शंकर सिंह भाटिया
अभी कुछ दिन पहले उत्तराखंड के 13 जिलों में से सात पर्वतीय जिले कोरोना मुक्त थे। पूरा विश्व कोरोना के संक्रमण से त्राहिमाम कर रहा था, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ों में कोरोना घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। दो पर्वतीय जिलों पौड़ी और अल्मोड़ा में कोरोना संक्रमण के एक-एक मामले जरूर आए थे, लेकिन वह जमातियों की हरकत थी। लेकिन अब सिर्फ 3 पर्वतीय जिले कोरोना मुक्त रह गए हैं, ये जिले भी कब कोरोना संक्रमित हो जाएंगे, आशंका बनी हुई है।
उत्तराखंड में कोरोना का सबसे पहला मामला एफआरआई के प्रशिक्षुओं के जरिये पहुंचा था। विदेश दौरे से आए भारतीय वन सेवा के एक के बाद एक तीन अधिकारी कोरोना से संक्रमित हुए। उनके संपर्क में आए कुछ और लोग भी संक्रमित हुए थे, उसके बाद उत्तराखंड में जमातियों की वजह से कोरोना का संक्रमण काफी तेजी से फैला। लेकिन पुलिस प्रशासन की सतर्कता के कारण जमातियों की तुरंत पहचान कर ली गई और उन्हें क्वारंटीन कर कोरोना को ज्यादा गति पकड़ने से रोक दिया गया। दस दिन पहले तक उत्तराखंड कोरोना संक्रमण की संख्या 50 के आसपास घूम रही थी। लेकिन दस दिन में ही यह डेढ़ सौ को पार कर चुका है। जिस गति से संक्रमण इन दस दिनों में बहुत तीव्र गति से बढ़ा है, यदि गति ऐसी ही रही या इससे और तेज हुई तो मामला बहुत दूर तक जा सकता है, जैसा कि सरकार के स्तर पर आशंका जताई गई थी कि उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण 25 हजार के पार जा सकता है, यदि स्थिति यहां तक पहुंची तो उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के लिए भयावह स्थिति हो जाएगी। पर्वतीय क्षेत्र शीत प्रदेश है। जिस तरह यूरोप, अमेरिका, रुस जैसे ठंडे देशों में कोरोना ने तबाही मचाई है, जबकि ये देश स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में काफी विकसित माने जाते हैं, इसके बाद भी ये देश कोरोना के आक्रमण से ध्वस्त हो गए। यदि उत्तराखंड जैसे स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सबसे निकृष्टतम राज्य में कोरोना का यह आक्रमण होता है तो स्थिति क्या होगी, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है।
12 मई को उत्तराखंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या 69 थी। दुगुना होने की दर 45 दिन थी, इस दिन 365 सैंपल जांच के लिए भेजे गए। 69 कोरोना संक्रमितों में से 46 लोग ठीक होकर घर जा चुके थे। एक्टिव मामले सिर्फ 21 थे।
लेकिन दस दिन बाद आंकड़े बिल्कुल बदल गए हैं। 22 मई को राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या 151 हो गई है। दस दिनों में 81 कोरोना संक्रमित बढ़ गए, लेकिन अस्पताल से ठीक होकर 56 लोग ही घर गए हैं। दस दिन पहले एक्टिव मामले 21 से बढ़कर अब 94 हो गए हैं। दस दिन पहले 45 दिन में कोरोना संक्रमित दोगुने हो रहे थे, अब सिर्फ 8 दिन में संक्रमितों की संख्या दोगुनी हो रही है। यह भयावह दृश्य सिर्फ दस दिनों में बना है।
यहां एक बात और है, दस दिन पहले प्रति दिन करीब 365 सैंपल जांच के लिए विभिन्न लैब में जा रहे थे, लेकिन दस दिन बाद 1319 सैंपल जांच के लिए लैब में भेजे जा रहे हैं। कहीं कोरोना में यह वृद्धि सैंपल की संख्या बढ़ने की वजह से तो नहीं बढ़ी है? प्रतिदिन 1319 सैंपल जांच के लिए भी भेजना बहुत अधिक नहीं है, यदि सैंपल भेजने की दर बढ़ी तो संक्रमितों की संख्या भी निश्चित रूप से बढ़ेगी। तब शासन स्तर पर जताई गई आशंका सच साबित हो सकती है?
पहाड़ में इस समय सिर्फ तीन जिले पिथौरागढ़, चंपावत और रुद्रप्रयाग कोरोना संक्रमण से बचे हुए हैं। जिस तरह से प्रवासी पहाड़ की तरफ बढ़ रहे हैं और सैंपल लेने की दर बढ़ रही है, ये तीन जिले भी कब तक मुक्त रह पाएंगे, कहना मुश्किल है।
कोरोनाकाल के इस दौर में प्रवासियों का अपने घरों को आने का विरोध नहीं किया जा सकता है। क्योंकि रोजगार के लिए पलायन करते समय प्रवासियों ने चाहे जिस बेदर्दी से अपने घर छोड़े हैं, उतने ही करूण क्रंदन से संकटकाल में वे अपने घरों की शरण में आए हैं। संकट के समय कोई अपने घर नहीं आएगा तो कहां जाएगा? सवाल प्रवासियों को सही तरीके से संभालने का है। सरकारी आंकाड़ों के अनुसार इस दौर में उत्तराखंड में करीब सवा लाख प्रवासी अपने घरों को आए हैं, इतने ही आने के लिए प्रतीक्षारत हैं। किसी सरकार के लिए यह बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं होता है। उत्तर प्रदेश तथा विहार में 20-20 लाख प्रवासी अपने घरों को आ चुके हैं। यदि पुलिस, प्रशासन, स्वास्थ्य महकमे का सदुपयोग किया जाए और आने वाले हर एक प्रवासी को केंद्र की गाइड लाइन के अनुसार क्वारंटाइन किया जाए, हर एक प्रवासी पर नजर रखी जाए तो पहाड़ों को संक्रमण से बचाया जा सकता है। यदि संक्रमण इसी गति से बढ़ता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि हालात हाथ से निकल जाएंगे। जिस पहाड़ में सामान्य से बुखार का इलाज मौजूद नहीं है, हर मरीज को देहरादून, हल्द्वानी रेफर किया जाता है, वहां हजारों कोरोना संक्रमितों का इलाज कैसे हो सकेगा? हे प्रभु आप ही बचाना।