सत्यपाल नेगी/रुद्रप्रयाग
उत्तराखण्ड राज्य 2000 में अस्तित्व में आया। बड़े.बड़े सपने थे, पर्वतीय विकास के लिए। मगर 21 साल गुजर गये, अभी भी मूल पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड के सपने पूरे नहीं हो सके।
राज्य को बने 21 साल हो गये, इन 21 सालों में जहाँ 5 मुख्यमंत्री मात्र होने चाहिए थे, वहाँ हम 11 मुख्यमंत्रियों का छोटे राज्य में विश्व रिकार्ड बन चुका है।
बारी.बारी हर पाँच साल यहां पर राष्ट्रीय दलो कॉग्रेस.भाजपा ने ही राज किया। विकास की रफ्तार भी बढ़ती रही, सभी सरकारो ने कोशिशें भी जारी रखी, मगर सवाल वही खड़े है कि मूल राज्य की अवधारणा वाले सपने आज भी अधूरे ही पड़े हैं।
अब जब 11वें मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिह धामी को सरकार चलाने की कमान मिली है, तो उनके सामने भी वही 21 सालों से चले आ रहे बड़े सवाल खड़े हैं, जिन्हें पूरा कराने चुनौती ही नहीं, बल्कि पहाड़ जैसी चट्टान से टकराना जैसा होगा।
क्या होगा इन मूल भूत जन समस्याओं का समाधान’……..
राज्य में बेसिक स्वास्थ्य, शिक्षा पर कैसे काम करेगे धामी साहब।
21 सालों से राज्य की अपनी स्थाई राजधानी तय नहीं है।
पर्वतीय जिलों में बिखरी खेती को लेकर उठी आवाज चकबन्दी पर क्या फैसला देगे।
बढ़ती बेरोजगारी एवं पलायन पर कैसे होगा मंथन।
बरसों से आपदा प्रभावित गाँवों का विस्थापन कितनी जल्दी होगा।
मूल निवास अधिकार को लेकर आज भी सवाल खड़े है।
चारधाम को लेकर देवस्थानम बोर्ड पर उठे सवालो का क्या होगा समाधान।
बेसिक व माध्यमिक सरकारी स्कूली शिक्षा पर कैसी होगी नीति।
गढ़वाल मण्डल मे स्वीकृत सैनिक स्कूल बनाने को लेकर क्या होगी प्लानिग।
विभागों मे ठेकेदारी के माध्यम से मोटी कमीशन खोरी पर लगेगी शक्ति से लगाम।
ऐसे बहुत सारे जन मुद्दे सालो से विकट स्थिति बनाये खड़े है।
नये मुख्यमंत्री पुष्कर सिह धामी के पास मात्र 5 महिनों का ही समय है और सामने 21 सालो से चले आ रहे पहाड़ जैसी समस्या खड़ी है। देखना समझना आंकलन करना आसान है, मगर समाधान इन 5 महिनों में होगा, इस पर भी प्रश्न चिह्न है?