• About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact
Uttarakhand Samachar
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल
No Result
View All Result
Uttarakhand Samachar

हरेला पर्व से होती है सावन की शुरुआत

10/07/25
in उत्तराखंड, देहरादून
Reading Time: 1min read
0
SHARES
4
VIEWS
Share on FacebookShare on WhatsAppShare on Twitter

 

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देवभूमि, तपोभूमि, हिमवंत, जैसे अनेक नामों से विख्यात उत्तराखंड जहां अपनी खूबसूरती लोक संस्कृति, लोक परंपराओं धार्मिक तीर्थ स्थलों के कारण विश्व भर में प्रसिद्ध है, तो वहीं यहां के लोक पर्व भी पीछे नहीं, जो इसे ऐतिहासिक दर्जा प्रदान करने में अपनी एक अहम भूमिका रखते हैं। हिमालयी, धार्मिक और सांस्कृतिक राज्य होने के साथ-साथ देवभूमि उत्तराखंड को सर्वाधिक लोकपर्वों वाले राज्य के रूप में भी देखा जाता है। विश्व भर में कोई त्यौहार जहां वर्ष में सिर्फ एक बार आते हैं, वहीं हरेला जैसे कुछ लोकपर्व देवभूमि में वर्ष में तीन बार मनाए जातेउत्तराखंड में हरेला उत्तराखंड के प्रमुख लोक पर्व में से एक है जो प्रकृति पूजा और हरियाली के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में खासतौर पर मनाए जाने वाला हरेला त्योहार हरियाली और नवजीवन का प्रतीक है और स्थानीय परंपराओं में इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दिन हरियाली को बढ़ावा देने के लिए पौधे भी लगाए जाते हैं हरेला का त्योहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की संस्कृति में रचा बसा हुआ है। हरेला शब्द हरियाली से बना है जो नई फसल की बुवाई, समृद्धि जीवन का प्रतीक है। यह वर्षा ऋतु के आगमन का उत्सव मनाने का भी पर्व है। जब बरसात के बाद खेतों से लेकर पहाड़-मैदान सब लहलहाने लगते हैं। प्रकृति की छटा देखते ही बनती है तब हरेले का त्योहार मनाया जाता है। हरेला को तिमिले या मालू के पत्ते के दोने या बांस की टोकरी या मिट्टी के बर्तन में बोया जाता है। समय के साथ प्लास्टिक की छोटी टोकरियों ने भी इसका स्थान ले लिया है। तीन, पांच या सात टोकरियों में मिट्टी भरी जाती है और इनमें पांच या सात अनाज डाले जाते हैं। जो कि जौ, गेहूं, मक्का, धान, उड़द, गहत और चना आदि हो सकते हैं। इन्हें साफ स्थान में छाया में रखा जाता है और हर दिन थोड़ा-थोड़ा पानी इनमें डाला जाता है। पांचवें दिन से अनार के पेड़ की लकड़ी से इनकी गुड़ाई की जाती है। इसके बाद दसवें दिन जिस दिन हरेले का त्योहार मनाया जाता है, उस दिन इनकी पूजा की जाती है और इन्हें घर के मंदिर, ईष्ट देवता, ग्राम देवता और स्थानीय देवताओं को चढ़ाया जाता है। माना जाता है कि जितना अच्छा हरेला उगा होगा, उस साल उतनी अच्छी फसल होगी। हरेले के दिन पूरी, खीर, पूए, बड़े और अन्य पकवान बनाए जाते हैं। इसके बाद घर के बुजुर्ग बच्चों के पैरों से पूरे शरीर को छुआते हुए हरेले को सिर या कानों पर रखते हैं और आशीर्वाद देते हुए लोक गीत भी गाते हैं

जी रया जागी रया, यो दिन यो बार भेंटने रया।
दुब जस फैल जाया, बेरी जस फली जाया।
हिमाल में ह्युं छन तक, गंगा ज्यूं में पाणी छन तक, यो दिन और यो मास भेंटने रया।
अकास जस उच्च है जे, धरती जस चकोव है जे। स्याव जसि बुद्धि है जो, स्यू जस तराण है जो।
जी राये जागी रया। यो दिन यो बार भेंटने रया।
यानी जीते रहो, तुम्हारी उम्र लंबी हो। इस दिन हर साल तुमसे मिलना होता रहे। दूब यानी दूर्वा की तरह आपकी प्रतिष्ठा और समृद्धि बढ़ती जाए। बेरी के पौधों की तरफ आप हर हालात में आगे बढ़ते जाएं। जब तक हिमालय में बर्फ रहेगी, गंगा जी में पानी रहेगा तब तक इस दिन मिलना होता रहे। आपका कद आसमान की तरह ऊंचा हो और आप धरती की तरह फलो फूलो, सियार की तरह आपकी बुद्धि तेज हो और शरीर में चीते जैसी ताकत और फुर्ती हो। आप जीते रहें और इस दिन मिलते रहें।हालांकि कुमाऊं भर में भी अलग-अलग जगह हरेला बोने की विधि में थोड़ा बदलाव हो सकता है। लेकिन कमोबेश इसी तरह हरेले का त्योहार मनाया जाता है। इसके साथ ही हरेला मनाने के बाद इसके प्रसाद (पैंड़ा) परिवार में बांटा जाता है। इसके साथ ही घर से दूर रहने वालों को चिट्ठी में आशीर्वाद के रूप में हरेले के तिनके भेजे जाते हैं। हरेले का पर्व बच्चों को प्रकृति और पर्यावरण के महत्व का बोध कराता है। पौधे लगाने और उनकी रक्षा करने की प्रेरणा देने वाला यह पर्व एक जीवंत लोक-संस्कृति है।हरेला पर्व के अवसर पर छाई हुई प्राकृतिक हरियाली मानव मन की प्रवृत्ति में भी सुख शांति व खुशहाली भरकर लाती है, आस्था के इस पावन पर्व की अपनी एक अलग गरिमा एवं महिमा है। हरेला पर्व हमें अपनी संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण से भी जोड़ता है ।किंतु हमारे हिस्से के पहाड़ में काफी कुछ बदल चुका है, आज पहाड़ों के अधिकांश गांवों में पलायन का ताला लगा हुआ है। जीवित संस्कृति की मिसाल के रूप में हरेला जैसे लोक पर्व आज भी पुरातन मान्यताओं के अनुसार अवश्य मनाए जाते हैं किंतु जिन पर्वों को गत कुछ वर्षों पहले गांव क्षेत्र एवं समाज पूरा एक होकर मनाता था, आज मात्र वह एक व्यक्ति और उसके परिवार तक ही सीमित रह गए हैं।सरकार की योजनानुसार 2024-25 में किया जाने वाला विभागीय व वृहद वृक्षारोपण एवं हरेला कार्यक्रम के अंतर्गत रोपित किए जाने वाले वृक्षारोपण में ’एक पेड़ मां के नाम’ शीर्षक का प्रयोग किया जा रहा है।धरती की हरियाली को अक्षुण्य बनाये रखने के लिए उत्तराखंड के लोकपर्व हरेले की दूरगामी महत्ता को समझ राज्य व केंद्र की डबल इंजन सरकार का ध्यान जरुर आकर्षित हुआ है। किए गए व्यापक पर्यावरण संरक्षण नीति नियोजन के तहत लाखों-करोड़ों पेड़ रोपे जाने की सोच भी जगी है, नीति नियोजन भी किया गया है। परंतु डबल इंजन की सरकार को चाहिए सबसे पहले उत्तराखंड के हरे-भरे जंगलों में वर्ष के अधिकतर महिनों में लगने वाली भयावह आग से ध्वस्त हो रहे हजारों हैक्टेयर जंगलों के लाखों-करोड़ों पेड़ों, दुर्लभ जड़ी-बूटियों व जल संरक्षण करने वाली वनस्पति की सुरक्षा तथा दावाग्नि से बढ़ रहे तापमान व बढ़ते तापमान से पिघल रहे हिमालयी ग्लेशियरों को बचाने के लिए वृहद स्तर पर इच्छा शक्ति जगाकर नीति नियोजन करे, अंचल के जगलों को प्रतिवर्ष लगने वाली भयावह आग से बचाए। जिस दिन उत्तराखंड के जंगल आग से निजात पा जायेंगे, समझा जाएगा हरेले लोकपर्व का दूरगामी महत्व डबल इंजन की सरकार ने जान लिया है, समझ लिया है। पर्यावरण प्रहरियों का भी दायित्व बनता है वे राष्ट्रीय स्तर पर पेड़ लगाने का अपना परोपकारी अभियान जारी रखे, साथ ही डबल इंजन की सरकार पर भी उत्तराखंड के जंगलो को आग से बचाने हेतु नीति-नियोजन करने हेतु दवाब बनाए। देश के सबसे बड़े सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ब्रज प्रांत क्षेत्र के प्रचारक डॉ. हरीश रौतेला से समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर हरेला हम सबके लिए जरूरी क्यों है। डॉ. रौतेला कहते हैं कि हरेला एक ऐसा त्योहार है जो हिमालय से निकलकर पूरी दुनिया को एकात्म कर देने का संदेश देता है। हरेला का मतलब क्या है, संपूर्ण प्रकृति हरी-भरी रहती है तो उसके चलते देश खुशहाल होता है। उत्तराखंड में ऋषियों-मुनियों ने हरेला क्यों बनाया, यह समझने की जरूरत है। गंगा, गंगा क्यों बनती है क्योंकि गंगा में एक विषाणु होता है, जिसके चलते उसमें दूसरा कोई विषाणु टिक नहीं पाता। इसीलिए हिमालय से निकलने वाली गंगा वैसी ही बनी रहती है। वह जो विषाणु है, वह निश्चित जलवायु में होता है। अगर तापमान बढ़ेगा तो मुश्किल होगी। हरेला के कारण सारा हिमालय हरा-भरा रहना चाहिए। वहां ठंडक बनी रहनी चाहिए। डॉ. हरीश रौतेला ने 8 साल पहले हरेला पर्व सप्ताह में 25 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य रखा था, यह सफलतापूर्वक पूरा किया गया। पिछले कुछ वर्षों में लोगों का जुड़ाव फिर अपनी सांस्कृतिक जमीन से होने लगा है। इसी का परिणाम है कि अब हरेला पर्व देश-विदेश में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। लोग ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने का प्रयास करते हैं। पिछले साल लगभग 50 से ज्यादा देशों में हरेला पर्व मनाया गया। कोरोना के चलते यह आयोजन सीमित था, लेकिन इस बार यह भव्य तरीके से होगा।इस साल हरेला पर एक भागीरथ प्रयास की शुरुआत हो रही है। यह है हरेला के अवसर पर पहाड़ों पर अपने प्राकृतिक स्रोतों, पानी के नौलों का संरक्षण करना। यह बात छिपी नहीं है कि पहाड़ों के बड़े हिस्से में गर्मियों का मौसम पानी की भारी किल्लत के बीच कटता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम अपने प्राकृतिक स्रोतों का संरक्षण करने के लिए व्यापक अभियान चलाएं। इसी के तहत लोगों को प्रेरित किया जा रहा है कि वे अपने गांवों में प्राकृतिक स्रोतों, नौलों का पुनरोद्धार करें, उसके आसपास पेड़-पौधे लगाएं। ताकि नौलों में पानी की उपलब्धता को साल भर सुनिश्चित किया जा सके। हरेला की व्यापकता को देखकर उत्तराखंड सरकार ने भी इस पर्व पर अवकाश की घोषणा कर रखी है। आगामी 16 जुलाई को हरेला पर्व मनाया जाएगा, ऐसे में प्रयास है कि ज्यादा से से ज्यादा लोग इस महाअभियान मे अपनी आहुति दें और हरेला लोकपर्व पर पेड़ लगाने का प्रयास करें। डॉ. हरीश रौतेला उत्तराखंड के प्रवासियों में शिक्षा की अलख भी जगा रहे हैं. वह हर जगह प्रवासी उत्तराखंडियों को सुपर-10 विद्यार्थी तैयार करने की सलाह देते हैं. उनका कहना है कि शिक्षा से परिवार, समाज और देश बदलता है. युवाओं को शिक्षित करने से उनका आने वाला कल समृद्ध होगा. इसलिए लोग चाहें कुमाऊं के हो या गढ़वाल के, कुछ ऐसे युवाओं को तैयार करने की जरूरत है जो आगे प्रांत ही नहीं देश का नाम रोशन कर सकें.डॉ. हरीश रौतेला कहते हैं कि ऐसे युवा तैयार करो जो आगे चलकर उत्तराखंड की पहचान को प्रसारित करेंगे. वह कहते हैं कि अच्छी शिक्षा से ही रोजगार का सृजन होता है. आपकी अच्छी शिक्षा होगी तो आप अच्छे स्टार्टअप शुरू कर सकेंगे. उनका मानना है कि साल 2050 तक भारत को सर्वाधिक स्टार्टअप देने वाला देश बनाना है.डॉ. हरीश रौतेला का महत्वपूर्ण योगदान हैकुल मिलाकर देखा जाय तो हरेला पर्व में लोक कल्याण की एक बहुत बड़ी व दूरदर्शी अवधारणा निहित दिखाई देती है। समूचे वैश्विक स्तर पर आज पूंजीवादी और बाजारवादी संस्कृति जिस तरह प्रकृति और समाज से दूर होती जा रही है यह बहुत चिन्ताजनक बात है। ऐसे में निश्चित तौर पर लोक के बीच मनाया जाने वाला यह हरेला पर्व हमें प्रकृति और संस्कृति के करीब आने का सार्थक संदेश देता है। वह निश्चित ही पहाड़ की संस्कृति, समाज और परम्परा से निरन्तर जुड़े रहने की सजग प्रेरणा देता है। समाज और प्रकृति में हरेले की महत्ता को देखते हुए उत्तराखण्ड सरकार तथा ‘धाद’ सहित कई संगठनों ने भी पिछले सालों से सामाजिक स्तर पर हरेला मनाने की कवायद शुरू कर दी है जिसके तहत राज्य में पर्यावरण और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिये जन चेतना और जागरूता पैदा करने के सार्थक प्रयास हो रहे हैं.. निश्चित तौर पर समाज में इस तरह के प्रयास प्रकृति और संस्कृति के प्रति संवेदनशील होने और संरक्षण की दिशा में सुखद संकेत माने जा सकते हैं। कुल मिलाकर देखा जाय तो हरेला पर्व में लोक कल्याण की एक समग्र अवधारणा निहित है। समूचे वैश्विक स्तर पर आज पूंजीवादी और बाजारवादी संस्कृति जिस तरह प्रकृति और समाज से दूर होती जा रही है यह बहुत चिन्ताजनक बात है। ऐसे में निश्चित तौर पर लोक के बीच मनाया जाने वाला यह पर्व हमें प्रकृति के करीब आने का सार्थक संदेश देता है। समाज और प्रकृति में हरेले की महत्ता को देखते हुए उत्तराखण्ड सरकार भी पिछले साल से सरकारी स्तर पर हरेला मनाने की कवायद कर रही है जिसके तहत राज्य में पर्यावरण और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिये स्कूली बच्चों व आम जनता के मध्य जन चेतना और जागरूता पैदा करने के प्रयास हो रहे हैं जो कि एक नितान्त सकारात्मक पहल है। एक अन्य विशेष बात है कि जब तक किसी परिवार का विभाजन नहीं होता है, वहां एक ही जगह हरेला बोया जाता है, चाहे परिवार के सदस्य अलग-अलग जगहों पर रहते हों. परिवार के विभाजन के बाद ही सदस्य अलग हरेला बो और काट सकते हैं. इस तरह से आज भी इस पर्व ने कई परिवारों को एकजुट रखा हुआ है. *लेखक विज्ञान व तकनीकी विषयों के जानकार दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।*

ShareSendTweet
Previous Post

कुप्रबंधन का शिकार हैं ‘कीड़ा जड़ी’ कई रोगों के लिए काल समान

Next Post

मुख्यमंत्री ने देहरादून में रायपुर क्षेत्र के अंतर्गत अतिवृष्टि से प्रभावित क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण किया

Related Posts

उत्तराखंड

मुख्यमंत्री ने देहरादून में रायपुर क्षेत्र के अंतर्गत अतिवृष्टि से प्रभावित क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण किया

July 10, 2025
6
उत्तराखंड

कुप्रबंधन का शिकार हैं ‘कीड़ा जड़ी’ कई रोगों के लिए काल समान

July 10, 2025
5
उत्तराखंड

34 वर्षों के अंतराल के बाद इस वर्ष पैनखंडा जोशीमठ के भरकी गाँव की माँ कालिंका नौ माह के भ्रमण पर रहेंगी

July 10, 2025
12
उत्तराखंड

आंगनबाड़़ी केंद्रों में मनोरंजक गतिविधियों से बच्चों को दें शिक्षा: जिलाधिकारी गढ़वाल

July 10, 2025
4
उत्तराखंड

बाहरी क्षेत्रों से जारी ओबीसी प्रमाण पत्रों को निरस्त करने की मांग

July 10, 2025
6
उत्तराखंड

कोटद्वार गढ़वाल के कमल सिंह रावत ओलंपिक भारत फुटबॉल टीम के बने स्पेशल कोच

July 10, 2025
26

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Popular Stories

  • चार जिलों के जिलाधिकारी बदले गए

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • डोईवाला : पुलिस,पीएसी व आईआरबी के जवानों का आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण सम्पन्न

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • ऑपरेशन कामधेनु को सफल बनाये हेतु जनपद के अन्य विभागों से मांगा गया सहयोग

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  •  ढहते घर, गिरती दीवारें, दिलों में खौफ… जोशीमठ ही नहीं

    0 shares
    Share 0 Tweet 0
  • विकासखंड देवाल क्षेत्र की होनहार छात्रा ज्योति बिष्ट ने किया उत्तराखंड का नाम रोशन

    0 shares
    Share 0 Tweet 0

Stay Connected

संपादक- शंकर सिंह भाटिया

पता- ग्राम एवं पोस्ट आफिस- नागल ज्वालापुर, डोईवाला, जनपद-देहरादून, पिन-248140

फ़ोन- 9837887384

ईमेल- shankar.bhatia25@gmail.com

 

Uttarakhand Samachar

उत्तराखंड समाचार डाॅट काम वेबसाइड 2015 से खासकर हिमालय क्षेत्र के समाचारों, सरोकारों को समर्पित एक समाचार पोर्टल है। इस पोर्टल के माध्यम से हम मध्य हिमालय क्षेत्र के गांवों, गाड़, गधेरों, शहरों, कस्बों और पर्यावरण की खबरों पर फोकस करते हैं। हमारी कोशिश है कि आपको इस वंचित क्षेत्र की छिपी हुई सूचनाएं पहुंचा सकें।
संपादक

Browse by Category

  • Bitcoin News
  • Education
  • अल्मोड़ा
  • अवर्गीकृत
  • उत्तरकाशी
  • उत्तराखंड
  • उधमसिंह नगर
  • ऋषिकेश
  • कालसी
  • केदारनाथ
  • कोटद्वार
  • क्राइम
  • खेल
  • चकराता
  • चमोली
  • चम्पावत
  • जॉब
  • जोशीमठ
  • जौनसार
  • टिहरी
  • डोईवाला
  • दुनिया
  • देहरादून
  • नैनीताल
  • पर्यटन
  • पिथौरागढ़
  • पौड़ी गढ़वाल
  • बद्रीनाथ
  • बागेश्वर
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • रुद्रप्रयाग
  • रुद्रप्रयाग
  • विकासनगर
  • वीडियो
  • संपादकीय
  • संस्कृति
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • साहिया
  • हरिद्वार
  • हेल्थ

Recent News

मुख्यमंत्री ने देहरादून में रायपुर क्षेत्र के अंतर्गत अतिवृष्टि से प्रभावित क्षेत्रों का स्थलीय निरीक्षण किया

July 10, 2025

हरेला पर्व से होती है सावन की शुरुआत

July 10, 2025
  • About Us
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Terms & Conditions
  • Refund Policy
  • Disclaimer
  • DMCA
  • Contact

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.

No Result
View All Result
  • Home
  • संपादकीय
  • उत्तराखंड
    • अल्मोड़ा
    • उत्तरकाशी
    • उधमसिंह नगर
    • देहरादून
    • चमोली
    • चम्पावत
    • टिहरी
    • नैनीताल
    • पिथौरागढ़
    • पौड़ी गढ़वाल
    • बागेश्वर
    • रुद्रप्रयाग
    • हरिद्वार
  • संस्कृति
  • पर्यटन
    • यात्रा
  • दुनिया
  • वीडियो
    • मनोरंजन
  • साक्षात्कार
  • साहित्य
  • हेल्थ
  • क्राइम
  • जॉब
  • खेल

© 2015-21 Uttarakhand Samachar - All Rights Reserved.