डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी उत्तराखंड की शान बढ़ा रहा है। उत्तराखंड में पिछले पांच साल में हाथियों का कुनबा बढ़ा या घटा है, इसे लेकर अक्टूबर में होने वाली गणना में तस्वीर साफ होगी। इसके लिए वन विभाग कसरत में जुट गया है। यमुना से लेकर शारदा नदी तक दो टाइगर रिजर्व और 11 वन प्रभागों के 6643 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हाथियों के बसरे में गणना के दृष्टिगत शीघ्र ही उन स्थलों का अध्ययन किया जाएगा, जिनमें हाथियों का निरंतर मूवमेंट है। अक्टूबर में इन स्थलों में एक-एक वर्ग किलोमीटर के ग्रिड तैयार किए जाएंगे, जिनमें हाथियों की प्रत्यक्ष गणना की जाएगी।हाथियों के संरक्षण में उत्तराखंड निरंतर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। वर्ष 2007 की गणना में यहां हाथियों की संख्या 1346 आंकलित की गई थी, जो वर्ष 2020 में बढ़कर 2026 पर पहुंच गई। पांच साल के लंबे इंतजार के बाद अब राज्य में हाथी गणना होने जा रही है। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने बताया कि गणना के दौरान केवल हाथियों को ही नहीं गिना जाएगा, बल्कि अन्य कई बिंदुओं का भी अध्ययन होगा। यह देखा जाएगा कि हाथियों का वासस्थल कैसा है, कहीं इसमें कोई दिक्कत नहीं है। हाथी कौन-कौन की वानस्पतिक प्रजातियां खा रहे हैं, इसे लेकर भी तस्वीर साफ होगी। जंगल में बने वाटरहोल से उन्हें पर्याप्त पानी मिल रहा या नहीं, यह भी देखा जाएगा।राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक एवं प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) के अनुसार हाथी बहुल क्षेत्रों में उन स्थलों की मैपिंग व अध्ययन किया जाएगा, जहां हाथियों की लगातार आवाजाही है। इससे यह पता चल सकेगा कि कहां-कहां हाथियों की आवाजाही अधिक है। फिर इसी हिसाब से ग्रिड बनाने के साथ ही गणना के लिए कार्मिकों की टीमें गठित की जाएंगी। सभी ग्रिड में एक साथ एक समय पर गणना होगी। हाथी गणना से कई रोचक तथ्य भी जुड़े हैं। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक बताते हैं कि हाथी के पैर की गोलाई के आधार पर उसकी ऊंचाई मापी जाती है। जितने फीट की गोलाई होगी, उसका दोगुना ही हाथी की ऊंचाई होती है। इसमें केवल एक फीट का अंतर कम या ज्यादा होता है। यही नहीं, प्रत्येक हाथी के कपाल और छाती में अंतर होता है। इसी आधार पर इन्हें अलग-अलग गिना जाता है। गणना के दौरान यह भी पता चलेगा कि किस क्षेत्र में हाथियों के झुंड अधिक है और कहां कम। कार्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी टाइगर रिजर्व के अलावा देहरादून, लैंसडौन, कालसी, हरिद्वार, नरेंद्रनगर, तराई पूर्वी, तराई केंद्रीय, रामनगर, हल्द्वानी, तराई पश्चिमी व चंपावत वन प्रभाग। आय के लिहाज से भी हाथी बेहद महत्वपूर्ण हैं। राजाजी और कार्बेट में पर्यटक हाथियों के दीदार को खिंचे आते हैं। साथ ही गजराज की सवारी कर जंगल सफारी का लुत्फ भी उठाते हैं। जिससे वन विभाग को मोटा राजस्व मिलता है। वहीं, बरसात में जंगलों के घने होने के कारण यहां वन विभाग की टीम हाथियों पर बैठकर कांबिंग करती है। जिससे वन्यजीवों के हमले का खतरा कम हो जाता है। *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*