
कुलदीप चाौहान
चकराता। पहाड़ों की शिक्षा दिन प्रतिदिन बदहाल होती जा रही है। जिम्मेदार बेखबर बने हुए हैं। आखिर जवाबदेही लेने वाला कोई नहीं है। पहाड़ों की शिक्षा की यदि बात करें तो आज पलायन का मुख्य कारण बन चुकी है, क्योंकि सभी अपने बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं, जो की पहाड़ पर नहीं मिल पा रही है।
पहाड़ों पर चरमराई शिक्षा व्यवस्था को लेकर ज्यादातर शिक्षकों को कोसा जाता है, परन्तु सच्चाई कुछ और ही है। दुर्गम इलाकों में शिक्षा दे रहे शिक्षक शिक्षिकाओं को 10 से 15 साल हो गए हैं, परन्तु न ही उनकी सुध लेने के लिए न कोई सरकार का नुमाइंदा जाता है न ही वहां कोई जिम्मेदार अधिकारी छात्रों की सुध लेने जाता है।
पहाड़ों के ज्यादातर स्कूलों में 1 ही अध्यापक कार्यरत हैं, आखिर वह क्या करेगा? पढ़ाएगा या सरकार द्वारा थोपे गए कामों को करेगा? क्योंकि शिक्षक शिक्षिकाओं के ऊपर शिक्षा से तालुक न रखने वाले अनेक प्रकार के सरकारी काम थोपे गए हैं, जिससे पढ़ाई में अड़चनें आ रही है, जिसके कारण शिक्षक शिक्षिकाएं चाह कर भी छात्रों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं।
कुछ तस्वीरें लुधेरा गांव की हैं, जब नवक्रान्ति के कार्यकर्ता वहां पहुंचे तो देखा कि शिक्षिका 10 वर्ष से सेवा दे रही हैं और कुछ समय पहले स्कूल में 30-35 बच्चों की संख्या हुआ करती थी परन्तु आज मात्र 4 बच्चे रह गए हैं। स्कूल की ओपनिंग 2008 में हुई थी, शिक्षिका लगातार गुहार लगा रही है, कई उच्च अधिकारियों को लेटर थमा चुकी है कि स्कूल बंद होने की कगार पर पहुंच चुका है यदि आप एक और शिक्षक की व्यवस्था जल्द नहीं करते तो आने वाले समय में स्कूल बंद हो जाएगा। अध्यापिका नीलू आर्या से वार्तालाप करने के बाद अध्यापिका ने बताया कि यहां कोई सुध लेने के लिए न कोई अधिकारी आता है न ही कोई और, राम भरोसे स्कूल चल रहा है। नवक्रान्ति जल्द ही इस स्कूल का संज्ञान लेगी, ताकि बच्चों का भविष्य संवारा जा सके।