डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
थाइम खाना बनाने, औषधीय और सजावटी उपयोग के साथ एक सुगंधित बारहमासी सदाबहार जड़ी बूटी है, इसके तेल भी बहुत ही लाभदायक होता है और बहुत से बीमारी में काम देता है, थाइम मिंट परिवारका ही सदस्य है जो अपने गंध के लिए भी जाना जाता है। प्राचीन मिस्र के लोग शव के लिए थाइम का इस्तेमाल किया करते थे। प्राचीन यूनानि लोग इसे अपने नहाने में इस्तेमाल करते थे और इसे अपने मंदिरों में धूप के रूप में जलाते थे, माना जाता था कि यह ऊर्जा और साहस का स्रोत था। पूरे यूरोप में थाइम का प्रसार रोमनों के कारण हुआ, क्योंकि वे इसे अपने कमरे को शुद्ध करने और पनीर और मदिरा को सुगंधित स्वाद देने के लिए इस्तेमाल किया करते थे। यूरोपीय मध्य युग में इसे नींद आने की जड़ी बूटी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था। इसे महिलाए योद्धा को उपहार भी दिया करते थे जिनमें थाइम की पत्तियां शामिल होती थी, यह माना जाता था कि वाहक को इससे साहस आता था। थाइम को धूप के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था और अंतिम संस्कार के दौरान ताबूतों पर रखा जाता था, क्योंकि इससे अगले जन्म अच्छे होंगे यह भी माना जाता था। थाइम अच्छी तरह से सूखे मिट्टी के साथ गर्म और धूप वाले स्थान में सबसे अच्छी तरह से खेती की जाती है। यह आमतौर पर वसंत ऋतू के समय लगाया जाता है, और उसके बाद बारहमासी के रूप में उगता है। यह सूखे को अच्छी तरह से सहन करता है और बहुत तेज ठण्ड को भी यह सहन कर लेता है इसलिए बहुत ज्यादा ठण्ड वाली जगह पर भी उगाई जाती है। अपने खाना बनाने में पत्तियों का उपयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है या तो हरे या फिर सूखे रूप में, इसे आमतौर पर सूप, सॉस, मांस व्यंजन में जोड़ा जाता है और इसका उपयोग स्वादपूर्ण गार्निश के रूप में भी किया जाता है। पत्तियों के साथ चाय भी बनाया जा सकता है और शरीर के लिए इसके तेल भी इस्तेमाल किये जाते हैं साथ ही इसके काढ़ा भी बनाया जा सकता है बहुत सारी बीमारी से बचने के लिए करते थे।
100 ग्राम थाइम में
कैलोरी – 101
● कुल वसा – 7 ग्राम
● संतृप्त वसा – 5 ग्राम
● बहुअसंतृप्त वसा – 5 ग्राम
● मोनोअसंतृप्त वसा – 1 ग्राम
● कोलेस्टेरॉल – 0
● सोडियम – 9 मिलीग्राम
● पोटैशियम – 609 मिलीग्राम
● कुल कार्बोहायड्रेट – 24ग्राम
● आहारीय रेशा – 14 ग्राम
● प्रोटीन – 6 ग्राम
● विटामिन । – 4,751 अंतर्राष्ट्रीय इकाई
● विटामिन 160.1 मिलीग्राम
● कैल्सियम – 405 मिलीग्राम
● आयरन – 5 मिलीग्राम
● विटामिनए – 0 अंतर्राष्ट्रीय इकाई
● विटामिन सी 6 – 0.3 मिलीग्राम
● विटामिन सी12 – 0:
● मैग्नेशियम – 160 मिलीग्राम
लेखक के 2014 भारतीय प्राकृतिक उत्पाद और संसाधन जर्नल
दैनिक जागरण देहरादून जिले के डोईवाला ब्लॉक के किसानों ने अब पारंपरिक कृषि के बजाय तुरंत नकदी व मुनाफे वाली फसलें उगानी शुरू कर दी हैं। इनमें उनकी सबसे पसंदीदा बनी है हर्ब्स की खेती। यहां उगाए जा रहे विभिन्न हर्ब्स का उपयोग मसाले बनाने में किया जाता है। पूरी तरह से जैविक विधि से होने वाली यह खेती किसान और पर्यावरण, दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।वर्तमान में देहरादून जिले के डोईवाला ब्लॉक के छिद्दरवाला, चकजोगीवाला, साहबनगर, जोगीवालामाफी, शेरगढ़, माजरी आदि गांवों में बड़े पैमाने पर हर्ब्स की खेती हो रही है। छिद्दरवाला गांव के किसान तेजेंद्र सिंह बताते हैं कि वह काफी समय से हर्ब्स की खेती कर रहे हैं। पारंपरिक फसलों के मुकाबले यह अधिक फायदेमंद है। धान.गेहूं उगाने से तो उसकी लागत भी नहीं मिल पाती। वह बताते हैं कि तीन से चार महीने में तैयार होने वाली इस फसल से किसानों को नकद मुनाफा होता है।किसान देवेंद्र सिंह नेगी भी तेजेंद्र सिंह से सहमत हैं। कहते हैं, वह बीते पांच साल से हर्ब्स उगा रहे हैं। अन्य फसलों के मुकाबले हर्ब्स उत्पादन में मुनाफा तो अधिक है ही, सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे जंगली जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते। खास बात यह कि इसके लिए बाजार नहीं तलाशना पड़ता, बल्कि इससे जुड़ी फ्लैक्स फूड कंपनी खुद ही खेतों से तैयार फसल ले जाती है। यह कंपनी हर्ब्स से मसाले तैयार कर विदेशों में सप्लाई करती है। फ्लैक्स फूड लिमिटेड के सहायक महाप्रबंधक विष्णु दत्त त्यागी के अनुसार हर्ब्स का उत्पादन पूरी तरह जैविक विधि से किया जाता है। बीज बोने से पहले छह माह तक खेत का उपचार होता है। मृदा परीक्षण के बाद ही खेती की जाती है। खाद के रूप में हरी खाद व गोबर का ही प्रयोग होता है। जबकि, कीटनाशक के रूप में गोमूत्र अर्क का छिड़काव किया जाता है। यानी हर्ब्स का उत्पादन पूरी तरह प्रकृति के अनुरूप किया जाता है। त्यागी कहते हैं कि देहरादूनए हरिद्वार और टिहरी में बड़े पैमाने पर हर्ब्स की खेती हो रही है। जाहिर है कि किसानों को फायदा हो रहा हैए तभी वे हमसे जुड़ रहे हैं। इसके अलावा कंपनी आस.पास के गांवों के महिला समूहों को मशरूम उत्पादन का निश्शुल्क प्रशिक्षण भी दे रही है। खेतों में जंगली जानवरों के उत्पात से परेशान किसानों के लिए हर्ब्स उत्पादन फायदेमंद साबित हो रहा है। दरअसल हर्ब्स को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते। जबकि, धान, गेहूं, गन्ना आदि को जानवर चट कर जाते हैं। ऐसे में राजाजी टाइगर रिजर्व से सटे गांवों में यह खेती लाभदायक मानी जा सकती है फायदे को देखते हुए किसान इसे तेजी से अपना रहे हैं। हालांकि, इसके लिए सिंचाई व लेबर की अधिक आवश्यकता होती है, लेकिन अधिक फायदे को देखते हुए किसान इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। देवेंद्र सिंह नेगी, बलराज सिंह, जगीर सिंह, हरजीत सिंह, हरकिशन सिंह, अशोक चौधरी, तेजेंद्र सिंह आदि किसान लंबे समय से हर्ब्स उत्पादन से जुड़े हैं। थाइम, पार्सले, माजरुरोम, पुदीना, सोया व तुलसी। चार से पांच महीने अवधि की एक फसल की तीन से चार कटिंग होती है। एक कटिंग में प्रति हेक्टेयर औसतन 250 क्विंटल तक उत्पादन मिल जाता है। कंपनी इसे आठ से दस रुपये प्रति किलो के भाव से खरीद रही है। आज के विपरीत, अतीत में लोगों को प्राकृतिक उपचार और एंटीबायोटिक्स प्रदान करने के लिए हमैं कुदरत पर निर्भर रहना पड़ता था। मानव जीवन को इतना उंचाइ तक बढ़ाने के लीए हम आधुनिक चिकित्सा का बहोत ऋणी हैं, फिर भी प्राकृतिक उपचार के लिए एक जगह है।ज़मीनी स्तर पर कई कार्यक्रमों का आयोजन करना हैं। उन्हें एक तरफ जहां जैविक खेती के लाभ बताये गए वहीं रासायनिक खेती से होने वाले नुकसानों से भी अवगत हैं । इसके साथ ही सरकार द्वारा किसानों को जैविक खेती के लिए मुफ्त उपलब्ध कराये जाने वाले बीज, खाद और प्राकृतिक रूप से तैयार कीटनाशक दवाओं की जानकारी भी उपलब्ध कराई जाने लगी ऐसे में ताकि किसान की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुए बिना उनके उत्पादन को बढ़ाया जा सके।