया जा सके और उनका स्वास्थ्य लाभ हेतु उपयोग किया जा सकें। आप के खेतए बाड़ीए सड़क किनारे अथवा बंजर भूमियों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली इन वनस्पतियों के शाकए बीज और जड़ों को एकत्रित कर आयुर्वेदिकध्देशी दवा विक्रेताओं को बेच कर आप मुनाफा अर्जित कर सकते है। भारत में शीर्ष टूथपेस्ट ब्रांडों की सूची में शामिल होने वाला अंतिम ब्रांड विकको वाजद्रंती है। विकको वज्रांतंती भारत के आयुर्वेदिक टूथपेस्ट उद्योग के अग्रणी हैं। विकको वज्रांति को कभी टूथपेस्ट के रूप में विपणन नहीं किया गया थाए बल्कि श्हर्बल पेस्टश् के रूप में विपणन किया गया था जो कि किसी भी रसायन और फोमिंग एजेंटों से बेकार था। यह भारतीय बाजार में आधे शताब्दी से अधिक समय तक रहा है और तीव्र प्रतिस्पर्धा के बावजूद अपनी स्थिति कायम रखता है। विको वजादांती ने 18 विभिन्न जड़ी.बूटियों और हर्बल अर्कों द्वारा उनके दंत स्वच्छता गुणों के लिए वर्णित अद्वितीय फार्मूला के लिए अपनी लोकप्रियता का श्रेय दिया है। मार्केट में मिलने वाले प्रोडक्ट्स में भरपूर मात्रा में केमिकल पाया जाता है। जो कि दांतो के साथ.साथ हेल्थ के लिए भी नुकसानदायक होता है। अगर आपके दांतो में कीड़े लग गए है। जिसके कारण आपके दांतों में दाग और पीले पड़ गए है, तो हम आपको एक ऐसा नेचुरल उपाय बता रहे है। जिसे आप इस समस्या से आसानी से निजात पा सकते है। इस नेचुरल टूथपेस्ट से आपको मजबूत, कीड़े रहित दांत के साथ.साथए सफेद और बैक्टीरिया मुक्त रदांत मिलेगे।
भारत करीब 600 करोड़ रुपए के हर्ब उत्पादन और औषधियों का निर्यात करता है। हालांकि भारत की खेती और यहां पाई जाने विशेषताओं को देखते हुए काफी कम हैए लेकिन आने वाले दिनों में इसमें बहुत संभवनाएं है। शायद यही वजह है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा कर चुकी नरेंद्र मोदी सरकार ने एरोमा मिशन शुरु किया हैएजिसके तहत औशधीय और सगंध खेती और इससे जुड़ी इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रदेश में उच्च गुणवत्तायुक्त का उत्पादन कर देश.दुनिया में स्थान बनाने के साथ राज्य की आर्थिकी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पलायान को रोकने का अच्छा विकल्प बनाया जा सकता है। अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती हैण् उत्तराखंड के साथ.साथ देश के पर्यावरण के प्रति असंवेदनशीलता दर्शाता है। कायदे से बाँज, कौव्, काफल, उतीस, बुरांश और अन्य चौड़ी पत्तियों के पेड़ों से आच्छादित डाँनों.कानों को रकबे की सीमा से मुक्त करके वन की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। भू उपयोग और ख़रीद की सीमा को लेकर हाल में लागू उदार नीतियों के चलते उत्तराखंड की जमीनों.जंगलों पर बहुत दबाव आया है। ये वक़्त हरित बोनस कमाने का है, जंगलों को गँवाने का नहीं है।

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