डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दुनिया में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा, ई.कचरा पैदा करने वाले शीर्ष पांच देशों में भारत का नाम भी शुमार है। इसके अलावा इस सूची में चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी हैं। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। पांच जून को पर्यावरण दिवस से एक दिन पहले सोमवार को प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम और एनईसी नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ई.कचरे में सर्वाधिक योगदान महाराष्ट्र 19.8 प्रतिशत का है। वह सिर्फ 47,810 टन कचरे को सालाना रिसाइकिल कर दोबारा प्रयोग के लायक बनाता है। ई.कचरे में तमिलनाडु का योगदान 13 प्रतिशत है और वह 52,427 टन कचरे को रिसाइकिल करता है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश 10.1 प्रतिशत, 86.130 टन कचरा रिसाइकिल करता है। देश के ई.कचरे में पश्चिम बंगाल का 9.8 प्रतिशत, दिल्ली 9.5 प्रतिशत, कर्नाटक 8.9 प्रतिशत, गुजरात 8.8 प्रतिशत और मध्य प्रदेश 7.6 प्रतिशत योगदान है। अध्ययन के मुताबिक, ई.कचरे की वैश्विक मात्रा 2016 में 4.47 करोड़ टन से बढ़कर 2021 तक 5.52 करोड़ टन तक पहुंचने की संभावना है। 2016 में पैदा हुए कुल ई.कचरे का सिर्फ 20 प्रतिशत, 89 लाख टन, ही पूर्ण रूप से एकत्र और रिसाइकिल किया गया है, जबकि शेष ई.कचरे का कोई रिकॉर्ड नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया की ख़बर के अनुसार, भारत में करीब 20 लाख टन सालाना ई.कचरा पैदा होता है और कुल 4,38,085 टन कचरा सालाना रिसाइकिल किया जाता है। ई.कचरे में आम तौर पर फेंके हुए कंप्यूटर मॉनीटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब सीआरटी, प्रिंटेड सर्किट बोर्ड पीसीबी, मोबाइल फोन और चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन के साथ एलसीडी लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले या प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर शामिल हैं।
अध्ययन में कहा गया है, असुरक्षित ई.कचरे को रिसाइकिल के दौरान उत्सर्जित रसायनों प्रदूषकों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे और मस्तिष्क, श्वसन संबंधी विकार, त्वचा विकार, गले में सूजन, फेफड़ों का कैंसर, दिल, यकृत को नुकसान पहुंचता है। अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया भर में उत्पन्न ई.कचरे की मात्रा 3.15ः की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिसके कारण साल 2018 का अनुमान 47.55 मीट्रिक टन लगाया जा रहा है। ई.कचरे में मौजूद सभी कच्चे माल का 2016 में कुल मूल्य लगभग 61.05 अरब डॉलर है, जो दुनिया के अधिकांश देशों के जीडीपी से अधिक है। इसी ख़बर के अनुसार, कर्नाटक जैसे राज्यों में 57 इकाइयां हैं जिनकी प्रसंस्करण क्षमता लगभग 44,620 टन है, वहीं महाराष्ट्र में 32 इकाइयां हैं जो 47,810 टन ई.कचरा प्रसंस्करित कर सकती हैं। उत्तर प्रदेश में 86,130 टन को प्रसंस्करण करने के लिए 22 इकाइयां हैं और हरियाणा में 49,981 टन के लिए 16 इकाइयां हैं। तमिलनाडु में 52,427 मीट्रिक टन प्रति वर्ष प्रसंस्करण करने के लिए 14 इकाइयां हैं। गुजरात में 12 इकाइयां है जिनकी प्रसंस्करित करने की क्षमता 37,262 हैं जबकि राजस्थान में 10 इकाइयां जो 68,670 मीट्रिक टन प्रति वर्ष को प्रसंस्करित कर सकती हैं। वहीं तेलंगाना में 11,800 मीट्रिक टन के ई.कचरा प्रसंस्करित करने के लिए 4 इकाइयां हैं। दुखद बात यह है कि भारत के कुल ई.कचरे का केवल 5ः ही, खराब बुनियादी ढांचे और कानून के चलते रिसाइकिल हो पता है जिसका सीधा प्रभाव पर्यावरण में अपरिवर्तनीय क्षति और उद्योग में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता हैण् ई.कचरे का 95ः असंगठित क्षेत्र और इस बाजार में स्क्रैप डीलरों द्वारा प्रबंधित किया जाता है जो इसे रिसाइकिल करने के बजाय उत्पादों को तोड़ कर फेंक देते हैंण् भारत में वर्तमान समय में ई.कचरे की उत्पादन होने की क्षमता प्रसंस्करित करने की क्षमता से 4ण्56 गुना अधिक हैण् अधिक जनसंख्या भी बढ़ते हुए ई.कचरे का कारण हैण् इस अध्ययन में कहा गयाए जैसे.जैसे भारत के लोग अमीर बन जाते हैं और अधिक इलेक्ट्रॉनिक सामान और उपकरण खर्च करते हैंण् कुल ई.कचरा सामग्री में कंप्यूटर उपकरण लगभग 70ःए दूरसंचार उपकरण 12ःए विद्युत उपकरण 8ःए चिकित्सा उपकरण 7ः और बाकी घरेलू समान का योगदान 4ः हैं। नेपाल के रास्ते चीनी इलेक्ट्रानिक्स सामानों की आयात जिले में हो रही है। चाइनिज इलेक्ट्रानिक्स सामान सस्ता है और जल्द खराब भी हो जाते हैं। ऐसे कचरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए भारत में चौदह साल पहले बने कचरा प्रबंधन और निगरानी कानून 1989 को धता बताकर औद्योगिक घरानों नें इसका आयात जारी रखा है।
घरों एवं शहर के प्रतिष्ठानों से प्रतिदिन निकलने वाला ई.कचरा का अनुमान लगाना मुश्किल है। कारण यहां न तो ई.कचरे का प्रबंधन की व्यवस्था है और न ही इस दिशा में सरकारी कोई पहल नहीं की जा रही है। घरों एवं विभिन्न प्रतिष्ठानों से निकलने वाला ई.कचरा ठेला वेंडरों के हाथ कबाड़ के भाव बेचा जाता है। ठेला वेंडर घरों व प्रतिष्ठानों से एकत्रित किए गए ई.कचरा को कबाड़ीवालों के हाथ बेचा जाता है। कई घरों से इस तरह के बेकार उत्पाद को फेंक दिया जाता है।
इस कचरे में लेड, मरक्युरी, केडमियम जैसे घातक तत्व भी होते हैं। दरअसल ई.कचरे का निस्तारण आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें प्लास्टिक और कई तरह की धातुओं से लेकर अन्य पदार्थ रहते हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है। इसे जलाने से जहरीला धुंआ निकलता है जो काफी घातक होता है। विकासशील देश इनका इस्तेमाल तेजाब में डुबोकर या फिर उन्हें जलाकर उनमें से सोना.चांदीए प्लैटिनम और दूसरी धातुएं निकालने के लिए करते हैं। भारत में सूचना प्रोद्योगिकी का क्षेत्र बंगलौर है। जरूरत है भारी मात्रा में निकलने वाले ई.वेस्ट के सही निस्तारण की। जब तक उसका व्यवस्थित ट्रीटमेंट नहीं किया जाताए वह पानी और हवा में जहर फैलाता रहेगा। निकलने वाला ई.वेस्ट कबाड़ी ही खरीद रहे हैं। इनके पास इस तरह के कचरे को खरीदने की न अनुमति है और न ही वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण की व्यवस्था। एक कम्प्यूटर में प्रायरू 3.8 पौंड सीसा, फासफोरस, केडमियम व मरकरी जैसे घातक तत्व होते हैं, जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। इनका अवशेष पर्यावरण के विनाश का कारण बनता है । ई .कचरे के दुष्परिणाम से कोई भी अंजान नहीं है लेकिन अब तक इसे रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किया गया है।
अगर सरकार तेजी से बढ़ रही इस समस्या का निदान जल्द से जल्द नहीं निकालेंगी तो प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ का परिणाम हम सबको उठाना पड़ सकता है। जरुरत है सख्त कानून बनाने और उतनी ही सख्ती से पालन कराने की। ताकि ई . कचरे की अवैध रिसाइ क्लग पर पूर्णविराम लग सके प्रौद्योगिकी केवल हमारे जीवन को आसान बनाने का उपकरम है और इसी बिन्दु तक यह हमारे लिए वास्तव में उपयोगी हैए लेकिन अगर हम अपने ग्रह का दोहन बंद नहीं करते हैंए तो कोई भी प्रौद्योगिकी हमें कयामत से नहीं बचा सकेगी। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम प्रौद्योगिकी का विकास और उपयोग इस स्थायित्वपूर्ण तरीके से करें कि इससे हमारी आने वाली पीढ़ियों को नुकसान न हो। स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को खतरा, ई.कचरा के सुरक्षित निपटान और उसकी रीसाइक्लिंग के लिए प्रणालियां विकसित करने की जरूरत है।