डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
हिन्दू धर्म में कहा जाता हैं कि गंगा में स्नान करने से भले आपके पाप धुल जाएं, लेकिन वर्तमान में गंगा नदी का पानी पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। हरिद्वार में गंगा का पानी आपको बीमार कर सकता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि हरिद्वार में गंगा नदी का पानी नहाने के लिए भी नहीं है। सीपीसीबी ने कहा कि हरिद्वार जिले में गंगा का पानी तकरीबन हर पैमाने पर असुरक्षित है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, हरिद्वार के 20 घाटों में रोजाना 50,000 से एक लाख श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते है। उत्तराखंड में गंगोत्री से लेकर हरिद्वार जिले तक 11स्थानों से पानी की गुणवत्ता की जांच के लिए सैंपल लिए गए थे। ये 11 स्थानों पर 294 किलोमीटर के इलाके में फैली हैं।
बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरएम भारद्वाज ने बताया, इतने लंबे दायरे में गंगा के पानी की गुणवत्ता जांच के 4 प्रमुख सूचक रहे, जिनमें तापमान, पानी में घुली ऑक्सीजन, बायलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड और कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया शामिल हैं। हरिद्वार के पास के इलाकों के गंगा के पानी में बीओडी कॉलिफॉर्म और अन्य जहरीले तत्व पाए गए। सीपीसीबी के मानकों के मुताबिक, नहाने के एक लीटर पानी में बीओडी का स्तर 3 मिलीग्राम से कम होना चाहिए, जबकि यहां के पानी में यह स्तर 6.4प्रतिशत से ज्यादा पाया गया। इसके अलावा हर की पैड़ी के प्रमुख घाटों समेत कई जगहों के पानी में कॉलिफॉर्म भी काफी ज्यादा पाया गया। प्रति 100 मिली पानी में कॉलिफॉर्म की मात्रा जहां 90 एमपीएन मोस्ट प्रॉबेबल नंबर होना चाहिए, वह 1,600 एमपीएन तक पाई गई। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक नहाने के पानी में इसकी मात्रा प्रति 100 एमजी में 500 एमपीएन या इससे कम होनी चाहिए। इतना ही नहीं, हरिद्वार के पानी में डीओ का स्तर भी 4 से 10.6 एमजी तक पाया गया, जबकि स्वीकार्य स्तर 5 एमजी का है। जाने माने पर्यावरणविद् अनिल जोशी ने कहा, हरिद्वार इंडस्ट्रियल और टूरिस्ट हब बन गया है, ऐसे में जब तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट इंस्टॉल नहीं किए जाते और पानी की गुणवत्ता पर सख्त निगरानी नहीं रखी जाती, घाटों का पानी प्रदूषित रहेगा।
हैरानी की बात यह भी है कि नदियों में बढ़ते जा रहे प्रदूषण के संदर्भ में अदालतों की ओर से हमारी सरकारों को कई.कई बार फटकारा जा चुका है। जन.स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल.प्रभावों के आंकड़े भी समय.समय पर जाहिर किए जाते रहे हैं। यहां तक कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण, केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय भी नदियों में प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों को कड़े दिशा.निर्देश जारी कर चुके हैं, फिर भी हलातों में जरा भी सकारात्मकता दिखाई नहीं देती है, तो क्यों प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों पर नजर रखने वाले सरकारी संस्थानों की निष्क्रियता देखते ही बनती है। साफ.साफ देखा जा सकता है कि ऐसे उद्योग संचालकों और सरकारी संस्थानों के निगहबानों के बीच सांठ.गांठ का ही यह नतीजा है कि हमारी नदियां निरंतर प्रदूषित हो रही हैं। ऊंची पहुंच वाले लोग प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अमले को न सिर्फ भ्रमित करते हैं, बल्कि साम.दाम.दंड.भेद से प्रभावित करने की कोशिशें भी करते हैं। सावन के महीने में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में शिव भक्तों की कांवड़ यात्रा का जोश अपने चरम पर होता है। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िये प्लास्टिक की बोतल, पन्नियाँ, प्लास्टिक की बोतलें, बेकार हो चुके कपड़े, खाना आदि सड़क और घाटों पर ही फेंककर चले गए। इस दौरान गंगा को भी नहीं बख्शा गया। कांवड़िये गंगा नदी में अपने साथ लायी कांवड़ के अलावा प्लास्टिक और अन्य कचरा भी बहा गए। हरकी पैड़ी महिला घाट, मालवीय घाट, कनखल, भूपतवाला, बैरागी कैम्प आदि कई क्षेत्रों में खुले मेंकी गयी शौच की गन्दगी फैली हुई है। भीषण बदबू से रास्तों पर चलना मुहाल था। दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक कांवड़ यात्रा के दौरान एनजीटी के नियमों की भी खुलेआम धज्जियाँ उडाई गयी। प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबन्ध होने के बावजूद गंगा घाटों और शहर में कई अन्य जगह प्लास्टिक के कैन, प्लास्टिक की चटाई, बरसाती आदि की धड़ल्ले के साथ खरीद.फरोख्त हुई। खुलेआम सजी इन दुकानों को देखकर भी पुलिस आंख मूंदे रही, दिखावे के लिए एकाध जगह अनुष्ठानिक कार्रवाई ही की गयी हरिद्वार नगर निगम के मुताबिक कांवड़ यात्रा के आखिरी दिनों में शहर के जाम हो जाने की वजह से कूड़े का निस्तारण नहीं हो पाया था, इस वजह से चुनौती और ज्यादा बढ़ गयी है।
हरिद्वार में गंगाजल लेने आए कांवड़ियों द्वारा अराजक तरीके से फैलाई गयी गन्दगी की सफाई करना प्रशासन के लिए चुनौती बना आज भी उसी तरह से रखता चुनौती बना है। पहाड़, पानी, वनों का ही हिस्सा समझते हुए व्यवहार किया गया, जबकि हिमालय वेद पुराण के अनुसार तब भी आध्यात्मिक महत्त्व ज्यादा रखता था और आज भी उसी तरह से रखता है। हिमालय को हमेशा एक पूजनीय स्थल समझा गया और यही कारण है कि सभी तरह के देवी.देवताओं का यह वास बना। कोई भी धर्म हो, हिमालय उसका केन्द्र बना। इसका प्रमाण इन धर्मों के तीर्थस्थलों की हिमालय में उपस्थिति से मिलता है। जोकि उत्तराखण्ड के लिए, सरकार निस्तारण में लापरवाही कर पब्लिक की हेल्थ से खिलवाड़ कर रहे हैं अस्पताल सामान्य कूड़े के साथ बायोमेडिकल वेस्ट को फेंकने से हवा में घुल रहा जहर, बीमार पड़ रहे हैं, इस बायोमेडिकल वेस्ट का निस्तारण भी कराया जाए, ताकि पर्यावरण में इंफेक्शन की बीमारियां न फैलें। जिसमें व्यक्ति और समाज स्थायी सुखए शांति और संतोष का उपयोग करते रहे हैं।