पहाड जैसे बुलंद हौंसला लिये पहाड़ के पुरूषो का पुरूषार्थ जाग जाये और मात्रृशक्ति यदि ठान ले तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। यहाँ तक कि वे पहाड़ को काटकर सड़क भी बना सकते हैं। ऐसी ही कुछ तस्वीरें इन दिनों उत्तराखंड के शहीदों के सपनों की राजधानी गैरसैण प्रखंड के स्यूणी मल्ली गाँव में दिखाई दे रहा है।
तंत्र की लेटलतीफी से नाराज ग्रामीणों नें गाँव में सड़क निर्माण के लिए खुद उठाये गैंती- फवाडे और बीते एक पखवाड़े में पहाड काटकर 100 मीटर से अधिक सड़क बना डाली। यहाँ तक की सड़क के किनारे गाँव की सडक दूरी प्रदर्शित करता दूरी सूचक पत्थर भी गढ डाला।
गौरतलब है कि आजादी के 72 साल बाद भी 500 से अधिक जनसंख्या और 100 से अधिक परिवार वाले सीमांत जनपद चमोली के गैरसैण प्रखंड के स्यूणी मल्ली गाँव की तकदीर नहीं बदल पायी। गाँव के ग्रामीणों की आंखे सड़क के इंतजार में पथरा गई हैं।
आज भी गाँव के ग्रामीणों को अपनी रोजमर्रा की वस्तुओं को पीठ पर लादकर और 50 से अधिक बच्चों को आठवीं से आगे की पढ़ाई के लिए हर रोज सडक के आभाव में मेहलचौरी व आगरचट्टी की 14 से 16 किमी की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती हैं।
रास्ते में घना जंगल होने के कारण जंगली जानवरों से खतरा हर वक्त बना रहता है। वहीं दूसरी ओर सड़क न होने से गाँव के अधिकतर बीमार व्यक्तियों को समय पर अस्पताल पहुंचाना ग्रामीणों को दुष्कर साबित होता है, जिस कारण अभी तक दो दर्जन से अधिक ग्रामीण समय पर इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ चुके हैं।
इनमें गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और काश्तकारी के दौरान हादसों में चोटिल हुए ग्रामीण भी सम्मिलित हैं। ग्रामीण बरसों से गाँव को सड़क से जोड़ने की मांग कर रहे है। ग्रामीणों द्वारा बीते दो दशकों में सड़क निर्माण के लिए आंदोलन, धरना – प्रदर्शन, आमरण अनशन तक करना पड़ा। तब जाकर वर्ष 2017 में सड़क निर्माण की डीपीआर तैयार हुई।
बीते वर्ष मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस सड़क का शिलान्यास किया तो ग्रामीणों की उम्मीद जगी थी कि जल्द ही स्यूणी मल्ली गाँव तक सड़क पहुंच जाएगी। लेकिन, एक साल बीतने के बाद भी सड़क निर्माण का कार्य शुरू नहीं हो पाया। सड़क निर्माण में विभाग की लेटलतीफी और तंत्र की लगातार उपेक्षा से ग्रामीण खुद को ठगा महसूस कर रहे थे। आखिरकार नये साल में बीती सात जनवरी को ग्रामीण स्वयं गैंती-फावड़े उठाकर सड़क निर्माण में जुट गए और अभी तक 12 दिन में 100 मीटर से अधिक सड़क का निर्माण कर चुकें हैं।
वास्तव मे देखा जाय तो भले ही दुनिया मंगल पर कदम रख चुकी हो पर उत्तराखंड के पहाड़ के कई गांव आज भी सड़कों से महरूम हैं। बुलेट ट्रैन, स्मार्ट सिटी, ड्रोन तकनीक, कैशलेस ट्रांजेक्सन और 5 जी के डिजिटल युग में यदि किसी गाँव के लोग आज भी सड़क की बाट जोह रहें हैं तो इससे दुःखद स्थिति और कुछ नहीं हो सकती।
पहाड़ के इन गांवो की समस्याएँ आज भी पहाड़ जैसी हैं, ऐसे में गांवो में सड़कें हों तो ग्रामीणों की आधी समस्याओं का निराकरण हो जाता है। जहां एक ओर देश और राज्यों में बड़े बड़े प्रोजेक्टों को धरातल पर उतारने के लिए तमाम नियम कानूनों में शिथिलता देकर त्वरित कार्यवाही की जाती हैं वहीं आमजन से जुड़े प्रोजेक्टों को मंजूरी मिलने में नियम- कानूनों की पोटली थमा दी जाती है। ऐसी स्थिति में ग्रामीणों का सब्र भी टूट जाता है।
कोशिश की जानी चाहिए की जनहित और विकासोपरक कार्यों को निश्चित समयावधि में पूरा किया जाय ताकि आमजन को कोई परेशानी न होने पाये। इस हेतु हर व्यक्ति की हर स्तर पर जबाबदेही तय की जाय…., नीति नियंताओ को स्यूणी मल्ली के ग्रामीणों की पीडा का संज्ञान लेकर गाँव हेतु स्वीकृत सड़क निर्माण में आ रही समस्याओं का निराकरण कर सड़क निर्माण का कार्य तत्काल शुरू करने की कयावद कर देनी चाहिए। जिससे ग्रामीणों की मांग पूरी हो और समस्या का समाधान हो सके।
साभार, संजय चौहान फेसबुक