दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में स्थापित लोक संग्रहालय कक्ष का आज सुप्रसिद्ध लोक संस्कृतिकर्मी श्री जुगल किशोर पेटशाली ने शुभारम्भ किया। इस अवसर पर उन्हें तिलक लगाकर और शाॅल ओढ़ाकर उनका सम्मान किया गया। लोक संग्रहालय कक्ष के शुभारम्भ के अवसर पर पूर्व मुख्य सचिव ,उत्तराखण्ड, श्री सुरजीत किशोर दास, दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सलाहकार प्रो. बी. के. जोशी, निदेशक श्री एन. रविशंकर,पूर्व मुख्य सचिव ,उत्तराखण्ड, श्री एन. एस. नपलच्याल भी मौजूद थे। ज्ञातव्य है कि लोक संस्कृति के क्षेत्र में पेटशाली जी का उल्लेखनीय योगदान है। अपने निजी प्रयासों से संग्रहित लोक से सम्बन्धित अनेक दुर्लभ सामग्री को उन्होनें दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में स्थापित संग्रहालय को भेंट की हंै। इस संग्रहालय कक्ष को जुगल किशोर पेटशाली संग्रह नाम दिया गया है।
यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि पेटशाली जी ने अपने निजी प्रयासों से वर्ष 2003में चितई, अल्मोड़ा में एक लोक संस्कृति संग्रहालय की स्थापना की थी। स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों की वजह से वे पिछले दो-तीन सालों से अपने संग्रहालय की समुचित देखरेख करने की स्थिति में नहीं थे।इस वजह से उन्होंने संग्रहालय की सामग्री दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र कोे सादर भेंट कर दी। पेटशाली जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के संग्रहालय कक्ष में परिरक्षित यह सामग्री उत्तराखण्ड की संस्कृति व इतिहास पर अध्ययन करने वाले शोधार्थियों व आम नागरिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होगी। पेटशाली ने कहा कि अपने जीवन काल में उन्होनें पहाड़ के लोक से सम्बन्धित सामग्री को एकत्रित करने का बहुत सारा प्रयास किया, गांव-गांव से दुर्लभ वस्तुएं तलाश करने के बाद ही एक अच्छा संग्रह बन पाया। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह कहा कि मैं अब इस बात से बहुत आशान्वित हूं कि इस दुर्लभ व अमूल्य धरोहर को दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र जैसी संस्था समुचित रुप से परिरक्षित कर इसकी उपादेयता को बढ़ाने का सार्थक प्रयास करती रहेगी।
वर्तमान में इस संग्रहालय में पेटशाली जी द्वारा प्रदत्त 40 से अधिक महतवपूर्ण चित्र, 30 के करीब पहाड़ के परम्परागत वाद्य यंत्र, 20 से अधिक प्रकार के परम्परागत बरतन, 100 से अधिक पुरानी पुस्तकें,अखबार,पंचांग और संस्कृत में लिखी पाण्डुलिपियां, ग्रामोफोन, रेडियो, रिकाॅर्ड प्लेयर,कैसेट व कैमरे प्रदर्शित किये गये हैं। इसके अलावा इस संग्रहालय में घरेलू दैनिक उपयोग में काम आने वाली पुरानी सामग्री यथा हुक्का चिलम, ताला, कंघी, शीशा, लैम्प,लालटैन, पैट्रोमैक्स, दरांती, कुल्हाड़ी,रस्सी,सूप व पूजा में प्रयुक्त सामग्री को भी संग्रहित किया गया है। पहाड़ में प्रचलित पुराने काष्ठ विशेष के बरतन दही मथने प्रयुक्त डकौव, ठेकी, हड़पी, चैथेई, फरुवा, आनाज मापने में प्रयुक्त काष्ठ बरतन माणा, पाथा जैसे विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी सामग्री को भी इस संग्रहालय में रखा गया है।
इस संग्रहालय में पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखण्ड, श्री सुरजीत किशोर दास के व्यक्तिगत संग्रह से प्राप्त मुगल व मध्यकाल के अनेक दुर्लभ व पुराने सिक्कों और विश्व के 144 से अधिक देशों द्वारा महात्मा गांधी के सम्मान में जारी डाक टिकटों के बहुमूल्य संग्रह को भी आम लोगों के लिए रखा गया है। इतिहास व पुरातत्व के अध्येता डाॅ. प्रह्लाद सिंह रावत के सौज्न्य से प्राप्त पुरोला क्षेत्र में पाये गये अनेक मृदभाण्ड, प्रस्तरों के टुकड़ों को भी यहां पर रखा गया है।
संग्रहालय के बाहर दर्शक दीर्घा में बंगाल के प्रसिद्ध चित्रकार रथिन मित्रा के बनाए रेखांकन, विविध समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित गांधीं जी पर आधारित कार्टून्स भी प्रदर्शित किये गये हैं। इतिहासकार डाॅ. योगेश धस्माना के संग्रह से प्राप्त स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन और उत्तराखण्ड आदोंलन को उस समय के समाचार पत्रों ने किस तरह देखा उस पर आधारित अनेक दुर्लभ व जानकारी परक चित्र भी आम लोगों के लिए प्रदर्शित किये गये हैं।
दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के संग्रहालय कक्ष के शुभारम्भ पर इस सादे समारोह में प्रोफे. बी. के. जोशी ने जुगल किशोर पेटशाली का स्वागत किया। सुरजीत किशोर दास, श्री एन. रविशंकर,और श्री एन. एस. नपलच्याल ने पेटशाली जीे के व्यक्तित्व और लोक संस्कृति के क्षेत्र में उनके योगदान पर अपने विचार प्रकट किये। जुगल किशोर पेटशाली के परिचय की जानकारी दून पुस्तकालय के चन्द्रशेखर तिवारी ने दी और कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश धस्माना ने किया। इस अवसर पर लता कुंजवाल, मुकेश नौटियाल, संस्कृति कर्मी नवीन बिष्ट, डाॅ. नंदकिशोर हटवाल, सुन्दर सिंह बिष्ट, ज्योतिष घिल्डियाल, डॉ.अतुल शर्मा, जगदीश सिह महर, बिजू नेगी सहित दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में कार्यरत लोग और साहित्य व संस्कृति प्रेमी उपस्थित रहे।
पेटशाली जी – मेरे द्वारा संग्रहित सामग्री को एक उपयुक्त जगह मिलने से इसका लाभ अध्यताओं, शोधार्थियों व आम लोगों को मिल सकेगा। दून पुस्तकालय ने इन्हें संरक्षित कर मेरी चिंता कि पहाड़ की इस लोक धरोहर का संरक्षण कैसे होगा दूर कर दी है।
प्रो.बी के जोशी – हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि इस संग्रहालय के माध्यम से पहाड़ की अन्य धरोहर को भी सामने लाने का यत्न करेंगे।
श्री एन एस नपलच्याल और श्री इंदुकुमार पांडे पूर्व मुख्य सचिव – पेटशाली जी का लोक संस्कृति के संरक्षण व लेखन में बड़ा योगदान रहा है। एक समर्पित भाव से उनकी लोक के प्रति गहन भावना हमे प्रेरणा देती है।
श्री एन रवि शंकर , निदेशक – पेटशाली जी के इस योगदान के प्रति दून लाइब्रेरी की ओर से आभार। हम आशा करते हैं कि पुस्तकें के अलावा इस पाठक गण व शोधकर्ता इस संग्रहालय से लाभ उठाएंगे।