डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
इस साल चारधाम यात्रापर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ आध्यात्मिक अनुभव ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के पारंपरिक स्वाद का भी खास इंतजाम किया गया है. यात्रा मार्गों पर श्रद्धालु अब झंगोरा खीर, गहत की दाल, भट की चुड़कानी, कुमाऊंनी रायता, आलू के गुटके और मंडुए की रोटी जैसे पौष्टिक और पारंपरिक व्यंजनों का आनंद ले सकेंगे. गढ़वाल मंडल विकास निगम ने इस बार यात्रा के दौरान स्थानीय व्यंजनों को बढ़ावा देने के लिए व्यवस्था की है. अनुभवी स्थानीय रसोइए श्रद्धालुओं को पहाड़ी जायकों से रूबरू कराएंगे. दरअसल चारधाम यात्रा में अब तक श्रद्धालु अधिकतर मॉडर्न या फास्टफूड या सामान्य भोजन का ही विकल्प पाते थे लेकिन इस बार उत्तराखंड के पारंपरिक खानपान को प्रमुखता से शामिल किया गया है. यह पहल न केवल यात्रा को यादगार बनाएगी बल्कि स्थानीय उत्पादों और व्यंजनों को भी बढ़ावा देगी. श्रद्धालुओं को अब पिज्जा-बर्गर या नूडल्स के बजाय पहाड़ी खाद्य पदार्थों का असली स्वाद चखने का अवसर मिलेगा.उत्तराखंडी व्यंजन सिर्फ स्वाद में ही बेहतरीन नहीं होते बल्कि ये सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होते हैं. मंडुए की रोटी, गहत की दाल और भट की चुड़कानी प्रोटीन से भरपूर होती है, जो पहाड़ों की कठिन यात्रा में शरीर को ताकत देती है. वहीं झंगोरा खीर और कुमाऊंनी रायता जैसे व्यंजन न केवल हल्के होते हैं बल्कि पाचन के लिए भी बेहतरीन माने जाते हैं.सरकार और जीएमवीएन की इस पहल से न केवल श्रद्धालुओं को पहाड़ी भोजन का अनूठा अनुभव मिलेगा बल्कि स्थानीय किसानों और कुक को भी रोजगार के नए अवसर मिलेंगे. वहीं चारधाम यात्रा के दौरान उत्तराखंडी व्यंजनों को बढ़ावा देने से राज्य की समृद्ध पाक परंपरा को भी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी. जीएमवीएन के एमडी ने कहा कि आमतौर पर बाज़ार में कई सारे फूड मौजूद हैं लेकिन हम चाहते हैं कि यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु उत्तराखंड के जायकों का आनंद लें. यही वजह है कि इस बार यात्री यात्रा मार्ग पर पहाड़ के पारंपरिक पकवानों का स्वाद ले सकेंगे. गौरतलब है कि चारधाम यात्रा 30 अप्रैल से शुरू हो रही है और हर साल की तरह इस बार भी श्रद्धालुओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है. महज पांच दिनों में ही 7 लाख से ज्यादा श्रद्धालु ऑनलाइन पंजीकरण करवा चुके हैं. आलम यह है कि जीएमवीएन ने अप्रैल से अगस्त तक की ताबड़तोड़ बुकिंग कर ली है. अब तक 1.90 करोड़ रुपये की ऑनलाइन बुकिंग हो चुकी है. यह आंकड़े साफ दर्शाते हैं कि इस बार यात्रा ऐतिहासिक होने वाली है. आर्गेनिक रूप से उत्पादित अनाज, पहाड़ी दालें, कीवी, बुरांश, पुदीना, माल्टा का जूस, अरसे, रोटने, पिस्यूंल लूण (पहाड़ी नमक) कोदा, झंगोरा समेत अन्य कई पहाड़ी उत्पाद शामिल हैं. साथ ही उन्होंने इस बार नई कोशिश करते हुए बिच्छू घास (कंडाली) व कोदे के चिप्स भी तैयार किये हैं. बताती हैं कि वैसे तो कंडाली को उबालकर फिर साग की तरह बनाकर खाया जाता है, व कोदे का प्रयोग बेकरी आइटम जैसे कि बिस्कुट, ब्रेड या फिर रोटी बनाने के लिए प्रयोग होता था उसे भी डाई फार्म में कर पापड़ के रूप में तैयार किया गया है चारधाम यात्रा को उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की धुरी माना जाता है। यात्रा शुरू होने से यहां के कई लोगों को रोजगार मिल जाता है। इन यात्रियों से होने वाली आमदनी से लोग अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। यहां पर आने वाले यात्रियों के लिए आवास, खाने-पीने, वाहन, घोडे़ आदि की व्यवस्था अच्छी तरह से होनी चाहिए, जिससे यहां आने वाले श्रद्धालु अच्छी यादें लेकर जाएं, पहाड़ी किचन की कोशिश यहां आने वाले लोगों को पहाड़ी उत्पादों का बेहतरीन जायका उपलब्ध कराने की है।. *लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*