डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में जल्द ही मॉनसून दस्तक देने वाला है. मौसम विभाग की माने तो उत्तराखंड में दस जून तक मॉनसून पहुंच जाएगा. मौसम विभाग ने इस बार मॉनसून सीजन में 108 बारिश होने की संभावना जताई है. मौसम विभाग के इसी आकंलन को देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग ने भी अपनी कमर कस ली है बारिश और आंधी तूफान के बीच गरजते बादलों की आवाज जहां लोगों मेखौफ पैदा कर रही है वहीं बादल फटने से आई आपदाओं की याद को भी भी ताजा कर रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 1970 से अब तक बादल फटने की 17 बड़ी घटनाएं हो चुकी है। जिसमें वर्ष 2013 में केदारनाथ में बादल फटने की घटना सबसे बड़ी थी। जिसमें 5 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे जबकि हजारों लोग लापता हो गए थे। अब फिर से बदल रहे मौसम के साथ हो रही बारिश उन खौफनाक घटनाओं की याद दिला रही है जिसे देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग ने भी आपदा से निपटने के लिए अभी से तैयारियां करनी शुरू कर दी है आपदा के लिहाज से उत्तराखंड को संवेदनशील राज्य माना जाता है। जिसका अधिकांश हिस्सा पहाड़ी है। जहां पर मानसून के दौरान अलग-अलग कारणों से बादल फटने की घटनाएं होती हैैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते बादल फटने के बाद उसकेपरिणाम भयावह होते हैैं। क्योंकि पहाड़ी क्षेत्र में पानी का बहाव काफी तेज होता है। स्थिति यह होती है बादल फटने के बाद आई जल प्रलय के आगे जो भी आता है सब कुछ जमींदोज हो जाता है। चंद मिनटों में ही गांव-खेत और खलियान सभी मिट्टïी मे दफन हो जाते है, जिसमें कई लोगों की अकाल मौत भी हो जाती है। बादल फटने की घटना के आने वाली जल प्रलय से चंद मिनटों में सब कुछ तबाह हो जाता है। किसी के सिर से पिता तो किसी के सिर से मां का साया छिन जाता है। किसी भाई की कलाई सूनी रह जाती है तो कहीं भाई की ही अकाल मौत हो जाती है। परिवार के परिवार उजड़ जाते है। इसी के साथ लोगों की मवेशी और आशियाने भी ध्वस्त हो जाते हैैं। लोगों को शरणार्थियों की तरह आस-पास के एरियाज में सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ती है। आपदा के यह जख्म सालों तक नहीं भरते है प्राकृतिक आपदा को आने से रोका नहीं जा सकता है। लेकिन समय रहते राहत और बचाव कार्य शुरू होने पर इसके नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है। जिसको लेकर आपदा प्रबंधन विभाग ने अभी से कसरत करनी शुरू कर दी है। हर मानसून सीजन के दौरान उत्तराखंड के तमाम क्षेत्रों में आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. इसके साथ ही मानसून के दौरान चारधाम यात्रा भी काफी प्रभावित होती है, लेकिन हर साल मानसून के दौरान सबसे ज्यादा सड़कों को नुकसान पहुंचता है. जिसके चलते यातायात बाधित हो जाता है. ऐसे में आगामी मानसून या आपदा सीजन को लेकर क्या हैं तैयारियां, किन विषयों पर दिया जा रहा है जोर? उत्तराखंड में इस बार चारधाम यात्रा 2025 चुनौतीपूर्ण होने जा रही है. इसके पीछे की वजह मौसम विभाग का वह पूर्वानुमान है, जो आने वाले मॉनसून में सामान्य से ज्यादा बारिश होने का संकेत दे रहा है. आगामी मानसून सीजन को लेकर दिए गए पूर्वानुमान ने क्यों बढ़ा दी उत्तराखंड के लिए चिंता इस बीच भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने एक ऐसी भविष्यवाणी की है, जो भले ही देश भर में कृषि क्षेत्र को लेकर बेहतर मानी जा रही हो, लेकिन इसने उत्तराखंड के लिए बड़ी चिंता खड़ी कर दी है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने मॉनसून सीजन के दौरान सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना व्यक्त की है. इस तरह जून से सितंबर के बीच मॉनसून सीजन में बारिश का अनुमान 105% तक का लगाया गया है. वैसे उत्तराखंड में लोग अधिकतर कृषि पर निर्भर रहते हैं. यहां पर पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली कृषि बारिश आधारित ही है. ऐसे में यदि मानसून सीजन के दौरान राज्य में अच्छी बारिश मिलती है, तो यह किसानों को राहत दे सकती है. राज्य में चारधाम यात्रा कई जिलों में लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा जरिया है, लेकिन बरसात में जिस तरह से भूस्खलन का खतरा बढ़ता है, वो टेंशन की बात है.राज्य में हर साल मानसून सीजन के दौरान बड़ी संख्या में लैंडस्लाइड की घटनाएं होती हैं. इस तरह की घटनाओं में कई बार लोगों की जान भी चली जाती है. इन स्थितियों के बीच जब मानसून में बारिश 105% तक अधिक होने का अनुमान लगाया गया है, तब भूस्खलन की भी संभावनाएं बढ़ जाती हैं. बस यही स्थिति राज्य सरकार के लिए भी चिंता पैदा कर रही है. वैसे उत्तराखंड में लोग अधिकतर कृषि पर निर्भर रहते हैं. यहां पर पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली कृषि बारिश आधारित ही है. ऐसे में यदि मानसून सीजन के दौरान राज्य में अच्छी बारिश मिलती है, तो यह किसानों को राहत दे सकती है. राज्य में चारधाम यात्रा कई जिलों में लोगों के लिए रोजगार का एक बड़ा जरिया है, लेकिन बरसात में जिस तरह से भूस्खलन का खतरा बढ़ता है, वो टेंशन की बात है. प्रदेश में सामान्य से अधिक बारिश होने पर कई जगहों पर भूस्खलन जैसी घटनाएं हो सकती हैं. हालांकि इसके लिए राज्य सरकार पूर्व से ही तैयारी करती है, लेकिन इसमें खास तौर पर चारधाम यात्रा में आने वाले यात्रियों को अलर्ट पर रहना होगा. मौसम विभाग का पूर्वानुमान जानने के बाद ही उन्हें अपनी यात्रा करनी चाहिए.। उत्तराखंड एक के बाद एक प्राकृतिक आपदाओं से जूझता आ रहा है। अतिवृष्टि, बाढ़, बादल फटना, वज्रपात जैसी आपदाएं अक्सर बड़ी दिक्कत की वजह बनती आ रही हैं। यद्यपि, इन आपदाओं से संबंधित पूर्वानुमान को लेकर मौसम विभाग से लेकर भिन्न-भिन्न स्तर पर व्यवस्था है, लेकिन आमजन को तत्काल इसकी सूचना नहीं मिल पाती। इस सबको देखते हुए सरकार ने अब पूर्वानुमान की जानकारी आमजन तक पहुंचाने की दिशा में कदम उठाने की ठानी है, ताकि समय रहते नागरिकों को सचेत कर क्षति को न्यून किया जा सके। आपदा प्रबंधन विभाग के अपर सचिव के अनुसार आमजन को आपदा से सचेत करने के दृष्टिगत ही ब्राडकास्ट सिस्टम विकसित किया जा रहा है।ऐसा तंत्र बनाया जा रहा है, जिससे आपदा से संबंधित पूर्वानुमान की सूचना समय रहते मिल जाएगी। इसके लिए मोबाइल फोन पर अलर्ट बीप के साथ ही संदेश के माध्यम से सूचनाएं प्रसारित की जाएंगी। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*