डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला :
देवभूमि उत्तराखंड पर प्रतिभाओं की कमी नहीं है और इसी का परिणाम है कि देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग यहां आते हैं और यहीं पर अपना आशियाना बनाना चाहते हैं।अल्मोड़ा जिले में जन्मे मीर रंजन नेगी का जीवन सभी को रोमांचित कर देता है। उनके जीवन पर एक फिल्म चक दे इंडिया भी बनाई गई है। 1982 के एशियाई खेलों के दौरान, मीर रंजन नेगी पर देशद्रोही होने का झूठा आरोप लगाया गया क्योंकि भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ 1-7 से अंतिम फील्ड हॉकी मैच गंवा दिया था। उसमें नेगी गोलकीपर थे। तमाम अफवाहों के बीच नेगी आखिरकार अपने जीवन से ऊब गए और भारतीय हॉकी टीम ने भी उनका साथ छोड़ दिया।
उन्होंने 1998 के एशियाई खेलों में भारतीय राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम में एक गोलकीपिंग कोच के रूप में शुरुआत की थी, जिसमें उनकी टीम ने स्वर्ण पदक जीता। चार साल बाद, वह भारतीय महिलाओं की राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम के गोलकीपिंग कोच बन गए। उस वर्ष उनकी टीम ने 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। 2004 के हॉकी एशिया कप में स्वर्ण पदक हासिल करने के बाद वह महिलाओं की टीम के सहायक कोच भी थे। उत्तराखंड ने देश को वंदना कटारिया और शिवानी बिष्ट जैसे खिलाड़ी दिए हैं, लेकिन अब भी ग्रास रूट पर काम की जरूरत है। सरकार अनुमति दे तो वे अपने ट्रस्ट की मदद से यहां एकेडमी और स्टेडियम बनाना चाहते हैं।
एकेडमी का सारा खर्च उनका ट्रस्ट उठाएगा। फिलहाल महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कालेज में हाकी एक्टिविटी शुरू करने की योजना बनाई है। मीर चाहते हैं कि हाकी प्रीमियर लीग प्रदेश की टीम भी हिस्सा ले। वहीं दूसरी ओर खेल मंत्री ने मामले से अनभिज्ञता जताई है। उनका कहना है कि ये मुख्यमंत्री घोषणा सेल का मामला है। मीर रंजन नेगी की इच्छा एक बार फिर भारतीय टीम का कोच बनने की है। इसके लिए उन्होंने हाकी फेरडरेशन को प्रस्ताव भी भेजा है।
उन्होंने कहा कि वे पुरुष या महिला की सीनियर या फिर जूनियर टीम का कोच बनना चाहते हैं। वे पहले कई बार गोलकीपिंग कोच रह चुके हैं। नेगी का कहना है कि सचिन तेंदुलकर खिलाड़ियों के प्रेरणास्रोत हैं। उनसे सिर्फ क्रिकेट ही नहीं हॉकी, बैडमिंटन व अन्य खिलाड़ी भी सीख लेते हैं। अगर वे खेल मंत्री बनते हैं तो सभी खेलों का विकास होगा। उत्तराखंड में करीब दो साल पहले सर्वे ऑफ इंडिया के ऑडिटोरियम में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भरी सभा में पूर्व अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी मीर रंजन नेगी को सम्मान स्वरूप 10 लाख रुपए देने की घोषणा की थी।
लेकिन, सरकार बदलते ही यह घोषणा हवा हो गई। चक दे इंडिया’ फिल्म से मशहूर हुए पूर्व हॉकी खिलाड़ी एवं महिला हॉकी कोच मीर रंजन नेगी देश में राष्ट्रीय खेल हॉकी की दयनीय स्थिति से बेहद चिंतित हैं। मीर रंजन नेगी ने कहा कि वो जल्द ही राष्ट्रीय स्तर की महिला हॉकी लीग का आयोजन करेंगे। वे महिला खिलाड़ियों को उच्च प्रशिक्षण देकर राष्ट्र को बेहतर खिलाड़ी सौंपेंगे। एक कार्यक्रम में शामिल होने देहरादून आए मीर रंजन नेगी ने कहा कि देश में क्रिकेट जैसे ग्लैमर वाले खेलों को तवज्जो दिया जाता है, लेकिन हॉकी के भविष्य के बारे में कोई नहीं सोचता। उन्होंने हॉकी में प्रदेश की बुरी स्थिति पर कहा कि प्रदेश सरकार भी इस ओर उदासीन है।
मीर रंजन नेगी ने हाकी के प्रति अपने जुनून को कम नहीं होने दिया और भारतीय महिला हाकी टीम के कोच के रूप में सफलतापूर्वक अपनी पहचान को न सिर्फ पुन:स्थापित किया बल्कि भारत में महिला हाकी को एक नये मुकाम पर पहुंचा दिया। मीर रंजन के भारतीय महिला हॉकी टीम के गोलकीपिंग कोच नियुक्त होने के बाद 1998 एशियन गेम्स व 2002 में कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला हाकी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल हुई।
हाकी टीम के सहायक कोच के रूप में उनकी टीम 2004 में एशियन हॉकी का स्वर्ण जीती थी।भारतीय पुरुष हॉकी टीम द्वारा 41 साल बाद टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने से खेल प्रेमियों में जबरदस्त खुशी है। भारतीय हॉकी टीम के पूर्व गोलकीपर मीर रंजन नेगी ने इसे भारतीय हॉकी खेल जगत के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि भारतीय टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक में पदक हासिल कर करोड़ों खेल प्रेमियों का सपना पूरा किया। कांस्य पदक जीतना स्वर्ण पदक के बराबर ही है। यदि हमारे खिलाड़ियों को सुविधा और अच्छी तकनीक से प्रशिक्षण मिले तो वह और बेहतरीन प्रदर्शन कर सकते हैं। टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम का प्रदर्शन सराहनीय है। उनका मानना है कि कि यदि भारतीय पुरुष हॉकी टीम को अच्छी सुविधाएं और अच्छा प्लेटफॉर्म मिले तो अगली बार वह स्वर्ण पदक लेकर ही देश लौटेंगे।
उन्होंने साफ कहा कि हमारे खिलाड़ी कम संसाधनों में भी बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता रखते हैं। भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने इस बात को टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर सच साबित कर दिया है। अभी वह इंदौर में रहते हैं। मीर रंजन नेगी इंदौर में खिलाड़ियों को फुटपाथ पर ट्रेनिंग देकर हॉकी के गुर सिखा रहे हैं। नेगी ने कहा कि सारी तवज्जो सिर्फ क्रिकेट को दी जा रही है। अन्य खेलों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है। उत्तराखंड में खेलों का विकास नहीं हो रहा है।
यहां स्थिति सुधारने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में कई प्रतिभावान खिलाड़ी हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव में पलायन कर दूसरे राज्यों अथवा टीमों की ओर से खेलने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि यदि उत्तराखंड में खेल नीति अच्छी होगी तो खिलाड़ी अपने ही राज्य से खेलेंगे। इससे खेलों में उत्तराखंड का नाम भी रोशन होगा। मीर रंजन नेगी एक फील्ड हॉकी खिलाड़ी और भारत की राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम के पूर्व गोलकीपर हैं। वह 2007 की हिट फिल्म चक दे इंडिया के विकास से जुड़े थे। इस फिल्म में बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान ने मीर रंजन नेगी का किरदार निभाया।
1982 के एशियाई खेलों में, नेगी पाकिस्तान के खिलाफ अंतिम फील्ड हॉकी मैच में भारत की राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम के गोलकीपर थे। इस मैच में भारत 1-7 से हार गया। मैच के बाद नेगी पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कुछ गोल कर उन लक्ष्यों को हासिल किया। वर्तमान में वह इंदौर के खेल निदेशक के रूप में एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च में कार्यरत है। उन्होंने गढ़वाली फिल्म सुबेरू गाम में एक अधिकारी के रूप में एक छोटी सी भूमिका भी निभाई।उत्तराखण्ड का यह सच्चा सपूत भारतीय हाकी को उसका खोया वैभव पुन: लौटाने के अपने सपनों को साकार करेगा।