डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
दीपावली का त्योहार हमें खुशियां भले देता है, लेकिन इसका बुरा असर न केवल मनुष्य पर बल्कि पशु-पक्षियों पर भी पड़ रहा है। पटाखे के शोर से पशु-पक्षियों में व्याकुलता बढ़ जाती है। कई बार तो छोटे पशुओं पर आफत टूट पड़ती है। तेज आवाज से जान भी चली जाती है।दीवापली आते ही पटाखों को फोड़ने का दौर शुरू हो जाता है। लोग उत्साह में यह भूल जाते हैं कि इसका नुकसान क्या है। कई बार देखने को मिलता है कि पटाखों के धमाके सुनकर पालतू व बेसहारा पशुओं घबराकर कूद-फांद करने लगते हैं। कुत्ता, बिल्ली, गाय, बैल और बकरी जैसे पालतू जानवर घबरा जाते हैं। पक्षी अपना ठिकाना छोड़कर सुरक्षित व शांत स्थानों की तलाश में उड़ जाते हैं। कई छोटे पक्षी तो तेज आवाज न सह पाने के कारण दम तोड़ देते हैं। पटाखों के धुएं का बुरा प्रभाव पशु-पक्षियों पर पड़ता है और उन्हें सांस लेने में तकलीफ होती है।जगह-जगह लोग बम पटाखे फोड़कर दीपावली का त्योहार मना रहे हैं. लेकिन दीपावली का यह त्योहार कुछ जीवों के लिए जिंदगी और मौत का सबब बन रहा है. पटाखों के धमाकों के शोर गुल पक्षियों पर आफत बनकर टूट रहा है. आलम यह है कि दिवाली के दौरान इन तीन दिनों में पटाखों के धमाकों से पक्षी शहरों और गांव से जैसे गायब ही हो गए हैं. उत्तराखंड के अधिकांश पर्वतीय शहरों की बात की जाए तो सभी शहर जंगलों के आस पास ही बसे हैं. लिहाजा यहां पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां मौजूद हैं.मगर दिवाली के दिनों ऐसे कई पक्षी हैं जो घरों के आस पास नजर तक नहीं आते. कारण है पटाखों का जबर्दस्त शोर. पहाड़ों में आमतौर पर दिखने वाली गौरैया, चीर फ़ीजेंट, ब्राउन उड आउल, स्टेपी इगल, किंग फिशर समेत कई अन्य पक्षी पटाखों के शोर से डरे सहमे और गायब रहते हैं.पर्यावरणविद् बताते हैं कि पटाखों का शोर पक्षियों के लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है. पक्षियों में किसी भी आवाज को सुनने की सबसे अधिक क्षमता होती है. ऐसे में पक्षियों के आवासी इलाकों के आस पास अगर कहीं भी पटाखे की हल्की धमक भी होती है, तो इसकी आवाज सीधे पक्षियों के कानों तक पहुंच जाती है. ऐसे में अगर लगातार बड़े धमाके होते हैं. तो पक्षियों को जबर्दस्त आघात पहुंचता है. उन्हें दिशा भ्रम हो जाता है. काफी देर तक पक्षी भटकते रहते हैं. कई बार आघात लगने से पक्षियों की मौत भी हो जाती है, या फिर पटाखों की आवाज से घोंसले में मौजूद अंडों के भीतर अगर भ्रूण पल रहा है तो उसकी भी मौत हो सकती है. दीपावली का त्योहार मना रहे हैं. लेकिन दीपावली का यह त्योहार कुछ जीवों के लिए जिंदगी और मौत का सबब बन रहा है. पटाखों के धमाकों के शोर गुल पक्षियों पर आफत बनकर टूट रहा है. आलम यह है कि दिवाली के दौरान इन तीन दिनों में पटाखों के धमाकों से पक्षी शहरों और गांव से जैसे गायब ही हो गए हैं. सामान्य अवस्था में 90 डेसीबल से ज्यादा ध्वनि पशु-पक्षियों के लिए बेहद खतरनाक होता है। दीपावली के पर्व पर पटाखों के साथ आतिशबाजी के कारण जानवर सहम जाते हैं। अत्यधिक चिड़चिड़े हो जाते हैं और खाना-पीना छोड़ देते हैं। अनगिनत पटाखों की आवाज से जानवरों पर घातक प्रभाव पड़ता है। पशु-पक्षियों में हृदयगति व तनाव का स्तर बढ़ जाता है। छोटे पक्षियों की मौत हो जाती है। यही नहीं, प्रदूषण के चलते 25-30 फीसद पक्षियों का श्वसन तंत्र भी प्रभावित हो जाता है। दीवापली दीये का पर्व है। इस पर्व पर पर्यावरण को बचाना जरूरी है। धुंआ व तेज आवाज का असर जब इंसान पर होता है तो पशु-पक्षी कैसे बचेंगे। इसलिए हमें पटाखों को नहीं फोड़ने चाहिए। यदि हम पटाखों की जगह दूसरे विकल्प तलाशें तो बेहतर होगा। कई बार देखने को मिलता है कि लोग मजाक में कुत्ता या अन्य जानवरों की पूंछ में पटाखे बांधकर फोड़ देते हैं, यह ठीक नहीं है। इससे जानवर की जान भी जा सकती है। पटाखों से मनुष्य के साथ पशु-पक्षियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। गर्भधारण करने वाले पशुओं का गर्भपात भी हो जाता है। दुधारू पशु भी आवाज के चलते तनावग्रस्त हो जाते हैं, जिससे उनकी दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। रात में पेड़ पर निवास करने वाले पक्षी भी आवाज सुनकर घोंसले से बाहर आ जाते हैं और अन्य दूसरे जानवरों के शिकार हो जाते हैं। पटाखों से निकलने वाली (सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोडाइआक्साइड) जैसी जहरीली गैस पेड़- पौधों को नुकसान पहुंचाती है, जो हमें शुद्ध हवा देते हैं। विशेषज्ञ का कहना है कि जहां पर इन गैसों का प्रभाव ज्यादा है वहां पर कई बार पेड़-पौधे भी सूख जाते हैं या पीले पड़ जाते हैं। खासकर छोटे पौधों के ऊपर काफी असर होता है। ये पौधे तेजी से विकसित नहीं होते हैं। क्योंकि जिन पटाखों का प्रयोग करते हैं उनमें (सल्फर डाइआक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनो डाइऑक्साइड) जैसी जहरीली गैस होती हैं, जिससे बहुत नुकसान होता है। पशु पक्षियों को इन गैस के कारण श्वास रोग होता है तो वो मर भी जाते हैं। पटाखों के हानिकारक प्रभावों को समझना हमारे उत्सवों के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिए महत्वपूर्ण है। हालाँकि दिवाली के दौरान पटाखे फोड़ने की परंपरा बहुत गहरी है, लेकिन स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके प्रभावों पर विचार करना भी ज़रूरी है।एलईडी लाइट और साइलेंट आतिशबाजी जैसे पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को अपनाने से पटाखों के कारण होने वाले प्रदूषण को कम करने और हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर होने वाले हानिकारक प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है। आइए जिम्मेदारी से जश्न मनाएं और सुनिश्चित करें कि हमारे उत्सव हमारी भलाई और ग्रह की कीमत पर न हों। हम सबको का संकल्प लेना चाहिए। लेखक के निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।