हरेंद्र बिष्ट की रिपोर्ट।
थराली। उत्तराखंड के रजत जयंती वर्ष के तहत पिंडर घाटी के घेस को जड़ी-बूटी ग्राम के उत्कृष्ट गांव के सम्मान से सम्मानित किया जाएगा
। 9 नवंबर को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी भराड़ीसैंण गैरसैंण में इस पुरूस्कार को दिया जाएगा।
विकास खंड देवाल के अंतर्गत आयुष ग्राम घेस को राज्य की 25 वी वर्षगांठ के मौके पर रजत जयंती समारोह के दौरान उत्कृष्ट पुरस्कार के लिए चयनित किया गया हैं। जिससे घेस सहित इससे लगें गांवों के ग्रामीणों में खुशी का माहौल बना हुआ हैं।दरअसल घेस गांव में 2004 तत्कालीन ग्राम प्रधान एवं सेना से कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए स्वर्गीय केशर सिंह बिष्ट एवं स्वर्गीय कैप्टन हरक सिंह बिष्ट ने घेस गांव में जड़ी-बूटी के उत्पादन के तहत अन्य जड़ी-बूटियों के साथ ही कुटकी की खेती शुरू की थी, जहां अन्य जड़ी-बूटियों के उत्पादन भी ग्रामीणों किसानों को विशेष लाभ नही मिला, वही कुटकी की खेती घेस गांव में सफल रही और घेस के ग्रामीणों को कुटकी की पौध लगाने के तीन साल बाद जिस तरह से आर्थिक लाभ मिलने लगा उससे घेस गांव के किसान उत्साह से भर उठें और धीरे-धीरे अन्य घेस के किसान भी कुटकी की खेती से जुड़ने लगे।घेस के ग्रामीणों को कुटकी के कारण कम मेहनत पर बेहतरीन आर्थिक लाभ को देखते हुए घेस गांव से लगें हुए हिमनी,बलाण,पिनाऊ गांव के किसानों ने मूल्यवान कुटकी की खेती शुरू कर दी और इसका ग्रामीणों काश्तकारों को भारी लाभ भी मिल रहा है।एक अनुमान के अनुसार वर्तमान समय में इन चारों गांव के अलावा देवाल ब्लाक के ही वांण,सवाड़,मेलमिंडा,मनमती आदि गांवों के करीब 18 सौ से अधिक परिवार कुटकी की खेती कर अपनी आर्थिकी को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। एक तरह से इन गांवों के लिए कुटकी की खेती वरदान साबित हो रही हैं।
———
कुटकी जड़ी के संकलन में पिछले 10 वर्षों से जुटे हुए बिष्ट जड़ी-बूटी नर्सरी के प्रोपाइटर पुष्कर सिंह बिष्ट ने बताया कि देवाल क्षेत्र के गांव में प्रति वर्ष किसान कुटकी को बेचकर 3.50 से 4 करोड़ रुपए तक कमा रहे हैं। बताया कि इस समय किसानों से कुटकी को 1150 से 1200 रूपयों प्रति किलोग्राम से खरीदी जा रही हैं। बताया कि उनकी नर्सरी किसानों से को कुटकी के पौध उपलब्ध करवाने के साथ ही उनसे तैयार कुटकी को खरीदती हैं।इस समय उनकी फर्म का 20-25 कंपनियों के साथ अनुबंध बना हुआ हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कुटकी के कारण कई गांवों में रिवर्स पलायन हो रहा हैं। जबकि कुटकी की खेती के प्रति किसानों के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है।












