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चार धामों में प्रसाद के रूप में चौलाई का लड्डू

05/10/19
in उत्तराखंड, देहरादून
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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
पित्र पर्व है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना की जाती है। यह संस्कृत का एक शब्द है जिसका अर्थ है नौ रातें। नवरात्रि के नौ दिनों दुर्गा के अलग अलग स्वरुपों की पूजा की जाती है और अच्छे स्वास्थ्य एवं सुख समृद्धि की कामना की जाती है। इसके साथ ही नवरात्रि में उपवास रखने से भी शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है। चौलाई की सब्जी शायद सबने खाई होगी लेकिन बहुत कम लोग ही इसके फायदे जानते होंगे। हरी सब्जियों में अपना एक अलग नाम रखने वाला यह पौष्टिक गुणकारी सब्जी हमारे स्वास्थ्य को बहुत लाभ पहुँचती है। इसकी सब्जी बहुत ही स्वास्दिष्ट होती है, जिससे बड़े चाव से खाया जाता है। यह अपने पौष्टिक गुणों से विख्यात है, इसमें प्रोटीन, विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह कई बिमारियों के उपचार में काम आता है।
आइए जानते हैं चौलाई से होने वाले स्वास्थ्य लाभ चौलाई अंग्रेज़ी आमारान्थूस् पौधों की एक जाति है जो पूरे विश्व में पायी जाती है। अब तक इसकी लगभग ६० प्रजातियां पाई व पहचानी गई हैं, चौलाई दो तरह की होती है. एक सामान्य पत्तों वाली तथा दूसरी लाल पत्तों वाली। कटेली चौलाई तिनछठ के व्रत में खोजी जाती है। भादौ की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह व्रत होता है। जिनके पुष्प पर्पल एवं लाल से सुनहरे होते हैं। गर्मी और बरसात के मौसम के लिए चौलाई बहुत ही उपयोगी पत्तेदार सब्जी होती है। चौलाई की कई प्रजातियां भारत में मिलती और प्रयोग की जाती हैं छोटी चौलाई इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। इसके पौधे सीधे बढ़वार वाले तथा छोटे आकार के होते है, पत्तियाँ छोटी तथा हरे रंग की होती है। यह किस्म वसंत तथा बरसात में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। बङी चौलाई इस किस्म को भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है। इसकी पत्तियाँ बङी तथा हरे रंग की होती है और तने मोटे, मुलायम एवं हरे रंग के होते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। पूसा कीर्ति इसकी पत्तियाँ हरे रंग की काफी बड़ी, ६.८ सेमी० लम्बी और ४.६ सेमी० चौङई होती है तथा डंठल ३.४ सेमी० लम्बा होता है। इसका तना हरा और मुलायम होता है। यह ग्रीष्म ऋतु में उगाने के लिए बहुत उपयुक्त किस्म है।
पूसा लाल चौलाई इस किस्म को भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा ही विकसित किया गया है। इसकी पत्तियाँ लाल रंग की काफी बङी लगभग ७.५ सेमी० लम्बी और ६.५ सेमी० चौङी होती हैं। इसकी पत्तियों के डंठल की लम्बाई ४ सेमी० होती है। इसका तना भी गहरे लाल रंग का होता है तथा तना और पत्ती का अनुपात १ः५ का होता है। पूसा किरण यह बरसात के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसकी पत्तियाँ मुलायम हरे रंग की तथा चौङी होती है और पत्ती के डंठल की लम्बाई ५.६.५ सेमी० होती है।
मोरपंखी यह बरसात के मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म होती है। इसकी पत्तियाँ मुलायम हरे तथा लाल रंग की तथा चौङी होती है और पत्ती के डंठल की लम्बाई ५.६.५ सेमी० होती है। इसका फूल बहुत सुंदर होता है और इसे सजावट के रूप में गमलों में भी लगाया जा सकता है। अधिकांश साग और पत्तेदार सब्जियां शित ऋतु में उगाई जाती हैं, किन्तु चौलाई को गर्मी और वर्षा दोनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है। इसे अर्ध.शुष्क वातावरण में भी उगाया जा सकता है पर गर्म वातावरण में अधिक उपज मिलती है। इसकी खेती के लिए बिना कंकड़.पत्थर वाली मिट्टी सहित रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। इसकी खेती सीमांत भूमियों में भी की जा सकती है। चौलाई का साग तो आपने खाया ही होगा लेकिन बहुत कम, कभी.कभार। यह सब्जी बहुत ही आसानी से मिल जाती है। यह हरी पत्तेदार सब्जी है जिसके डंठल और पत्तों में प्रोटीन, विटामिन ए और खनिज की प्रचुर मात्रा होती है। चौलाई में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन.ए, मिनरल्स और आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
इस सब्जी को खाने से आपके पेट और कब्ज संबंधी किसी भी प्रकार के रोग में लाभ मिलेगा। पेट के विभिन्न रोगों से छुटकारा पाने के लिए सुबह.शाम चौलाई का रस पीने से भी लाभ मिलता है। चौलाई की सब्जी का नियमित सेवन करने से वात, रक्त व त्वचा विकार दूर होते हैं। चौलाई को तंदुलीय भी कहते हैं। संस्कृत में मेघनाथ, मराठी और गुजराती में तांदल्जा, बंगाली में चप्तनिया, तमिल में कपिकिरी, तेलुगु में मोलाकुरा, फारसी में सुपेजमर्ज, अंग्रेजी में च्तपबासल ।उंतंदजीने कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम ।उंतंदजीने ेचपदवेने है।
चौलाई को खाने से आंतरिक रक्तस्राव बंद हो जाता है। यह सब्जी खूनी बवासीर, चर्मरोग, गर्भ गिरना, पथरी रोग और पेशाब में जलन जैसे रोग में बहुत ही लाभदायक सि‍द्ध हुई है। चौलाई की कई प्रजातियां भारत में मिलती और प्रयोग की जाती हैं चौलाई की सब्जी शायद सबने खाई होगी लेकिन बहुत कम लोग ही इसके फायदे जानते होंगे। हरी सब्जियों में अपना एक अलग नाम रखने वाला यह पौष्टिक गुणकारी सब्जी हमारे स्वास्थ्य को बहुत लाभ पहुँचता है। इसकी सब्जी बहुत ही स्वस्दिष्ट होती है जिससे बड़े चांव से खाया जाता है। यह अपने पौष्टिक गुणों से विख्यात है इसमें प्रोटीन, विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह कई बिमारियों के उपचार में काम आता है चौलाई से होने वाले स्वास्थ्य लाभ चौलाई की सब्जी शायद सबने खाई होगी लेकिन बहुत कम लोग ही इसके फायदे जानते होंगे।
यह कई बिमारियों के उपचार में काम आता हैण् चौलाई की सब्जी जितनी स्वादिष्ट बनती है उतने ही टेस्टी बनते हैं इसके लड्डू चौलाई के लड्डू को राजगिरा और रामदाना भी कहते हैं। उत्तराखंड के चमोली जिले के घाट विकासखंड स्थित चाका मोठा गांव निवासी 57.वर्षीय गोविंद सिंह मेहर की पहचान, जो उन्होंने गांव में ही रहकर चौलाई के लड्डू व मंडुवा के बिस्कुट बनाकर कायम की। आज उन्हीं के प्रयासों से चौलाई के लड्डू प्रसाद के रूप में बदरीनाथ धाम समेत अन्य मंदिरों की खास पहचान बन गए हैं। गोविंद सिंह ने चौलाई के लड्डू व मंडुवा के बिस्कुट बनाने की शुरुआत 1998 में की। शुगर.फ्री होने के कारण इन उत्पादों को लोगों ने हाथोंहाथ लिया। इससे प्रेरित होकर उन्होंने चौलाई के लड्डू को मंदिरों में प्रसाद के रूप में स्थापित कर स्थानीय लोगों को रोजगार से जोड़ने की ठानी।
2006 में उन्होंने हैस्को संस्था की मदद से बदरीनाथ धाम में चौलाई के लड्डू का प्रसाद चढ़ाने की पहल की। साथ ही बतौर मास्टर ट्रेनर जोशीमठ, मेरग, गणेशपुर, बामणी, पैनी आदि गांवों की 150 से अधिक महिलाओं को चौलाई के लड्डू व मंडुवे के बिस्कुट बनाने का प्रशिक्षण भी देने लगे है पहले मंदिरों में चौलाई, मंडुवा व गेहूं के आटे से बना प्रसाद ही चढ़ता था। लेकिन, कालांतर में इसकी जगह मिठाई आदि ने ले ली। बदरीनाथ मंदिर में भी प्रसाद के रूप में चने की दाल, मिश्री, काजू, किसमिस आदि ले जाया जाने लगा। लेकिन, गोविंद सिंह की पहल पर एक बार फिर चौलाई के लड्डू प्रसाद का खास हिस्सा बन गए हैं। हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में भी चौलाई, कुट्टू, घी और मेवे से तैयार प्रसाद श्रद्धालुओं की पसंद बन गया है। वर्तमान में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी बहादराबाद के रुहालकी गांव की दस महिलाएं मंदिर के लिए चौलाई का प्रसाद तैयार कर रही हैं। इससे वह रोजाना 500 रुपये तक कमा लेती हैं।
केदारनाथ यात्रा में बाबा केदार को चौलाई के लड्डू प्रसाद के रूप में चढ़ाए इस वर्ष से यह व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। चौलाई के लड्डू बनाने और विक्रय के लिए केदारनाथ प्रसाद संघ का गठन किया गया है। जिले में कार्यरत सभी गैर सरकारी संस्थाएं व अन्य कोई भी संस्थान जो इस संबंध में कार्य कर रही है या करना चाहती है वह केदारनाथ प्रसाद संघ से संपर्क करके कार्य कर सकती है। डीएम ने कहा कि पूर्व में केदारनाथ में इलायची को प्रसाद के रूप में चढाया जाता था, किंतु इस वर्ष से स्थानीय उत्पाद से निर्मित लड्डू ही प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा। साथ ही लड्डू से जो भी लाभ अर्जित होगा उसका लाभांश इस कार्य से जुड़े हुए प्रत्येक कार्यकर्ता को दिया जाएगा। डीएम ने कहा कि इस योजना से जहां ग्रामीणों की आर्थिकी मजबूत होगी, वहीं स्थाई रोजगार भी लोगों को मिलेगा।
केदारनाथ में चौलाई के लड्डू के साथ ही स्वयं सहायता समूह द्वारा निर्मित चौलाई का चूरमा, धूप, भस्म, जूट, कपडे़ के बैग चौलाई की खीर एवं रिंगाल की टोकरी आदि सामग्री भी उपलब्ध रहेगी। इस पूरे कार्य का दायित्व एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना को दिया गया है। प्रसाद के लिए एक स्टोर सोनप्रयाग में और दूसरा केदारनाथ में खोला गाय। केदारनाथ में चौलाई के लड्डूओं की भारी डिमांड, कमी के चलते व्यापारी और तीर्थयात्री परेशान 2019 में चौलाई के लड्डू से एक करोड़ का टर्नओवर हुआ था। वहीं इस साल चौलाई के लड्डू की डिमांड अधिक होने लगी है। केदारधाम में चौलाई के लड्डूओं को बहुत ही ज्यादा पसंद किया जा रहा है। इस साल भारी तादाद में तीर्थयात्री केदारधाम पहुंच रहे हैं। ऐसे में डिमांड को पूरा किया जाना मुश्किल हो रहा हैण्लड्डू बनाने वाली संस्थाओं को एफएसएसएआई फूड सेफ्टी एंड स्टैर्डड अथोरिटी ऑफ इंडिया से लाइसेंस प्राप्त करना होगा, जिससे लड्डू की गुणवत्ता बनी रहे।

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