डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में अक्सर मॉनसून सीजन के दौरान आपदा जैसे हालात बनते देखे जाते हैं. इस साल भी मानसून ने जाते-जाते धराली आपदा के तौर पर बड़ी आपदा रिकॉर्ड में दर्ज कराई. उत्तरकाशी के धराली में आई 5 अगस्त की भीषण बाढ़ ने धराली बाजार का अस्तित्व मिटा दिया. कई लोगों की गाढ़ी कमाई बह गई, जबकि कई लोग लापता हो गए, जिनकी खोज अभी जारी है. लेकिन सवाल ये खड़ा हो रहा कि ये भयानक आपदा आई कैसे? अब तमाम वैज्ञानिक इस घटना के पीछे के कारणों को जानने के लिए अलग-अलग कारकों पर रिसर्च कर रहे हैं. उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 5 अगस्त 2025 को दोपहर करीब 1:30 बजे एक छोटी-सी नदी खीर गंगा में अचानक आई बाढ़ ने धराली बाजार को बर्बाद कर दिया. भीषण आपदा में कई घर, दुकानें, होटल और इमारतें बह गईं. जबकि कई लोग लापता हो गए. आपदा नियंत्रण कक्ष की मानें तो 66 लोग अभी भी लापता हैं. जबकि कुछ लोगों के शव बरामद किए गए हैं. ऐसे में 30 फीट मलबे के नीचे दबे शवों के कारण मृतकों की संख्या का सटीक आंकड़ा जुटाना मुश्किल हो रहा है. बचाव कार्य तेजी से जारी है. लेकिन मौसम के लगातार बदलाव के कारण स्थिति गंभीर बनी हुई है. उत्तराखंड सरकार ने शुरुआत में इस आपदा को बादल फटने से जोड़ा था. लेकिन विशेषज्ञों ने इस दावे पर सवाल उसके तुरंत बाद उठा दिए थे. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक ने उसी दौरान स्पष्ट कर दिया था कि 3 से 5 अगस्त के बीच उत्तरकाशी में केवल हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गई. धराली गांव में आई आपदा को 6 दिन बीत चुके हैं। सरकारी रेस्क्यू ऑपरेशन में अब तक 1200 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। प्रशासन ने पहली बार बताया कि अभी भी 42 लोग लापता हैं और उनकी तलाश में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा है। प्रशासन की ओर से मिली जानकारी के अनुसार, लापता लोगों में 9 सेना के जवान, 13 स्थानीय, 6 यूपी, 1 टिहरी, 24 नेपाल और 13 बिहार के लोग शामिल हैं। प्रशासन लापता परिजनों से संपर्क करने की कोशिश कर रहा है। वहीं मलबे में दबे लोगों की तलाश के लिए सेना के खोजी कुत्ते और थर्मल इमेजिंग कैमरे लगाए गए हैं।गढ़वाल आयुक्त ने पुष्टि करते हुए कहा कि 5 अगस्त 2025 को धाराली गांव में आए बादल फटने और अचानक बाढ़ की त्रासदी में 42 लोग लापता हैं।लापता लोगों में 9 सैन्यकर्मी, 13 स्थानीय, 6 उत्तर प्रदेश, 1 टिहरी, 24 नेपाल और 13 बिहार के लोग शामिल हैं। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, आईटीबीपी और भारतीय सेना के रेस्क्यू ऑपरेशन जारी हैं, जिसमें अब तक 1200 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है। धराली की घाटी में जम चुके मलबे के कई फीट नीचे दबे हुए लोगों की सही तादाद क्या है, यह किसी को नहीं पता है. ‘गुस्साई प्रकृति’ ने ऐसा क़हर बरपाया. धराली आपदा का आज आठवां दिन है। आपदा प्रभावित क्षेत्रों में फंसे सभी लोगों का सुरक्षित रेस्क्यू का कार्य पूरा होने के बाद अब लापता लोगों की तलाश पर सरकार फोकस है। गढ़वाल मंडल के आयुक्त ने भी आपदा की समीक्षा की और उन्होंने अब झील से पानी की निकासी के साथ ही लापता की खोज तेजी से करने के निर्देश दिए हैं। गढ़वाल मंडल के आयुक्त के अनुसार, 43 लोग लापता हैं और उन्हें जल्द खोजने जाने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं।हर्षिल में बनी झील से पानी की निकासी को लेकर प्रयास तेज किए गए। सोमवार को झील से मलबा हटाते वक्त एक जेसीबी भी झील में समा गई। चालक, परिचालक ने जेसीबी से कूद कर जान बचाई। झील से पानी की निकासी के लिए उत्तराखंड जल विद्युत निगम, सिंचाई विभाग के साथ अन्य विभाग भी लगातार जुटे हुए हैं। जिलाधिकारी ने कहा कि निचले इलाकों को सर्तक किया गया है और जल्द ही झील से पानी की निकासी सुरक्षित तरीके से कर ली जाएगी। गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर गंगनानी में वैली ब्रिज से वाहनों की आवाजाही होने के बाद अब डबरानी में मार्ग पर आवाजाही शुरू करने का कार्य भी आज तेज हुआ है। खतरा केवल ऊपर से ही नहीं, बल्कि सतह के नीचे भी मौजूद है. अधिकारियों का कहना है कि खीरगाड़ से निकलने वाली एक धारा अभी भी बह रही हो सकती है, लेकिन वह लगभग 50 फीट गहरे मलबे में दब गई है। आशंका है कि यह पानी जमीन को अंदर से कमजोर कर रहा है और दलदल जैसी स्थिति बना रहा है, जिससे खुदाई बेहद जोखिम भरी हो गई है. एसडीआरएफ के महानिरीक्षक और नोडल अधिकारी ने कहा, ‘धारा का मुहाना मलबे से पूरी तरह बंद हो गया है, लेकिन पानी नीचे से बह रहा होगा. इससे मिट्टी अस्थिर हो रही है और वहां खुदाई करने पर बड़े हादसे का खतरा है. यह पूरी स्थिति अब भी नाजुक है, और आने वाले दिनों में बारिश अगर तेज हुई, तो बचाव कार्यों की चुनौती और भी बढ़ सकती है। हिमालय का भूविज्ञान और जलवायु उन्हें ऐसे बदलावों के लिए काबिल बनाते हैं. उन्होंने कहा, “हिमालय दुनिया के सबसे युवा पर्वत है. ग्लेशियरों का प्राकृतिक और तापमान वृद्धि के कारण भारी मात्रा में मलबा निकलता है, जो भारी वर्षा के कारण हिमस्खलन और भूस्खलन में बदल सकता है. यह तलछट नदी के मार्ग को खासकर जहां निचली ढलानों या संकरी घाटियों में ढीले जमाव मौजूद हों, उसके स्वरूप को बदल सकता है.” उन्होंने आगाह किया कि जब बुनियादी ढांचे और घर अस्थिर जमीन पर बनाए जाते हैं, तो तटबंध और अवरोधक दीवारें अक्सर “सुरक्षा का झूठा एहसास” देती हैं. उन्होंने कहा, “हिमालय की गतिशील भू-आकृति विज्ञान और वर्षा की बढ़ती तीव्रता को देखते हुए, किसी भी बुनियादी ढांचे को डिजाइन करने और उसकी स्थापना में अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है. अन्यथा, हम लोगों और संपत्तियों को अस्वीकार्य रूप से उच्च जोखिम में डाल रहे हैं.” विकास की दौड़ में हमने पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की चिंता किए बिना प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन किया है। इसका नतीजा जलवायु परिवर्तन के दिनों दिन बढ़ते खतरे के तौर पर हमारे सामने है। मौसम का चक्र अनियमित हो गया है।बरसात के मौसम में बारिश न होना या कम बारिश होना और बिना मौसम के अत्यधिक बारिश या ओलावृष्टि अब आम है। यही नहीं हमने नदियों के क्षेत्र में भी अतिक्रमण करते हुए आलीशान होटल और आवास बना लिए हैं। समय-समय पर इसके खतरनाक नतीजे सामने आते रहे हैं। तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के तौर पर हमें विकास को गति देना होगा, लेकिन पर्यावरण के साथ संतुलन बना कर। इसके बावजूद समाज और सरकारें प्रकृति का संदेश समझने को तैयार नहीं हैं। उत्तराखंड के धराली में आई आपदा इसका एक और उदाहरण है। इस तरह की आपदाओं के लिए हम कितने जिम्मेदार हैं और इनको रोकने के लिए जरूरी उपायों की पड़ताल ही आज का मुद्दा है.. जो हर्षिल-धराली घाटी आज मलबे और मातम की चुप्पी में डूब गई है. एक समय में इसी इलाके में कैमरे और कलाकारों की रौनक हुआ करती थी. आज से ठीक 40 साल पहले बॉलीवुड के एक्टर-डायरेक्टर राज कपूर ने इस वादी की खूबसूरती को बड़े पर्दे पर उतारा था ये पॉपुलर गाना है 1985 में आई फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ का. जिस बेहद खूबसूरत घाटी में ये गाना गूंजा, आज वहां मातम पसरा हुआ है. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*