• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar
No Result
View All Result

पेरिस तक पहाड़ की लोक विधा पहुंचाने वाले उपेक्षित

31/03/21
in उत्तराखंड, संस्कृति
Reading Time: 1min read
334
SHARES
417
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड की लोक संस्कृति की पहचान है यहां के गाने। पश्चिमी सभ्यता के बढ़ते चलन के कारण आज ये खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। लोक गायक स्थानीय संस्कृति की खराब स्थिति से काफी चिंतित हैं। उनका कहना है कि आज की संगीत से गांवों का दूर होता जाना हमेशा दुख देता है। उनका कहना है लोक संगीत लोगों के दुख दर्द को बयां करते हैं। राज्य के लोकगीत मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करने का एक अहम जरिया है। लोक गीत हमारा दुख.दर्द बयां करते हैं। इसी कारण झोड़ा, चांचरी, न्योली, छपेली, भगनौल आदि हमेशा से जनमानस के करीब रहे हैं।

कुछ सालों की बात करें तो पिछले दस.बारह सालों में लोक संगीत में काफी बदलाव आया है। तड़क.भड़क वाले गीत अब अधिक लिखे और गाए जाते हैं। उत्तराखंड की लोक विधा की समृद्ध विरासत संरक्षण के अभाव में खतरे में है। सरकार ने लोक विधा के संरक्षण के लिए अलग से संस्कृति मंत्रालय का गठन किया तो किया है, तमाम योजनाएं भी चलाई हैं, लेकिन धरातल पर ठोस उपाय होते नहीं दिख रहे। लोक विधा जागर और मालूशाही की धमक पेरिस तक पहुंचाने वाले लोक विधा के प्रख्यात जानकार धनी राम अपने ही घर में उपेक्षित हैं। वह लोक संस्कृति के संरक्षण के उपाय न होने से खिन्न हैं।

बागेश्वर जिला मुख्यालय के नजदीक मेहनिया निवासी 69 वर्षीय धनी राम जागर के साथ ही भगनौल और लोकगाथा मालूशाही के अच्छे जानकार हैं। वह बागेश्वर के ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले की शान रहे हैं। धनी राम की जागर, भगनौल के लिए काफी मांग रहती है। वह झोड़ा, चांचरी के भी विशेषज्ञ हैं। उनकी इसी विधा को पहचान कर वर्ष 2005 में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार ने लोक विधा के जानकारों का 12 सदस्यीय दल फ्रांस की राजधानी पेरिस भेजा था। इस दल में शामिल धनी राम बताते हैं कि फ्रांस में उन लोगों ने जागर के साथ ही मालूशाही की प्रस्तुति दी थी। पेरिस में रहने वाले अप्रवासी उत्तराखंडियों के साथ ही वहां के लोगों ने इन प्रस्तुतियों को काफी सराहा था। धनी राम ने लोक विधा के प्रसार के लिए देवभूमि उत्तराखंड लोक कला मंच नाम से संस्था बनाई है। वह लोगों को जागर, भगनौल, झोड़ा, चांचरी के साथ ही अन्य लोक विधाओं की जानकारी देते हैं। उनके शिष्य मेहनिया निवासी हरीश राम और कांकड़ निवासी दीपक राम ने भी जागर विधा को आत्मसात किया है। धनी राम कहते हैं कि लोक विधा को संस्थान खोलकर ही संरक्षण दिया जा सकता है, लेकिन इस दिशा में काम नहीं हो रहा है। लोक विधाओं के जानकार लोगों को संस्कृति विभाग से पेंशन देने घोषणा की थी, लेकिन फ्रांस तक लोक विधा की अलख जगाने वाले धनी राम को पेंशन नहीं मिल रही है। उत्तराखंड में कई बार आवेदन करने के बाद भी उनकी पेंशन आज तक मंजूर नहीं हुई है। वृद्धावस्था पेंशन से ही वह गुजारा कर रहे हैं।

पेरिस में प्रस्तुति के लिए मिला था 200 डॉलर का पुरस्कार। धनी राम बताते हैं कि वर्ष 2005 में पेरिस में दी गई प्रस्तुति के लिए दल के प्रत्येक सदस्य को 200 अमेरिकी डॉलर बतौर पारितोषिक मिले थे। तब 15 डॉलर भारत सरकार ने काट दिए। कहा गया था कि इस धनराशि को उनके प्रोत्साहन में खर्च किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मशकबीन बजाना हर किसी के बस की बात नहीं है। बारातों में आज भी छलिया दलों के साथ मशकबीन पीपरी बाजा वाला जरूर होता है। वह कहते हैं कि मशकबीन में गाने माहौल के हिसाब से सेट किए जाते हैं। बारात जाते वक्त ओम जय जगदीश वाली आरती का बाजा बजाया जाता है। उसके बाद माहौल के अनुसार बेड़ू पाको बारामासा, ओहो नरैण काफल पाको चैत या फिर झन जाए भौजी बिलौरी घासा, लागला बिलौरी का घामा जैसे गीत बजाए जाते हैं। वह 67 वर्ष की उम्र में भी जब मशकबीन में अपने आलाप छोड़ते हैं तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। वह कहते हैं कि मशकबीन बजाते समय सांसों और फेफड़ों में काफी जोर पड़ता है। बारातों में जाने पर इतना पैसा नहीं मिलता कि परिवार की सही प्रकार से गुजर.बसर हो सके। अलबत्ता रोजगार का कोई विकल्प न होने के कारण उन्होंने अपने बेटे नरेंद्र प्रसाद को भी मशकबीन बजाना सिखा दिया है।

उत्तराखंंड की यह धरा जन आदोलन की भूमि रही है। यहां जनगीत फिंजाओं में गूजे हैं। जन कवि गिर्दा जन चेतना के कवि रहे हैं। उत्तराखंड आंदोलन में उनके गीत लेकर लोग सडकों पर आए हैं। चाहे हम नी ले सकों चाहे तुम नी सको, चाहे मैं न लाऊं, चाहे तुम न ला सको लेकिन कोई न कोई उस अवसर को जरूर लाएगा, की अभिव्यक्ति में साहिर लुधियानवी के उन शब्दों का प्रतिबिंब था, जिसमें सुबह होने का इंतजार था। बेवस जडता लाचारी टूटेगी और नई सुबह आएगी। गिर्दा के लोकसाहित्य में जन के लिए पुकार है। लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की रचना है। बोला हे बंधु तुमते कनु उत्तराखंड चहेणु चा, भाईयों बताओ आपको कैसा उत्तराखंड चाहिए।

सत्तर के दशक में जब रैणी गांव में गोरा देवी और उनकी साथी पेंडों को बचाने के लिए पेडों से लिपट गई थी। तब जनचेतना के लिए पुकार थी, चला दीदी चला भुली त्यों डाल्यूं बचौला, छोटी बडी बहनों आओ इन पेडो को बचाने आगे आओ। यह गीत दरिया पर्वतों को पार करता हुआ पूरी दुनिया में पहुंचा और पर्यावरण का संदेश दे गया। पहाडों की व्यथा पर ही हीरा सिंह राणा का स्वर गूंजा, तेरु पहाड, मेरु पहाड। उत्तराखंड के आंदोलन में पहाडों में कवि चीमा का उद्घोष था ले मशाले चल पडे हैं लोग मेरे गांव के अब अधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के। अतुल शर्मा की वाणी थी होश में आओ वो सत्ता के सौदागर। बेशक शब्द हिंदी में हो लेकिन आत्मा पहाड की रही। लोक कलाकारों का कहना है कि यदि समय रहते इस विधा को आदर के साथ सहेजा नहीं गया तो आने वाली पीढ़ी को मेले की संस्कृति जानने के लिए किताबों के पन्ने पलटने पड़ेंगे।

Share134SendTweet84
https://uttarakhandsamachar.com/wp-content/uploads/2025/10/yuva_UK-1.mp4
Previous Post

बीस युवाओं को दिया प्राथमिक उपचार का प्रशिक्षण

Next Post

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री और मुख्यमंत्री ने किया हरिद्वार में भूमिगत केबिलिंग का वर्चुअल लोकार्पण

Related Posts

उत्तराखंड

जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर टाउनहॉल कार्यक्रम आयोजित किया गया

November 15, 2025
21
उत्तराखंड

प्रो. ऋतु रखोलिया को सम्मानित किया गया

November 15, 2025
10
उत्तराखंड

मुख्यमंत्री ने देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल में वेणु अग्रहारा ढ़ींगरा की पुस्तक लीडिंग लेडीज ऑफ इण्डिया पुस्तक का विमोचन किया

November 15, 2025
6
उत्तराखंड

नारायण नगर महाविद्यालय में जनजातीय गौरव दिवस अत्यंत उत्साह के साथ मनाया

November 15, 2025
9
उत्तराखंड

कालेज में संपन्न हुई करियर गाइडेंस एवं शारीरिक शिक्षा कार्यशाला

November 15, 2025
10
उत्तराखंड

अटल उत्कृष्ट पीएम श्री राजकीय इंटर कॉलेज देवाल में खंड स्तरीय संस्कृत प्रतियोगिता का आयोजन

November 15, 2025
6

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    67504 shares
    Share 27002 Tweet 16876
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    45757 shares
    Share 18303 Tweet 11439
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    38034 shares
    Share 15214 Tweet 9509
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    37426 shares
    Share 14970 Tweet 9357
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    37305 shares
    Share 14922 Tweet 9326

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर टाउनहॉल कार्यक्रम आयोजित किया गया

November 15, 2025

प्रो. ऋतु रखोलिया को सम्मानित किया गया

November 15, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.