डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
1933 में अंतर्राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ ने स्विट्जरलैंड में जिनेवा में पहली बार विश्व कैंसर दिवस मनाया। यह दिवस कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने, लोगों को शिक्षित करने, इस रोग के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दुनिया भर में सरकारों और व्यक्तियों को समझाने तथा हर साल लाखों लोगों को मरने से बचाने के लिए मनाया जाता है। 2014 में इसे विश्व कैंसर घोषणा के लक्ष्य 5 पर केंद्रित किया गया है, जो कैंसर के कलंक को कम और मिथकों को दूर करने से संबंधित है। आज जिस तरह अनियमित व निष्क्रिय जीवन शैली हो चुकी है और भोजन मिलावटी, उससे तमाम बीमारियों के साथ कैंसर भी तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है।
पद्मश्री डॉण् मोहन चंद्र पंत जन्म तिथि 31 अक्तूबर, 1956 पुण्यतिथि 13 अगस्त 2015 जन्म स्थान. ग्राम कुणकोली, रानीखेत, उत्तराखंड विवाहित माता. स्वण् लीला पंत पिता. स्वण् पंडित प्रयाग दत्त पंत लखनऊ। पद्मश्री डॉक्टर मोहन चंद्र पंत वह नाम है, जिसने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में न सिर्फ कैंसर के इलाज की इबारत लिखी। बल्कि लोगों को इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरूक किया। कैंसर मरीजों के इलाज के साथ ही जागरूकता फैलाने पर हमेशा उनका पूरा जोर रहता था। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कैंसर के आधुनिक इलाज की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में उन्होंने हर संभव प्रयास किया। यही वजह रही कि इन दोनों प्रदेशों में कैंसर की पहली मशीन से लेकर लखनऊ में आधुनिक चक गंजरिया स्थित कैंसर संस्थान की परिकल्पना तैयार करने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही।
उन्होंने विभिन्न प्रकार के कैंसर पर दर्जन भर से अधिक किताबें भी लिखीं। राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल, डॉण् एपीजे अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री इन्दिरागांधी, अटल बिहारी बाजपेयी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, 22 वर्ष पर आ गए थे लखनऊ डॉण् एमसी पंत जब 22 वर्ष के थे, तब वह रानीखेत से लखनऊ आए थे। शुरुआती शिक्षा से लेकर बीएससी उन्होंने अल्मोड़ा से की। यहां पर गणेशगंज के श्री मालवीय के घर पर वह किराए पर रहते थे। बहुत ही साधारण स्वभाव के डॉण् पंत जुझारू थे। वर्ष 1974 के करीब पढ़ाई के लिए दिन में उन्होंने मजदूरी तक की। मेडिकल स्टोर पर काम किया। सर्दी के दिन में पानी में पैर डालकर और गर्मी में कंबल ओढ़कर पढ़ाई इसलिए करते थे कि नींद न आए। 1975 में केजीएमयू लिया दाखिला केजीएमयू में डॉण् पंत ने वर्ष 1975 में एमबीबीएस में दाखिला लिया था। उसके बाद वहीं से एमडी और सीनियर रेजीडेंट शिप की। फिर वहीं रेडियोथेरेपी विभाग में डॉक्टर बन गए। गोमती नगर के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के 13 सितंबर 2010 से 13 सितंबर 2013 तक निदेशक रहे। वर्ष 2014-15 में वह भारत के विकिरण कैंसर चिकित्सा विज्ञानियों की रेडियोथेरेपी एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया।
वह वर्ष 2013 दिसंबर से 2015 तक उत्तराखंड के हेमवंती नंदन बहुगुणा मेडिकल विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। विदेशों में तमाम शोधपत्र प्रस्तुत किए। कैंसर के मरीजों को खुद रुपए दे देते थे। डॉण् बीसी रॉय से लेकर पद्मश्री तक डॉण् पंत को वर्ष 2005 में राष्ट्रपति द्वारा मेडिकल क्षेत्र का सबसे सर्वश्रेष्ठ डॉण् बीसी रॉय अवार्ड प्रदान किया गया। वर्ष 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, वर्ष 1996 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, वर्ष 2006 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने डॉण् पंत को कैंसर क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया।
वर्ष 2008 में भारत सरकार ने कैंसर क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा। पूरे हॉल में स्मृति चिन्ह व फोटो कैंसर के क्षेत्र में अमूल्य योगदान देने वाले डॉण् पंत के जियामऊ स्थित आवास में बड़े से हॉल में स्मृति चिन्ह व पुरस्कार पाते तमाम फोटो लगे हैं । डॉण् पंत के नाम से बने संस्थान कैंसर में योगदान के लिए डॉण् एमसी पंत हमेशा जाने जाएंगे। प्रदेश में कैंसर की पहली मशीन से लेकर चकगंजरिया स्थित कैंसर इंस्टीट्यूट की परिकल्पना में उन्होंने अमूल्य योगदान दिया। लखनऊ के जियामऊ में लखनऊ कैंसर इंस्टीट्यूट, उत्तराखंड के डॉण् सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज, डॉण् स्वामी राम इंस्टीट्यूट में कैंसर संस्थान डॉण् पंत की वजह से ही खुला। सरकार को चाहिए कि डॉण् एमसी पंत के नाम से प्रदेश में कोई कैंसर संस्थान खोला जाए, जिससे उनके योगदान को लोग याद रखें। निर्मला पंत पत्नी, निदेशक, एलसीआई कैंसर जागरुकता के लिए पूरा जीवन पिता डॉण् पंत ने अपना पूरा जीवन कैंसर के मरीजों के इलाज के साथ ही जागरुकता में लगा दिया। खुद की स्थापित की गई संस्था हील फाउंडेशन के तहत उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों से लेकर उत्तराखंड के 156 से ज्यादा कॉलेज के शिक्षकों को ट्रेनिंग दी।
उत्तराखंड में कैंसर डिटेक्शन यूनिट खोलीं कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे कैंसर उपचार के क्षेत्र में कई शोध और अनुसंधान कर चुके डॉण् पंत की कर्मस्थली भले लखनऊ रही है, लेकिन राज्य गठन से पूर्व भी उन्होंने कुमाऊं गढ़वाल में कैंसर उपचार सेवाओं और सुविधाओं की नींव रखने में अहम योगदान दिया।