• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

गाढ़-गधेरों, नौलों और हैंडपंपों में लग रही पानी के लिए लाइन

27/04/21
in उत्तराखंड
Reading Time: 1min read
70
SHARES
88
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
पृथ्वी पर जल के असीम भंडार हैं, जो समुद्र, नदी, झील, तालाब, कुएं, नौले-धारे सहित अन्य प्राकृतिक स्रोतों के रूप में मौजूद हैं। जल का सबसे बड़ा भंडार समुद्र है, लेकिन खारा पानी होने के कारण ये पीने योग्य नहीं है। समुद्र को पानी नदियों के माध्यम से मिलता है। तो वहीं नदियों, तालाबों और झीलों को पानी उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा माध्यम विभिन्न प्राकृतिक जलस्रोत ही हैं। जलस्रोत पृथ्वी की ऐसे छोटी रक्तवाहिनियां हैं, जिनका उद्गम किसी न किसी रूप में हिमालय व पहाड़ों से होता है और ये पर्वतों के अंदर से छोटी.छोटी धाराओं के रूप में रिसते हुए बहती हैं। बारिश भी इन धाराओं के कैचमेंट एरिया को जल उपलब्ध कराने में अहम भूमिका अदा करती हैं। पानी के यही सब स्रोत भूजल को रिचार्ज करने का काम करते हैं और इस जल से इंसान सहित विभिन्न जीव.जंतु अपनी पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।

एक तरह से जल ही जीवन है, लेकिन वर्तमान में जिस तरह के हालात बने हैं, उससे इंसान और अन्य जीवों को जीवन देने वाले जल मीठे जल स्रोत का जीवन धीरे.धीरे धरती से समाप्त होता जा रहा है। धरती पर जल का अस्तित्व ग्लेशियरों पर ही टिका है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघलकर लगातार पीछे खिसकते जा रहे हैं। इससे नदियों, तालाबों, झीलों और विभिन्न प्राकृतिक जलस्रोतों पर संकट गहराने लगा है। लोहाघाट ब्लॉक के किमतोली.खालगढ़ क्षेत्र के पेयजल संकट से जूझ रहे लोगों को उम्मीद की किरण नजर आई है। इस क्षेत्र की पेयजल योजना के लिए एक स्रोत निरीक्षण में शुरुआती तौर पर उपयुक्त पाया गया।

गुमदेश क्षेत्र के किमतोली.खालगढ़ इलाके में अभी कोई सरकारी पेयजल योजना नहीं है। पानी के लिए गांव के एक हजार से अधिक लोग चंद हैंडपंपों के अलावा नौलों और धारों पर आश्रित रहते हैं। ग्रामीणों की मांग पर क्षेत्र के लिए जल जीवन मिशन के तहत पेयजल योजना के निर्माण के लिए स्रोत का मुआयना किया गया। जल स्रोतों में भारी कमी आने के कारण नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट गहरा गया है। लोग गाढ़ गधेरों, नौंलों, हैंड पंपों के पानी से अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हो गए हैं। सुबह से ही लोग गाढ़.गधेरों, नौलों और हैंडपंपों में पानी के लिए लाइन लगाने को विवश हो गए हैं। जिला मुख्यालय के विभिन्न वार्डो में जल संस्थान की ओर से दो टैंकरों और पांच पिकअप वाहनों के जरिए पानी उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन यह पानी नाकाफी साबित हो रहा है। लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी जल संस्थान से टेंकरों के जरिए पानी बंटवाने की मांग उठाई है।

लोहाघाट नगर में तीसरे या चौथे दिन बहुत कम मात्रा में लोगों पानी मिल पा रहा है। लोग नर्सरी गधेरे, अक्कल धारे, शिवालय मंदिर के स्टेंड पोस्ट, हैंड पंपों से पानी भरने को मजबूर हैं। रामलीला मैदान के पास नगर पंचायत की ओर से लगाए गए सोलर हैंडपंप से पानी भरने वालों की भारी भीड़ उमड़ रही है। इधर गुमदेश के चमदेवल क्षेत्र में भी गंभीर पेयजल संकट गहराया हुआ है। क्षेत्र में चैतोला मेला होने के चलते काफी लोग बाहरी क्षेत्रों से गांव में पहुंचे हुए हैं। पेयजल समस्या से लोगों को जूझना पड़ रहा है। लोग दो से तीन किमी दूर गधेरों से पानी ढोने को मजबूर हैं। रायनगर चौड़ी, कलीगांव, खूना बोरा, फोर्ती आदि गांवों में लोग पेयजल के लिए दर.दर भटक रहे हैं। लोगों ने जल संस्थान से टैंकरों से पेयजल आपूर्ति करने की मांग की इधर जल संस्थान के सहायक अभियंता का कहना है कि लंबे समय से बारिश न होने से पेयजल स्रोतों का जल स्तर 50 फीसदी से भी अधिक कम हो गया है। पहाड़ के लोगों के तमाम दर्द हैं, लेकिन जल संकट का दर्द पहाड़ की समस्या बनता जा रहा है। राज्य के 12 लाख 45 हजार 472 घरों में पानी का नल नहीं है। ये लोग पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न जलस्रोतों पर निर्भर हैं।

पर्वतीय इलाकों में जिन घरों में पानी के नल हैं, उनके घरों तक पानी नदियों, झील और प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित पेयजल योजनाओं के माध्यम से आता है, लेकिन अधिकांश प्राकृतिक जलस्रोत सूख चुके हैं, जो बचे हैं उनमें से अधिकांश प्रदूषित हैं। कई नदियां सूखने की कगार पर हैं। झीलों के जलस्तर में भी गिरावट आई है। ऐसे में पहाड़ के कई इलाकों को पानी के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। इसलिए जल जीवन मिशन के तहत हर घर को नल से जल देने की योजना है, लेकिन पहाड़ में घटते और प्रदूषित होते जल के बीच इस योजना की राह आसान नहीं होगी। प्रदेश में जो बाकी स्प्रिंग्स बचे हैं, उन पर भी खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि पहाड़ अब शहर बनते जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर यहां की भौगोलिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर निर्माण कार्य किया जा रहा है। जिससे पहाड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है। इन निर्माण कार्यो के लिए वहां की भौगोलिक स्थिति और जैव.विविधता को बनाए रखने वाले पेड़ों को काट दिया जाता है। जो न केवल वहां के पर्यावरण में बदलाव लाता है, बल्कि जल की उपलब्धता भी कम होने लगती है। स्रोत सूखने लगते हैं।

इसका जीता जागता उदाहरण देहरादून में रिस्पना और बिंदाल नदी है। इन दोनों नदियों को पानी देने वाले स्रोत सूखे चुके हैं। नदियों के किनारे अतिक्रमण कर पक्के निर्माण किए जा चुके हैं। यही सब गंगा और यमुना नदी के साथ हो रहा है। बरसाती नदियों पर भी अतिक्रमण किया गया है। हर साल बारिश कम होने से बरसाती नदियों में भी पानी की मात्रा घट गई है। दरअसल, पानी के स्रोत सूखने या उनमें पानी कम होने से पर्वतीय इलाकों लोग तो प्रभावित होते ही हैं, साथ नदियों में पानी कम होने से मैदानों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। जितना विशाल पहाड़ है, उतना ही विशाल यहां रहने वाले पहाड़ियों पर्वतीय लोग का हौंसला होता है। वे जीवन की हर परेशानियों के आगे चट्टान की तरह खड़े हो जाते हैं, लेकिन हार कभी नहीं मानते। उनकी इसी जीवटता के कारण उत्तराखंड के पहाड़ियों का गौरवशाली इतिहास रहा है। सैंकड़ों गौरव गाथाएं यहां प्रसिद्ध हैं।

सैंकड़ों बड़े आंदोलनों की नींव भी उत्तराखंड की धरती पर ही पड़ी है, जिनमें चिपको आंदोलन और उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन अहम हैं। इन आंदोलनों में अग्रिम पंक्ति में महिलाएं ही थीं। एक तरह से जब भी पहाड़ पर कोई विपदा आती है या यहां के लोगों के अधिकारों का हनन होता है, तो पर्वतीय नारी हमेशा सबसे आगे खड़ी मिलती हैं। पहाड़ की महिलाओं ने पहाड़ के दर्द को हमेशा अपने दर्द से ऊपर रखा है और पहाड़ की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रही हैं, लेकिन इसी जीवट पहाड़ के लिए परेशानी बन रहा है, जल संकट। यदि समय रहते समाज में इनके प्रति सही सोच पैदा नहीं हुई तो नौला भी अतीत का हिस्सा बन जाएँगे।

Share28SendTweet18
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

चमोली जिले में मंगलवार को 111 संक्रमण

Next Post

कर्फ्यू के दौरान कोटद्वार शहर में उमड़ी भीड़, आयुक्त ने व्यापारियों को दिए सख्त निर्देश

Related Posts

उत्तराखंड

मुख्यमंत्री धामी का आईएसबीटी देहरादून में औचक निरीक्षण, गंदगी देखकर खुद उठाई झाड़ू

November 18, 2025
6
उत्तराखंड

केदारनाथ धाम में श्रद्धालु छोड़ गए सैकड़ों टन कूड़ा

November 18, 2025
6
उत्तराखंड

डोईवाला: सिंचाई नहर बंद होने से गन्ने की कई बीघा फसल सुखी, किसानों ने दी आत्मघाती कदम उठाने की चेतावनी

November 17, 2025
8
उत्तराखंड

कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान एस. रावत को इंडियन केमिकल सोसाइटी वर्ष 2025 का “आचार्य पी. सी. राय मेमोरियल लेक्चर अवॉर्ड”

November 17, 2025
5
उत्तराखंड

जियो थर्मल पॉलिसी बनाने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य: डॉ आर मीनाक्षी सुंदरम

November 17, 2025
9
उत्तराखंड

उत्तराखंड पहाड़ों के लिए अब आर्थिक और राजनीतिक संकट

November 17, 2025
6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67506 shares
    Share 27002 Tweet 16877
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45757 shares
    Share 18303 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38034 shares
    Share 15214 Tweet 9509
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37426 shares
    Share 14970 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37305 shares
    Share 14922 Tweet 9326

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

मुख्यमंत्री धामी का आईएसबीटी देहरादून में औचक निरीक्षण, गंदगी देखकर खुद उठाई झाड़ू

November 18, 2025

केदारनाथ धाम में श्रद्धालु छोड़ गए सैकड़ों टन कूड़ा

November 18, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.