प्रख्यात भौतिक विज्ञानी व कुमाऊँ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति डॉ. डीडी. पंत के जन्म शताब्दी समारोहों की शृखला में हल्द्वानी के मेडिकल कॉलेज के सभागार में कल रविवार को एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें डॉ. पंत के शिष्यों तथा उनके सह-कर्मियों ने उस महान हस्ती से जुड़े अपने अनुभव और विचार रखे। इनमें से अधिकांश वक्ताओं ने कहा कि डॉ. पंत जैसे व्यक्तित्व कभी-कभार ही पैदा होते हैं। उन्होंने कुमाऊँ विश्वविद्यालय को जिस तरह से अकादमिक क्षेत्र में ऊँचाइयों पर पहुँचाया, वह आज भी एक उपलब्धि है। डॉ. पंत को अपने देश व समाज से बहुत ही प्यार था, इसी कारण उन्होंने अमेरिका में अपना भविष्य तलाशने की बजाय भारत में ही रहना पसन्द किया।
सम्मेलन में शामिल होने से डॉ. डीडी. पंत के एक उच्च कोटि के वैज्ञानिक होने के अलावा उनके जीवन के विविध आयामों के विषय में जानकारी मिली। साहित्य, क्रिकेट, फिल्म, शतरंज आदि के बारे में भी डॉक्टर पंत को गहरी रुचि और समझ थी। मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि महात्मा गांधी के जीवन तथा उनकी विचारधारा का देश के किसी विश्वविद्यालय में अध्ययन करने की शुरुआत डॉ. पंत ने कुमाऊं विश्वविद्यालय का उप-कुलपति रहते हुए की थी। पंत जी के बचपन में देश में चल रहे आजादी के आंदोलन के दौरान गांधी जी के अल्मोड़ा (1929-32) बागेश्वर, नैनीताल, कौसानी आने का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा तो प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. सीवी. रमन के अधीन शोध करने के दौरान उनके भीतर एक वैज्ञानिक के रूप में शिक्षक बनने की इच्छा जागृत हुई।
डॉ. पंत को अपनी माटी से कितना गहरा लगाव था, यह इसी से समझा जा सकता है कि उन्हें 1949 से लेकर बाद तक भी अनेक अवसर अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों से बुलावा आने के बाद भी उन्होंने नैनीताल जैसी बहुत ही छोटी जगह पर रहते हुए संसाधन विहीन इस पर्वतीय क्षेत्र में विज्ञान की लौ जगाने का काम किया। उनके अधीन शोध करने वाली पहली महिला व बंगलुरु से आई डॉ. प्रीति गंगोला जोशी तथा अन्य वक्ताओं ने बताया कि डॉ. डीडी. पंत ने दिल्ली के भगीरथ पैलेस से कबाड़ी से खरीदे गये पुराने उपकरणों को किसी तरह सुधार कर प्रयोगशाला में उनसे काम लेना सिखाया था। उन्हीं उपकरणों के माध्यम से उन्होंने प्रतिदीप्ति (Fluorescence) पर दुनिया में पहली बार शोध किया जिसमें लगने वाले समय की गणना व परीक्षण करने हमें मद्रास जाना पड़ा। उस कार्य को देखकर वहां के वैज्ञानिक आश्चर्यचकित रह गये। प्रतिदीप्ति (Fluorescence) किसी पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण वह अन्य स्रोतों से निकले विकिरण को अवशोषित कर तत्काल ही उत्सर्जित कर देता है।
डॉ. डीडी. पंत के इस शोध से वैज्ञानिक जगत में बड़ी हलचल मची और उसके तीन साल बाद ही तीन वैज्ञानिकों को इस पर नोबल पुरस्कार मिला। ऐसे में यह विचारणीय है कि यदि डॉ. पंत को भारत में ही ऐसी सुविधा मिल जाती या वे स्वयं ही अमेरिका चले जाते तो निश्चित ही उनके गुरु प्रो. सीवी. रमन के बाद यह पुरस्कार हासिल करने वाले डॉ. डीडी. पंत देश के दूसरे वैज्ञानिक होते।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महापौर डॉ. जोगेन्द्र पाल सिंह रौतेला ने कहा कि डॉ. पंत हमारी विशिष्ट पहचान थे। उनका कुमाऊँ विश्वलिद्यालय से जुड़ा रहना ही हमारे लिए गौरव की बात रही है। उन्होंने अपने निर्देशन में अनेक विद्यार्थियों को उच्च कोटि के शोध कार्य करवाए। उनके अनेक विद्यार्थी आज देश के अनेक उच्च कोटि के संस्थानों में वैज्ञानिक हैं और कई देश-विदेश के विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। एक उच्च कोटि का भौतिक विज्ञानी होने के बाद भी उनकी उत्तराखण्ड के विकास को लेकर अपनी एक अलग सोच थी।
प्रो. शेखर पाठक ने उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि डॉ. पंत नैनीताल के डीएसबी कॉलेज में भौतिक विषय के संस्थापक रहे। उन्होंने प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. सीवी. रमन के निर्देशन में भौतिकी में अपना शोध पूरा किया। प्रो. रमन ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें भविष्य का वैज्ञानिक घोषित किया था। बाद में अपनी प्रतिभा के कारण ही उन्हें एक फेलोशिप के लिए अमेरिका जाने का अवसर मिला। वहॉ शोध करने के दौरान उन्हें अमेरिका के अनेक उच्च कोटि के संस्थानों ने अपने यहॉ नौकरी करने का अनुरोध किया। पर डॉ. पंत ने अमेरिका में अच्छी सुविधाओं वाली नौकरी करने की बजाय अपने देश और अपनी मातृभूमि उत्तराखण्ड लौटना स्वीकार किया। अपने इसी प्रण के कारण उन्होंने कुमाऊँ विश्वविद्यालय के सहारे यहां की उच्च शिक्षा को एक नया आयाम दिया।
प्रो. गिरिजा पांडे ने कहा कि डॉ. पंत को समझना और जानना अपने पूरे समाज के समझने और जानने की तरह है। उनके शताब्दी समारोह के बहाने हम पूरे पहाड़ को भी पूरी समग्रता के साथ समझ सकते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. कविता पांडे ने कहा कि भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में उनके द्वारा किए शोध कार्यों को हमेशा याद रखा जाएगा।
सचमुच डॉ. डीडी. पंत स्वयं में एक शिक्षण संस्थान थे। सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए आयोजकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
श्याम सिंह रावत की फेसबुक वाल से साभार