
पूरे यमुना और टौंस घाटी के बंजर पड़े सरकारी अस्पतालों में नहीं है एक भी महिला चिकित्सक व सर्जन। सिर्फ रैफरल सेंटर हैं ये अस्पताल। इस पूरे क्षेत्र में गाइनाकालाजिस्ट भेजने की मांग लंबे समय से की जा रही है। इन दो हाल की घटनाओं से पहले भी प्रसूता जच्चा-बच्चा की मौत होना यहां आम बात है, लेकिन इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया है।
पुरोला की एक बेटी ने देहरादून के लिए जाते हुए रास्ते में, तो दूसरी ने देहरादून जाकर अस्पताल में दम तोड़ा। इन दुखद घटनाओं से पूरा क्षेत्र स्तब्ध है, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व भावना शून्य बना हुआ है। इस तरह की हृदयविदारक घटनाएं भी उन्हें प्रभावित नहीं करती।