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अब बेनीताल बुग्याल पर भू-माफिया का कब्जा

08/07/21
in उत्तराखंड, चमोली
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https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/11/Video-60-sec-UKRajat-jayanti.mp4

शंकर सिंह भाटिया
उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के निकट बेनीताल का नाम आपने सुना होगा। यदि नहीं सुना है तो बता दें, उत्तराखंड आंदोलनकारी बाबा मोहन उत्तराखंडी ने यहीं 38 दिन तक आमरण अनशन किया था। इस हालत में प्रशासन के लोग उन्हें घसीटते हुए कर्णप्रयाग ले गए, रास्ते में ही उनकी शहादत हो गई। आपको यकीन नहीं होगा कि बेनीताल के इस बुग्याल में किसी का घुसना प्रतिबंधित है। क्योंकि यह एक व्यक्ति की निजी संपत्ति है। राजीव सरीन नाम के इस व्यक्ति ने बेनीताल स्टेट अपनी संपत्ति होने का बोर्ड लगा रखा है। उसका दावा है कि 16000 एकड़ का यह बुग्याली भूखंड उसकी निजी मिल्कियत है, देश की स्वतंत्रता से पूर्व उसके पुरखों को अंग्रेज यह संपत्ति बेच गए थे। इसीलिए पिछले कुछ सालों से वहां हर वर्ष होने वाला बेनीताल महोत्सव नहीं होने दिया जा रहा है। यदि बाबा मोहन उत्तराखंडी की शहादत के दिन कोई यहां आता है तो पुलिस-प्रशासन उन्हें खदेड़ देता है।

है ना यह एक फिल्मी कहानी। एक व्यक्ति दावा करता है कि उसके पुरखों ने बेनीताल बुग्याल की 16000 एकड़ भूमि देश की स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों से खरीदी थी। कोर्ट के कुछ भ्रामण निर्णय प्रशासन के अधिकारियों को दिखाता है, अधिकारी उसके प्रभाव में आ जाते हैं। पिछले कुछ सालों से यह गड़बड़झाला चल रहा है। उसकी जांच कराने, सही वस्तुस्थिति का पता लगाने के बजाय प्रशासन उसके साथ खड़ा नजर आता है। इसी वजह से उत्तराखंड आंदोलन के शहीद बाबा मोहन उत्तराखंडी के शहादत दिवस पर लोग उनके स्मारक तक भी नहीं जा सकते।

आपको याद होगा, कोर्ट ने बुग्यालों में रात्रि विश्राम पर प्रतिबंध लगा रखा है। इस निर्णय की वजह से उत्तराखंड हिमालय में आने वाले पर्यटक, साहसिक खेलों के शौकीनों को टैकिंग पर जाना प्रतिबंधित हो गया है। इस वजह से हजारों युवाओं से रोजगार छिन गया है, जो इस तरह के आयोजन से रोजगार प्राप्त कर रहे थे। वे लगातार कोर्ट से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिल रही है। लेकिन एक व्यक्ति एक फिल्मी किस्म का दावा कर पूरे बुग्याल पर कब्जा कर लेता है, यहां कोर्ट के आदेश भी लागू नहीं होते। बिना किसी मिलीभगत से यह कार्य संभव ही नहीं हो सकता है।

औली बुग्याल की भी कुछ ऐसी ही कहानी थी। औली को अंतर्राष्टीय स्कीइंग का केंद्र बनाया गया तो एक व्यक्ति ने वहां होटल बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसे मंजूर कर लिया गया। होटल बनाने के साथ ही उस व्यक्ति ने अगल-बगल की बहुत सारी जमीनों पर कब्जा कर लिया। चमोली का जो भी जिलाधिकारी या जोशीमठ का जो भी उपजिलाधिकारी इसके खिलाफ कार्यवाही करने के लिए कदम उठाता, उसका अगले दिन तबादला हो जाता। सरकार के अंदर बहुत सारे लोग इससे गलबहियां करते थे। इसलिए उपजिलाधिकारी, जिलाधिकारी जैसे प्रशासनिक अधिकारी उसके सामने फटकने से भी कतराते हैं। इसी औली में पिछले साल उत्तराखंड सरकार ने गुप्ता बंधुओं को शादी करने की अनुमति दे दी। जब मामला कोर्ट पहुंचा तो उत्तराखंड सरकार ने अपने हलफनामे में औली को बुग्याल मानने से ही इंकार कर दिया। ऐसा ही कुछ बेनीताल के मामले में भी हो सकता है।

बेनीताल के इस मामले की जानकारी पिछले दिनों आंदोलनकारी मुकुंद कृष्ण दास के बेनीताल भ्रमण के दौरान हो पाई। उन्हें बताया गया था कि बेनीताल सूखने लगा है। वे यही देखने के लिए बेनीताल पहुंचे तो वहां के हालात देखकर आश्चर्यचकित हो गए। बेनीताल तक जाने वाली सड़क को काटकर गहरा गड्डा खोद दिया गया है। वहां एक बोर्ड लगा हुआ है। जिसमें बेनीताल स्टेट को राजीव सरीन की निजी संपत्ति बताया गया है। बगल में एक छोटा सा बोर्ड और लगा है, जिसमें इससे आगे प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है। बुग्याल के बीच में एक आवास बनाया गया है, जिसे होम स्टे के रूप में संचालित किया जा रहा है। इस आवास में एक मैनेजर/केयरटेकर, सुरक्षा कर्मी निवास करते हैं।

मुकुंद कृष्ण दास ने स्थानीय चरवाहों और बेनीताल संघर्ष समिति के लोगों के बात करने की कोशिश की। वे सभी इस बुग्याल के कथित मालिक से डरे हुए हैं। पुलिस प्रशासन सब उसके साथ खड़े हैं। यदि बाबा मोहन उत्तराखंडी की स्मृति स्थल पर भी उनका जाना प्रतिबंधित होगा, पुलिस प्रशासन के लोग उन्हें खदेड़ देंगे ता,े उनका निराश होना स्वाभाविक है। उन्होंने एक तरह से इस व्यक्ति को बुग्याल का मालिक मान लिया है, क्योंकि पूरा पुलिस और प्रशासन उसके साथ खड़ा है।

मुकुंद कृष्ण दास इस मामले से जुड़े कागजातों की जांच कराने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ लोग इसे कोर्ट तक ले जाने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि राज्य से बाहर से आकर कोई व्यक्ति पूरे बुग्याल पर ही कब्जा कर ले, वन विभाग, स्थानीय प्रशासन और उत्तराखंड सरकार सब उसके सामने नतमस्तक हो जाएं।

राज्य के युवा भू-कानून बहाल करने का अभियान चला रहे हैं। दो साल पहले सरकार भू कानून के अस्थित्व को ही समाप्त कर सदन में जमीन खरीद संबंधी कागज लहराती है और लोगों को जमीन खरीदने के लिए प्रेरित करती है। यदि सरकार भू-माफियाओं की इस कदर मददगार होगी तो परिणाम यही तो होंगे?

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