डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड सरकार द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण को प्रस्तुत की गई ताज़ा रिपोर्ट में गंगा नदी के प्रदूषण की एक गंभीर तस्वीर सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, न केवल गंगा के प्रमुख इलाकों, बल्कि नदी के उद्गम स्थल भी अब दूषित हो चुके हैं, जहां से स्वच्छ जल का प्रवाह शुरू होता था। यह खुलासा बेहद चौंकाने वाला है, क्योंकि गंगा नदी को ‘नदी माँ’ के रूप में पूजा जाता है और इसके प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार और पर्यावरण संगठन लगातार प्रयास कर रहे हैं। उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट में बताया गया है कि गंगा नदी के उद्गम स्थल, यानि योगध्यान से लेकर ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे क्षेत्रों में भी सीवेज और अन्य अवशिष्ट जल मिल रहा है। इन इलाकों में जहां पहले गंगा का जल अत्यंत शुद्ध माना जाता था, वहीं अब इन स्थलों पर भी गंदे पानी का जमाव हो रहा है, जिससे नदी के पानी की गुणवत्ता में खासी गिरावट आई है।रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि गंगा के किनारे बसे कई शहरों और गांवों में सीवेज नालियों का जल सीधे नदी में गिरता है। विशेष रूप से धार्मिक नगरी हरिद्वार और ऋषिकेश में यह समस्या गंभीर रूप से देखी जा रही है। ये क्षेत्र न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि लाखों श्रद्धालुओं के लिए पवित्र भी हैं। रिपोर्ट में उत्तराखंड सरकार ने बताया कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में गंगा के पानी में औद्योगिक और घरेलू सीवेज का मिश्रण बढ़ रहा है। गंगा के प्रदूषण को लेकर किए गए पूर्व में किए गए प्रयासों के बावजूद, नदी की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है।रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के विभिन्न हिस्सों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की कमी और अवैध कूड़ा फेंकने के कारण गंगा का पानी अत्यधिक प्रदूषित हो चुका है। इसके अलावा, नदी किनारे के कुछ क्षेत्रों में अवैध खनन और निर्माण कार्य भी जल के प्रदूषण का एक बड़ा कारण बन रहे हैं। राष्ट्रीय हरित अधिकरण को बताया गया है कि गंगा में प्रदूषण पर उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, इस पवित्र नदी का “उद्गम स्थल” भी सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) के निर्वहन से प्रदूषित हो गया है।उत्तराखंड में गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के बारे में कार्यवाही के दौरान यह दलील दी गई। न्यायाधिकरण ने पहले राज्य और अन्य से रिपोर्ट मांगी थीएनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति की पीठ ने हस्तक्षेप करने वाले आवेदकों में से एक के वकील की दलीलों पर गौर किया, जिन्होंने राज्य की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि गंगोत्री स्थित 10 लाख लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से एकत्र नमूने में सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) 540/100 मिली वाला फेकल कोलीफॉर्म पाया गया था।फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) का स्तर मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्मजीवों से होने वाले प्रदूषण को दर्शाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार, “संगठित आउटडोर स्नान” के लिए 500/100 मिली से कम एमपीएन वांछनीय है।5 नवंबर को पारित आदेश में एनजीटी की पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल थे। पीठ ने कहा, “उन्होंने (वकील ने) कहा है कि पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल भी एसटीपी उत्सर्जन से प्रदूषित हो गया है।”न्यायाधिकरण ने एसटीपी के मानदंडों के अनुपालन और कार्यक्षमता के बारे में सीपीसीबी की रिपोर्ट पर भी गौर किया और कहा कि 53 चालू एसटीपी में से केवल 50 कार्यात्मक थे और 48 एफसी स्तर, जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) हटाने की दक्षता सीमा और उपयोग क्षमता सहित मानदंडों का अनुपालन नहीं कर रहे थे।राष्ट्रीय हरित अधिकरण को बताया गया है कि गंगा में प्रदूषण पर उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, इस पवित्र नदी का “उद्गम स्थल” भी सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) के निर्वहन से प्रदूषित हो गया है।उत्तराखंड में गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के बारे में कार्यवाही के दौरान यह दलील दी गई। न्यायाधिकरण ने पहले राज्य और अन्य से रिपोर्ट मांगी थी।एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति की पीठ ने हस्तक्षेप करने वाले आवेदकों में से एक के वकील की दलीलों पर गौर किया, जिन्होंने राज्य की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि गंगोत्री स्थित 10 लाख लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से एकत्र नमूने में सर्वाधिक संभावित संख्या (एमपीएन) 540/100 मिली वाला फेकल कोलीफॉर्म पाया गया था।फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) का स्तर मनुष्यों और जानवरों के मलमूत्र से निकलने वाले सूक्ष्मजीवों से होने वाले प्रदूषण को दर्शाता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार, “संगठित आउटडोर स्नान” के लिए 500/100 मिली से कम एमपीएन वांछनीय है।पीठ ने कहा, “उन्होंने कहा है कि पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल भी एसटीपी उत्सर्जन से प्रदूषित हो गया है।”न्यायाधिकरण ने एसटीपी के मानदंडों के अनुपालन और कार्यक्षमता के बारे में सीपीसीबी की रिपोर्ट पर भी गौर किया और कहा कि 53 चालू एसटीपी में से केवल 50 कार्यात्मक थे और 48 एफसी स्तर, जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) हटाने की दक्षता सीमा और उपयोग क्षमता सहित मानदंडों का अनुपालन नहीं कर रहे थे।राष्ट्रीय हरित अधिकरण को गंगा में प्रदूषण पर उत्तराखंड सरकार की रिपोर्ट के हवाले से सूचित किया गया कि इस नदी का ‘‘उद्गम स्थल’ भी जलमल शोधन संयंत्र (एसटीपी) से छोड़े जा रहे जल से प्रदूषित हो गया है।उत्तराखंड में गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण को लेकर अधिकरण में हो रही सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी गई। एनजीटी ने पहले राज्य और अन्य से रिपोर्ट तलब की थी। गंगा और उसकी सहायक नदियों की स्वच्छता को लेकर लंबे समय से महत्वाकांक्षी योजना को चलाया जा रहा है. लेकिन हैरत की बात यह है कि गंगा के उद्गम स्थल पर ही गंगा स्वच्छ नहीं हो पा रही है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में गंगा की सफाई से जुड़े एक मामले में कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज की गई और गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री में सीवर जनित फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा मानक से अधिक मिलने पर भी नाराजगी व्यक्त की. एनजीटी ने इस संदर्भ में उत्तराखंड की मुख्य सचिव को भी मौजूदा स्थिति को लेकर जांच करने के निर्देश दिए हैं. गंगा और उसकी सहायक नदियों के लिए नमामि गंगे योजना के तहत विभिन्न कार्य करवाए जा रहे हैं. एसटीपी प्लांट के जरिए भी पानी की स्वच्छता पर काम किया जा रहा है. इसके बावजूद रिपोर्ट में पाया गया कि गंगोत्री में एक मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में फीकल कोलीफार्म तय मानक से अधिक पाया गया. ये मात्रा नमूनों में 540/100 मिलीलीटर MPN (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) पाई गई. एनजीटी की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि राज्य में 53 में से 50 STP काम कर रहे हैं, जबकि राज्य में 63 नालों को टैप ही नहीं किया गया है. इसके चलते गंदा पानी नदियों में जा रहा है एनजीटी ने मुख्य सचिव को राज्य सरकार द्वारा दिए गए हलफनामे में मौजूद तथ्यों की भी जांच के लिए कहा है. इस दौरान कई तथ्य ऐसे थे, जिन पर असंतोष भी व्यक्त किया गया है. ऐसे में अब शासन को फिर से इस पर अपना जवाब देना होगा. गंगा नदी की सफाई और इसके संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने कई योजनाएं बनाई हैं। उत्तराखंड सरकार ने गंगा के प्रदूषण को रोकने के लिए विशेष कार्य योजना तैयार की है, जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण और जल शोधन के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल शामिल है। इसके अलावा, नदियों के आसपास जल निकासी के प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए भी उपायों पर ध्यान दिया जाएगा।सरकार और पर्यावरण संगठनों द्वारा लगातार यह प्रयास किया जा रहा है कि गंगा नदी का जल शुद्ध और प्रदूषणमुक्त रहे, ताकि यह न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि भविष्य के लिए भी जीवनदायिनी बनी रहे। एनजीटी ने इस रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार से विस्तृत योजना की मांग की है और प्रदूषण कम करने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं। साथ ही, केंद्रीय और राज्य स्तर पर तालमेल बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है। यह खुलासा एक गंभीर चेतावनी है और गंगा नदी के प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए अब और तेज और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।लेखक के निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।