समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने दी नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती
देहरादून। जिस तरह उत्तराखंड में फर्जी डिग्रियों से शिक्षक नियुक्त हो जाते हैं, ऐसे ही आबकारी विभाग में भी फर्जी नियुक्तियों का एक मामला सामने आया है। संयुक्त उत्तर प्रदेश के दौरान 1995-96 में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार द्वारा उर्दू अनुवादकों की भर्ती की गई। यह भर्ती बिना सृजित पदो ंके विपरीत सिर्फ एक साल के लिए अनुकम्पा के आधार पर की गई थी। इनमें से दो लोग सुजआत हुसैन और राहिबा इकबाल पिछले 24 सालों से उत्तराखं डमें आबकारी विभाग में कार्य कर रहे हैं। इतना ही नहीं उर्दू अनुवादक/जूनियर क्लर्क के पद पर एक साल के लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्त हुए उक्त लोग उत्तराखंड में कब आबकारी इंस्पेक्टर बन गए यह किसी को पता ही नहीं है। इस नियुक्ति पर आबकारी विभाग से प्राप्त सूचना को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता ने विकेश सिंह नेगी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है।
समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने देहरादून में एक प्रेसवार्ता कर आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार को लेकर खुलासा किया। विकेश सिंह नेगी लंबे समय से आबकारी विभाग में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद किये हएु हैं। आबकारी विभाग, आयुक्त आॅफिस, मुख्यमंत्री दरबार से लेकर नैनीताल हाईकोर्ट तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का काम कर रहे हैं। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को फर्जी बताते हुए विकेश सिंह नेगी ने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वारटों रिट दाखिल कर चुनौती दी हुई है।
समाजसेवी विकेश सिंह नेगी कहते हैं कि शराब महकमे में अफसर सरकारी रसूख और दौलत पर भरपूर मौज कर रहे। उनको न तो आला अफसरों का डर है न ही कोर्ट का। आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को चुनौती मामले में सरकार की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है। देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानून नौकरी में हैं ही नहीं। सरकार ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है।
उत्तराखंड और बुंदेलखंड में थे ही नहीं उर्दू अनुवादकों के पद
इस मामले में देहरादून के समाजसेवी विकेश सिंह नेगी का कहना है कि शुजआत और राहिबा के पद बुंदेलखंड और उत्तराखंड में थे ही नहीं। तकनीकी और वैधानिक तौर पर दोनों सेवा में होने नहीं चाहिए। विकेश ने इसलिए शुजआत को पथरिया पीर मामले में सस्पेंड करने पर भी ये कहते हुए अंगुली उठाई थी कि जो सेवा में ही न हो, उसको सस्पैंड कैसे किया जा सकता है? शुजआत उर्दू अनुवादक से कैसे इंस्पेक्टर बन गए और कैसे सालों तक देहरादून सर्किल के इंस्पेक्टर बने रहे, यह हैरान करने वाली बात है।
विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश में सन 1995 से ही इस फर्जीबाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक शुजआत हुसैन, और राहिबा इकबाल को 1995 में फर्जी तरीके से यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति सिर्फ 28-2-1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर दोनों कैसे 24 साल बाद भी सरकारी सेवा में हैं? साथ ही इंस्पेक्टर भी कैसे बन गए?