देहरादून। कैलास मानसरोवर मार्ग पर स्थित छोटा कैलास के नाम से प्रचलित, जिसमें ओम पर्वत से लेकर आस-पास की भूदृश्यावलियां शामिल हैं, यूनेस्को की विश्व धरोहर की अनन्तिम सूची में शामिल की गई है। यह यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित करने की प्रक्रिया में पहला कदम है। गौरतलब है कि जब 1992 में चीन ने कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए एक मार्ग खोलने का प्रस्ताव भारत को दिया था, कई मार्ग होने के बावजूद भारत ने पिथौरागढ़ जिले के इसी मार्ग को प्राथमिकता दी थी। इसकी मूल वजह यही भूदृश्यावली बताई गई थी। जिसका अत्याधिक पौराणिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक महत्व है। चीन सीमा पर भारतीय भूभाग में स्थित इस भूदृश्य के विश्व धरोहर घोषित होने के बाद इस क्षेत्र का पर्यटन के तौर पर अत्यधिक महत्व बढ़ जाएगा।
इस संबंध में आज मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में संबंधित विभागों की बैठक हुई। बैठक में इस प्रगति पर प्रसन्नता व्यक्त की गई। जब इस बारे में सूचना विभाग का प्रेस नोट आया तो इसे पढ़कर कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। जिसमें कहा गया था कि पिथौरागढ़ जिले में स्थित भूदृश्य को यूनेस्को द्वारा भारतीय विश्व धरोहर की अनन्तिम सूची में शामिल किया है। नीचे इस प्रेस नोट की पंक्तियां हू-ब-हू दी जा रही हैं।-
‘‘देहरादून। उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित भूदृश्य को यूनेस्को द्वारा भारतीय विश्व धरोहरों की अनन्तिम सूची में शामिल किया गया है। इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि यदि यह क्षेत्र विश्व धरोहर के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर के रूप में शामिल होता है, तो इससे देश व दुनिया में पर्यटन के क्षेत्र में भी उत्तराखण्ड को विशेष पहचान मिलेगी। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि जब कोई क्षेत्र विश्व धरोहर के रूप में विकसित होता है तो ऐसे क्षेत्रों को पर्यटन एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रमुख केन्द्र बनने में मदद मिलती है।
पिथौरागढ़ जनपद में स्थित भूदृश्य को ‘‘पवित्र पर्वतीय भूदृश्य और विरासत मार्ग’’ के नामांकन का प्रस्ताव यूनेस्को को गया था। जिसे यूनेस्को के हेरिटेज केन्द्र, पेरिस द्वारा स्वीकार करते हुए भारतीय विश्व धरोहरों की अनन्तिम सूची में जोड़ा गया है।’’
हमारी सलाह है कि सूचना विभाग को इस तरह की अस्पष्ट और भ्रम पैदा करने वाली शब्दावली के साथ प्रेस नोट जारी करने से बचना चाहिए।
इस बैठक में सचिव वित्त श्री अमित नेगी, सचिव पर्यटन एवं संस्कृति श्री दिलीप जावलकर, हार्क के निदेशक श्री महेन्द्र सिंह कुंवर आदि उपस्थित थे।