कोटद्वार। उत्तराखंड प्रदेश का अधिकतर भू भाग पर्वतीय है। जो अपने आप में नैसर्गिक खूबसूरत पर्यटन स्थल पहाड़ियां, घाटियां, बुग्याल, पेड़ पौधें व छोटे छोटे मैदान शैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। जो यहां के लोगों की आमदानी के स्रोत भी हैं। परन्तु मानव की भोगवादी प्रवत्ति के कारण लगातार इनका का दोहन किया जा रहा है। अगर समय रहते इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम होंगे।
बदलते वातावरण के संबंध में पर्यावरणविद् वृक्षमित्र डॉ. त्रिलोक चंद्र सोनी ने बताया कि पर्यावरण को असंतुलन शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों के द्वारा किया जा रहा है। जहां ग्रामीण व पर्वतीय क्षेत्रों में गर्मी शुरू होते ही लोग जंगलों में आग लगा देते हैं। जिससे कई पेड़ पौधें दावानल की भेंट चढ़ जाते हैं, कई जंगली जानवर व उनके बच्चे जलकर राख में तब्दील हो जाते हैं तथा पक्षियों के घोंसलेए अंडे व बच्चे जल जाते हैं। जिससे उनकी पीढ़ियां समाप्त हो रही है। शहरों में पेड़.पौधों को काटकर बड़ी.बड़ी इमारतें खड़ी कर कंकरीट के जंगल बना रहे हैं जिसका सीधा प्रभाव हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है।
वृक्षमित्र डॉ.सोनी का कहना है कि आग के कारण पर्यावरण दूषित हो रहा हैं, पानी के जलस्रोत सूख रहे हैं, प्राकृतिक वनस्पतियां नष्ट हो रही हैं, जिसका सीधा असर जलवायु पर पड़ रहा है। इसी कारण बेमौसम बारिश हो रही है। बादल फटने की घटनाओं का जन्म हो रहा है। जिसका सीधा असर मानव व प्राणी जीवन तथा कृषि पर पड़ रहा है। अगर मनुष्य को अपना खुशहाल जीवन चाहिए तो जंगलों में आग लगाना बंद करे, शहरों में आबादी को बसाने से पहले वहां के पर्यावरण पर ध्यान दें मेरा पेड़.मेरा दोस्त ;मेरा वृक्ष.मेरा मित्र के तहत सघन पौधारोपण करें तभी ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से छुटकारा मिलेगा और संतुलित पर्यावरण भी बनेगा।












