डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
बदरी विशाल और केदारनाथ धाम में कंक्रीट की बड़ी संरचनाएं आकर ले चुकी है. हालांकि, इन दोनों धामों में हुआ ये निर्माण मास्टर प्लान के तहत किया गया है, लेकिन इन वादियों में हरियाली के स्वरूप पर कभी कोई बड़ी पहल नहीं हो पाई. इसी कमी को समझते हुए पहली बार बदरीनाथ और केदारनाथ धाम में ग्रीन बेल्ट प्रोजेक्ट बनने जा रहा है. जो कि कंक्रीट में बदलते बदरी केदार को ऑक्सीजन देने का काम करेगा.उत्तराखंड में भारत सरकार की मदद से पहले केदारनाथ और फिर बदरीनाथ के मास्टर प्लान पर काम शुरू किया गया. इस दौरान यहां सैकड़ों करोड़ की लागत से कई बड़े काम किए जाने हैं. हालांकि, धामों में काफी काम हो चुके हैं, लेकिन अब भी इनके पूरा होने का इंतजार है. इस बीच बदरीनाथ और केदारनाथ धाम में कंक्रीट के जंगल खड़े होने को लेकर भी चिंताएं जताई जाती रही हैं. ऐसे में वन विभाग ने बदरीनाथ और केदारनाथ धाम में हरियाली लाने के प्रोजेक्ट को शुरू करने का फैसला किया है. बदरीनाथ और केदारनाथ क्षेत्र में विशेषज्ञों की मदद से भौगोलिक और स्थानीय स्थितियों का अध्ययन किया जाएगा. खास बात ये हैं कि इस दौरान स्थानीय वनस्पतियों और पौधों को ही वरीयता देने के निर्देश अधिकारियों को दिए गए हैं.यह स्पष्ट किया गया है कि केदारनाथ और बदरीनाथ में ग्रीन बेल्ट तैयार करने के लिए जो भूमि उपलब्ध है, उस पर विशेषज्ञों और आर्किटेक्चर की मदद से काम किया जाएगा. ऐसा इसलिए ताकि पुनर्निर्माण और विकास के कार्यों के अनुरूप ग्रीन बेल्ट का विकास किया जा सके. पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ और मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल को निर्देश जारी करते हुए 15 दिन के भीतर इससे संबंधित योजना का प्रारूप तैयार करने के लिए कहा है. इसके साथ ही कहा कि स्थानीय वनस्पतियों को ग्रीन बेल्ट में लगाया जाएगा. प्रमुख वन संरक्षक हाफ कहते हैं कि इससे पहले भी वन विभाग ने इस क्षेत्र में नर्सरी तैयार की थी. खास तौर पर केदारनाथ धाम में वनस्पति या पौधों को सरवाइव करना काफी मुश्किल होता है और बर्फबारी के साथ 11,755 फीट ऊंचाई पर किसी पौधे या वनस्पति का उगना मुश्किल दिखता है. इसी तरह बदरीनाथ धाम भी करीब 10,279 फीट ऊंचाई पर है. जहां ऑक्सीजन की कमी और ठंडा मौसम इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि, वनस्पति और पेड़ पौधों के लिए भी मुश्किलें खड़ी करता है. वन विभाग का बदरीनाथ और केदारनाथ में ग्रीन बेल्ट तैयार करने से जुड़ा प्रोजेक्ट सराहा जा रहा है. खुद बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष भी इस प्रोजेक्ट की सराहना कर रहे हैं, लेकिन उनकी एक चिंता इस बात को लेकर भी है कि वन विभाग जी प्रोजेक्ट को शुरू कर रहा है, क्या वो सफल हो पाएगा? बदरीनाथ और केदारनाथ में यदि ये प्रोजेक्ट सफल हो पाता है तो न केवल यहां आने वाले श्रद्धालुओं को इतने ऊंचे क्षेत्रों में ग्रीन बेल्ट देखने का मौका मिल पाएगा. बल्कि, धामों की सुंदरता भी बढ़ेंगी. इसके अलावा स्थानीय लोग मानते हैं कि इतने ऊंचे क्षेत्रों में वनस्पतियां और पौधे लगने से ऑक्सीजन भी बढ़ पाएगी. यह क्षेत्र काफी ऊंचाई पर होने के कारण यहां ऑक्सीजन की कमी रहती है और श्रद्धालुओं को भी यहां कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. फिलहाल, इन धामों में अलग-अलग कई तरह के काम किया जा रहे हैं. जिसमें सड़क का चौड़ीकरण, सुरक्षात्मक ढांचे, रोपवे, पार्किंग, अतिथि गृह और दूसरे कुछ भवन निर्माण भी शामिल हैं. यानी काफी बड़ी संख्या में कंक्रीट का बड़ा नेटवर्क इस क्षेत्र में तैयार होने जा रहा है. यह सभी गतिविधियां यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा को लेकर की जा रही है, लेकिन इस बीच एक कमी इस क्षेत्र में हरियाली को लेकर हमेशा महसूस की जाती रही है.इस क्षेत्र में केवल स्थानीय पेड़, पौधे की लगा सकते हैं. विभाग मानता है कि यहां कुछ वनस्पतियां और मेडिसिनल प्लांट पर काम किया जा सकता है. इसके अलावा इस क्षेत्र के आसपास उगने वाली कुछ झाड़ियों को भी बेहतर स्वरूप में ऊंचे स्थान लगाया जा सकता है. सबसे अच्छी बात ये है कि इससे न केवल हरियाली के रूप में इन धामों की सुंदरता को बढ़ाया जा सकेगा. बल्कि, ऐसे पेड़ पौधे लगने से मिट्टी को भी मजबूती मिलेगी और भूस्खलन जैसी घटनाओं को भी कुछ हद तक कम किया जा सकता है. उधर, दूसरी तरफ इन क्षेत्रों में ग्रीन बेल्ट विकसित होने से पर्यावरणीय संतुलन को भी बहाल किया जा सकेगा.कंक्रीट संरचनाओं के साथ हरे-भरे पौधों से शुद्ध हवा और हरियाली का अनुभव भी श्रद्धालु ले सकेंगे. इसके अलावा दूसरी तरफ इस प्रोजेक्ट के सफल होने पर यह बाकी क्षेत्र के लिए भी एक बड़े मॉडल के रूप में माना जाएगा और इसी तरह के प्रयोग बाकी क्षेत्रों में भी किया जा सकते हैं. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*